• अमित राजपूत
वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से जूझ रही दुनिया में भारत की स्थिति लॉकडाउन
है यानी 21 दिनों की देशव्यापी पूर्ण बंदी। इस महाबंदी में वो इलाक़े भी शामिल
हैं, जहाँ अब तक कोरोना के संक्रमण का एक भी केस दर्ज़ नहीं किया गया है। कोरोना
के संक्रमण से मुक्त ऐसे इलाक़ों को वर्जिन इलाक़ा कहा गया है। इनमें देश के दूसरे
हिस्सों समेत उत्तर प्रदेश और बिहार के तमाम ज़िले प्रमुख रूप से शामिल हैं।
यूपी और बिहार के
इन वर्जिन ज़िलों में लॉकडाउन के उन इलाक़ों से अपेक्षाकृत बहुत ही शिथिल स्थिति
देखने को मिल रही है, जहाँ कोरोना के कई सारे मामले पुष्ट हैं। वर्जिन ज़िलों की इस
शिथिलता के थोड़े सकारात्मक तो थोड़े लापरवाही भरे परिणाम हो सकते हैं। ऐसे में देशभर
के इन वर्जिन इलाक़ों की ज़िम्मेदारियाँ और जवाबदेही दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण
मालूम होते हैं।
पहले, सकारात्मक
परिणामों की बात करें तो ज़्यादातर वर्जिन ज़िले सूबों के छोटे और मँझोले जनपद
हैं। इनके आसपास अवस्थित गाँव ही देश के धान्य की कुंजी हैं। ऐसे में बहुत ज़रूरी
है कि ऐसे इलाक़ों में सावधानी बरतते हुए कड़ाई उतनी ही हो कि सोशल डिस्टेंसिंग
यानी सामाजिक दूरी में रहकर किसान अपनी चर्चा के साथ जुड़ा रहे, क्योंकि किसी भी
हालत में इस चैत्र के महीने में तैयार उपज को सँजोना बेहद ज़रूरी है। इसलिए तमाम
वर्जिन जनपदों के नेतृत्वकर्ताओं को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके इलाक़ों में
ग़ैर-ज़रूरी आवाजाही को नियंत्रित करते हुए धीरे-धीरे किसानों को उनके खेतों में
बारी-बारी आने-जाने देना चाहिए यद्यपि यह अति अनुशासन, ज़िम्मेदारी और जवाबदेही
वाला होगा, जिसमें नागरिकों की ही सबसे अहम भूमिका है।
दूसरा, इन
इल़ाकों की सबसे ख़ास बात यह है कि यहाँ के लोगों का एक वर्ग अब भी सामान्य दिनों
की तरह ही सामाजिक दूरी को नज़रअंदाज़ करते हुए सुबह और शाम को समूह में घूमने और
टहलने निकल रहा है। वो कोरोना को लेकर तनिक भी सावधान नहीं दिखता है। ऐसे वर्ग के
लोग बड़ी दृढ़ता के साथ यह भी मानते हैं कि चूँकि उनके ज़िलें में अब तक कोरोना का
एक भी मामला सामने नहीं आया है तो उन्हें इसके प्रिकॉशन्स की कोई भी ज़रूरत नहीं
है। हैरानी है कि ये वर्ग धड़ल्ले से लोकल पिकनिक भी कर रहा है। शायद उन्हें इस
बात का तनिक भी अंदाज़ा नहीं है कि वो जिससे मिल रहे हैं वो न जाने दिनभर में ऐसे
ही और कितने लोगों से मिल रहा होगा। इस एक छोटी सी ग़लती भर से कोरोना की उड़ती आग
के चपेट में वो बड़ी आसानी से कभी भी आ सकते हैं। इस प्रकार, इससे न सिर्फ़ उनके
ज़िले की वर्जिनटी भंग होगी बल्कि यह एक झटके में लॉकडाउन का पालन कर रहे मासूमों
की धड़कनों को भी बढ़ा देने वाला होगा। ऐसे में वर्जिन इलाक़ों के नागरिकों की
ज़िम्मेदारियाँ उतनी ही मज़बूत होनी चाहिए जितनी कि कोरोना से संक्रमित इलाक़े में
