Sunday, 10 September 2023

सिगरेट पीती लड़कियाँ

 

Paint: Miri Baruch


सिगरेट पीती लड़कियाँ

लुभाती हैं लबों को

कि खैंचकर सोख लें

होठ मेरे इक कश

कँसकर कश को खींचा है

जिन होठों ने, इसी वक़्त

ठहर सा गया है

सब कुछ...

ख़ुल गयी हैं इंद्रियों की खिड़कियाँ

क़सम से

इतना लुभाती हैं ये

सिगरेट पीती लड़कियाँ! (1)

 

वहम नहीं

ये हक़ीक़त बयाँ है

उठती है पुलक मन में

दिल मचल जाता है

टकराता है कलेजे से

जहाँ जम जाती हैं धुएँ की संततियाँ

 बदन रुकता है देखकर

इन सुन्दरियों को

जो और भी सुन्दर नज़र आती हैं

लगाते हुए आग मुहाने पर

हर बार लाइटर से उठती लौ

बढ़ा जाती है नूर इनके चेहरे का

जो गर्वित आभा में डूब जाता है

खींचते हुए पहला कश, हर बार

नज़र आता है नज़रों में इनके

किसी योद्धा सा अभिमान

मानों अम्बुश लगा गई हों शर्तिया

इतना लुभाती हैं ये

सिगरेट पीती लड़कियाँ! (2)

 

हरेक कश के बाद

पाते हैं मसृण-अधर

रसना के सरकने से वो एहसास

पाता है कोई तपता-निर्वासित

जैसे लोटकर गंगा-रेती का सुकून

वैसा ही मिलता है इधर भी

हासिल, होता है स्त्री को असीम सौन्दर्य

लजाती है खाड़ी फारस की

फूटती हैं ज्वालामुखियाँ, चारों तरफ़

आग लगती है ख़्यालों में

धूप लगती नहीं, ग़र धूप हो

प्यास बुझती नहीं, चाहे कूप हो

ठहर जाते हैं सभी

चाहे रंक हों या भूप हों

मोहती हैं इस कदर से शक्तियाँ

कमाल हैं न!

ये सिगरेट पीती लड़कियाँ! (3)