ब्राह्मण
Saturday, 3 February 2018
जलाते हैं लोग
-अमित राजपूत-
तेरी ज़िन्दगी में शामिल हुये हम ऐसे,
ताप पाकर मोम ज़मी से मिली हो जाकर जैसे ।
नज़ारे हमने तब से देखे तो क्या देखे !
कुरेदकर जलाते हैं लोग,
मानों मिटाना चाहते हों मुझे हर रोज़ जैसे-तैसे ।
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