Monday, 1 January 2024

फ़तेहपुर आख़िर आज भी पिछड़ा क्यों है?

 

छायाः स्वयं

    जनसंख्या की दृष्टि से भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के आठ जिले विकास के नजरिए से आकांक्षी जिलों की श्रेणी में शामिल हैं। सेहत और पोषण, कृषि-जल संसाधन, कौशल विकास, शिक्षा और बुनियादी ढाँचों के निर्माण में ये सभी जनपद काफी पिछड़े माने जाते हैं। इनमें चार जिले सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, श्रावस्ती और बहराइच तराई के इलाकों वाले जिले हैं, जो अपनी नैसर्गिक चुनौतियों के कारण पिछड़े हुए हैं। ऐसे ही तीन जिले चित्रकूट, चंदौली और सोनभद्र, जो विन्ध्य पर्वत श्रृंखला के पठारी इलाके हैं, भी अपनी नैसर्गिक चुनौतियों के कारण ही पिछड़े हुए हैं। इन सभी सातों जिलों की भौगोलिक चुनौतियाँ इन्हें मुख्य धारा से पीछे कर देती हैं।

जबकि जनपद फतेहपुर के पास ऐसे कोई भी नैसर्गिक कारण नहीं है, जो इसके पिछड़े होने की दशाएँ निर्मित करें। बल्कि इससे उलट फतेहपुर के नैसर्गिक कारक इसे बेहद सम्पन्न बनाए हुए हैं। मसलन पहली ही स्पष्टता यूँ समझिए कि निचले दो-आब में अवस्थित यह एक अन्तर्वेदी जनपद है, जो अत्यंत उपजाऊ है, क्योंकि इस इलाके का भू एवं जल संसाधन गंगा एवं यमुना अपवाह-द्रोणी में स्थित है। इसके अलावा दो अन्य नदियों ससुर खदेरी-1 और ससुर खदेरी-2 की अपवाह-द्रोणी में भी यहाँ का विपुल क्षेत्र सम्मिलित है। इस प्रकार, दो-दो अपवाह-द्रोणियों के दो-आब के बीच बसे इस जनपद की मिट्टी सोना है।

इतना ही नहीं, इस जनपद फतेहपुर में गंगा की एक अन्य सहायक नदी पाण्डु भी इसके दक्षिण-पश्चिमी इलाके को समृद्ध बनाती है। इसके अलावा यमुना की भी दो सहायक नदियाँ रिन्द और नोन भी इस जनपद की अन्य नदियाँ हैं, जो इसे उपजाऊ बनाती हैं। इस प्रकार, अकेले इस जनपद फतेहपुर में कुल सात नदियाँ बहती हैं। इससे इतर यहाँ अनेक समृद्ध झीलें और सैकड़ों तालाब भी हैं।

4,152 वर्ग-किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस जनपद की कुल जनसंख्या 26 लाख 32 हजार 733 है। इसके अनुपात में यहाँ विभिन्न साधनों द्वारा स्रोतानुसार वास्तविक सिंचित क्षेत्रफल 2 लाख 30 हजार 5 हेक्टेयर है। ताजा आँकड़ों के अनुसार जनपद में नहरों की कुल लम्बाई 1,450 किलोमीटर है। यहाँ 777 पक्के कुएँ, 59 भू-स्तरीय पम्पसेट तथा 511 राजकीय नलकूप हैं। इसके अलावा व्यक्तिगत नलकूप और पम्पसेटों की कुल संख्या 41,857 हैं।

इस संबंध में जनपद के आधुनिक इतिहास पर नजर दौड़ाएँ, तो भी हमें हैरान करने वाले तथ्य ही मिलते हैं। मसलन इसके दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में बसे कस्बा खजुहा को देखें, तो यहाँ मुगल स्थापत्य का आखिरी चारबाग है। बारादरी युक्त बाग निर्माण की परंपरा में कहीं-कहीं इन्हें बाग बादशाही के रूप में भी पहचाना जाता है। औरंगजेब द्वारा निर्मित खजुहा की बाग बादशाही मुगलिया बारादरी-युक्त चारबाग परंपरा की आखिरी निशानी है। यहाँ औरंगजेब की पवेलियन भी है।

वास्तव में, यहाँ चारबाग होने के मायने ये हैं कि यहाँ के लोग जल-आपूर्ति के लिए उपयोग में लाई जाने वाली बावलियों, हौज, नहर जैसी बड़ी-बड़ी नालियों, नहरों और शाही तालाबों की निर्माण-शैलियों और उनके उपयोग के तरीकों से बेहद नजदीक और बारीकी के साथ परिचित रहे होंगे। उसके बाद भी ब्रिटिशकाल में खजुहा नील के संवर्धन में एक महत्वपूर्ण नगर के रूप में जाना जाता रहा। यकीनन, यह सब तभी संभव है, जब यहाँ उसके संवंर्धन की कला और संसाधान पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहे होंगे।

ऐसे ही, जनपद के उत्तर-पूर्वी व मध्य-उत्तरी इलाकों में झीलों की सुव्यवस्थित शैली के आधुनिक प्रमाण भी मौजूद हैं, जो बताते हैं कि यह जनपद कृषि-जल संसाधन, कौशल विकास और उसके बुनियादी ढाँचों के निर्माण में अभी हाल ही तक कितना अधिक सम्पन्न रहा है। लगभग हर तहसील में मौजूद पक्का तालाब भी यहाँ की समृद्धि और सुदृढ़ता की गवाही देने वाले हैं।

