Sunday, 16 May 2021

अँधेरा छँटने दो साथी!

 

दुश्मन है

दुश्मन का क्या!

वो तो है मगरूर।

कालिख़ पोती

पुत गयी।

धुँधला गयाबहु खो गया।

चहुँदिश रुदन का शोर...

सन्नाटा है।

रहने दो!

अँधेरा छँटने दो साथी!!

साथ रोशनी में नहाएँगे ज़रूर!!!

 

वो हमारे अपने

जो युद्धगति में सन्तरी थे

मंत्रिमण्डल में मंत्री थे

कोई प्रधानमंत्री थे।

भ्रम में थे।

वो नहींहम।।

बेचारेआसक्तभयभीत

लालचीअंधेमलंग

अनिष्टउद्दण्डमज़बूर

जो ख़ुद हैं वो क्या करें!

मानवता जीवित हो यदि तुममें

तो क्षमा करो इन दीनहीन संतरियों को।

चलेगी पुरवाई लेकर नमी

आब-ए-ज़मज़म की पाक बूँदों को

बदलियाँ शिथिल होंगी।

छँटेगी कालिख़।

सब छोड़ो।

तुम रहने दो!

घबराओ नहीं!

अँधेरा छँटने दो साथी!!

हम साथ रोशनी में नहाएँगे ज़रूर!!!