रहने वाले नागरिकों की। बेहतर तो यह होगा कि इन वर्जिन इलाक़ों के नागरिक कोरोना
संक्रमित इलाकों से ज़्यादा सचेत रहें जिससे कि वो इस पूरे प्रकरण में अपने ज़िले
को वर्जिन ही बनाकर रख सकने में क़ामयाब हो सकें। बेशक उनकी यह उपलब्धि शताब्दियों
तक गूँजती किसी ललकारती विजय से कम न होगी।
वास्तव में यह केवल
इतना भर नहीं है कि ये इलाक़े अपनी परिधि में कोरोना की उपस्थिति को शून्य भर
करेंगे बल्कि इसके दूसरे भी मायने है। मसलन आज जब धरती अपने मौन का नाद सुन रही है
तो इन वर्जिन इलाक़ों के द्वारा की जा रही लॉकडाउन की अवज्ञा मात्र से वो धरती के
मौन में खलल डालने का काम कर रहे हैं। जी हाँ, ये समझने वाली बात है कि कोरोना
संकट के बीच भारत की ही तरह अधिकांश देशों में या तो लॉकडाउन है अथवा लोगों को
उनके घरों से निकलने नहीं दिया जा रहा है। हर जगह यही आदेश हैं और ऐसे में क़रीब
चार अरब की आबादी वाली आधी दुनिया अपने घरों में ही बंद है। परिवहन और उद्योग
धंधों की रफ़्तार भी थमी हुयी है। रेलगाड़ियों के पहिये पूरी तरह से रुके हुए हैं।
इन सबके चलते पृथ्वी पर व्याप्त यह शान्ति धरती की ऊपरी परत पर कंपन का स्तर बड़ी
मात्रा में घटा रही है।
दिलचस्प है कि
बेल्ज़ियम के रॉयल ऑब्ज़र्वेटरी की एक रिपोर्ट के मुताबिक बसों, कारों, ट्रेनों और
फैक्ट्रियों आदि की मौजूदा चुप्पी से धरती के कंपन में 30 से 50 प्रतिशत तक की कमी
दर्ज़ की गयी है। इसका असर यह हुआ है कि भूकंप विज्ञानी इस वक़्त छोटी से छोटी
भूगर्भीय हलचल का भी पता लगा पाने में सक्षम हो गये हैं। यह सबकुछ कम शोर के कारण
ही संभव हो सका है, जोकि सीधे तौर पर आपके द्वारा लॉकडाउन के अनुपालन का ही नतीज़ा
है। इसे हम इस तरह से भी समझ सकते हैं कि धरती की ऊपरी परत के कंपन में आई यह कमी
दर्शाती है कि पूरी दुनिया में लोग लॉकडाउन के नियमों का पालन कर रहे हैं।
चूँकि धरती के
कंपन में आई कमी के आंकड़ों के सहारे इस बात का निर्धारण बहुत ही आसानी से किया जा
सकता है कि किस देश के किस इलाक़े के लोग लॉकडाउन के नियमों का ज़्यादा पालन कर
रहे हैं और किस इलाक़े के लोग ऐसी स्थिति में भी न तो इसे और न ही इसके
नफ़ा-नुकसान को ही भाँप पा रहे हैं और वो लॉकडाउन को नज़रअंदाज़ कर घर से निकल रहे
हैं या लोकल में ही अपना निजी वाहन लेकर घूम रहे हैं। ऐसे में ध्यान रखें कि इस
वक़्त जब हमारी धरती का चित्त शांत है वो आपके वाहन से पैदा होने वाली ध्वनि और
उससे हुए कंपन को भी महसूस कर पा रही है। कोरोना से संक्रमित इलाक़ों में बेहद
कड़ाई से इतर यद्यपि ऐसी ज़्यादातर हरक़ते वर्जिन इलाक़ों में ही हो रही है। इसलिए
कोरोना के वर्जिन इलाक़ों की जवाबदेही सबसे ज़्यादा है कि वो वक़्त की नज़ाकत को
समझें और अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँ। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए स्वास्थ्य
और कृषि जैसे कार्यों के अलावा वहाँ के लोग घर से बाहर कभी न जाएँ।