वास्तव में, यह बिना शिक्षा के संभव नहीं। जाहिर तौर पर इस जनपद की बौद्धिक परंपरा आदि से ही उन्नत रही। भृगु की ज्ञान परम्परा का यह प्रवाह संत चंद दास से होता हुआ आधुनिक-काल में पद्मभूषण अल्लामा नियाज फतेहपुरी और उनके शागिर्द फरमान फतेहपुरी तक आया। हसरत मोहानी की तालीम भी यहीं हुई। यहाँ की ज्ञान परंपरा आज भी आला उरूज पर है। प्रयाग शुक्ल, सलीम आरिफ, असगर वजाहत और दीपक साधु जैसे पंडित उसके प्रतिमान हैं। मौजूदा वक्त में यहाँ शिक्षा का बाजार और भी अधिक आकर्षक बना हुआ है। फिर शिक्षा में यह कैसे पिछड़ा (यदि पिछड़ा), इसकी तफ्सील से पड़ताल की जानी चाहिए।

67.43 प्रतिशत साक्षरता वाले इस जनपद में निवास करने वाले लोगों की फितरत को समझना होगा कि किन कारणों से यहाँ के लोग सभी महत्वपूर्ण दशाएँ मौजूद होने के बाद भी शिक्षा से कोसों दूर बने हुए हैं। आँकड़ों को देखें तो यहाँ 2147 प्राथमिक विद्यालय (शिक्षकों की संख्या- 8770), 1461 उच्च प्राथमिक विद्यालय (शिक्षकों की संख्या- 4498), 494 माध्यमिक विद्यालय (शिक्षकों की संख्या- 4596), 54 महाविद्यालय (शिक्षकों की संख्या- 1619), 22 स्नात्कोत्तर महाविद्यालय (शिक्षकों की संख्या- 310) तथा 19 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (शिक्षकों की संख्या- 222) हैं। इसके अलावा यहाँ 2 पॉलीटेक्निक्स, 1 शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान और 1 मेडिकल कॉलेज भी है।

दिलचस्प है कि यह जनपद फतेहपुर उत्तर प्रदेश के चारों प्रमुख उपभागों- बुंदेलखण्ड, रुहेलखण्ड, अवध और पूर्वांचल का केद्र-बिन्दु भी है। हासिल यह कि वास्तव में यह अकेला जनपद फतेहपुर बुंदेलखण्ड, रुहेलखण्ड, अवध और पूर्वांचल में से पूरी तरह से किसी के भी हिस्से में नहीं आता। हालाँकि इसके पूर्वी छोर की ताल्लुका खागा कभी अवध के राजस्व का हिस्सा जरूर थी। लेकिन जनपद फतेहपुर को पूरी तरह से अवध का कह देना कहीं से भी तार्किक न होगा। इसके बरक्स यह भी है कि फतेहपुर जनपद के पूर्वी भाग में पूर्वांचली, यमुना से सटे दक्षिण में बुंदेली, पश्चिम में रूहेली और गंगा किनारे उत्तर में अवधी संस्कृति का बोध मिलता है। यह इस जिले का भौगोलिक-सांस्कृतिक वैशिष्ट्य है।

एक और बात इसके सन्दर्भ में जानने लायक यह है कि फतेहपुर के पश्चिम में भारत का मेनचेस्टर कानपुर इस जिले से सटा हुआ है और पूरब में प्रयागराज दूसरा महानगर स्थित है। ऐसे में, तमाम विविध महानगरीय सहूलियतें भी इस जनपद को आसानी से सुलभ हैं। ग्राण्ड ट्रण्क रोड हो या फिर दिल्ली-हावड़ा रेल-मार्ग दोनों ही इस जनपद से होकर गुजरते हैं। ऐसे में, दिल्ली और कोलकाता से सहज जुड़ पाना इसे आसानी से मयस्सर है। इन सबके बाद भी यह आज तक आखिर पिछड़ा क्यों बना रह गया, ये न केवल एक विचारणीय अपितु चिंताजनक पहलू है।

फिर भी जब मैं और अधिक खोजता हूँ कि फतेहपुर आखिर आज भी पिछड़ा क्यों है, जबकि यहाँ से विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री और हरिकृष्ण शास्त्री केन्द्रीय मंत्री रहे हैं; इधर बीत रहे दस सालों में साध्वी निरंजन ज्योति के रूप में इस जनपद ने एक और केन्द्रीय मंत्री दिया है, तो माथा और अधिक ठनक जाता है। सोचता हूँ कि ऐसी कौन सी अभिशापित माया है, जिसके दंश से पीड़ित यह जनपद आज भी विकास का आकांक्षी बना हुआ है, जबकि परिस्थितियाँ एकदम अनुकूल हैं कि यह मुख्यधारा में रहे। या कि यहाँ के रहवासी ही इतने दीन-हीन हैं कि वह कभी मुख्य धारा में आने के लिए जोर ही नहीं लगाते।

देखा जाए तो उपजाऊ भूमि, सिंचाई की समुचित व्यवस्था और बेहतर शिक्षा के होते हुए यहाँ सेहत और पोषण में पिछड़ापन होने की गुंजाइश भी नहीं बनती। फिर यह जनपद फतेहपुर आखिर इतने लम्बे समय से पिछड़ा क्यों बना हुआ है और इसका जिम्मेदार कौन है, इन सब तमाम बातों पर गहराई से विचार करने की जरूरत है। तभी हमें इस आकांक्षी जिले की माया का पता चल सकेगा। या फिर यह पिछड़ा बने रहने का कोई प्रायोजन है? क्योंकि नैसर्गित रूप से तो यह जिला बेहद सम्पन्न है। संभव है यहाँ के लोगों और उनके विचार व रवैये के कारण यह आज तक पिछड़ा ही बना हुआ है। बहरहाल, इतना तो तय है कि इस आकांक्षी जिले की माया यहाँ रहने वाले लोगों के मिजाज से ही बनी है, ये कहना गलत नहीं!