इन दिनों देश की
बारिश और मोदी के काशी दौरे को लेकर मैं बड़ा चिंतित हूं और व्यथित भी। दोनो अपनी
अनियमितता के कारण देश की प्रजा को परेशान कर रहे हैं या यूं कहें कि इनकी अनियमितता
के कारण देश का चक्र भी अनियमित हो चुका है।
बदलते मानसून और
बारिश के चक्र ने देश के किसानों व उनकी फ़सल के चक्र को द्युतक्रीड़ा सा बना डाला
है, कि भाग्य है बारिश हो न हो। कहीं बारिश की आस में बैठा किसान दिन काट रहा है,
तो कहीं तिल-तिलहन बोने के बाद घनघोर मूसलाधार बारिश न हो जाए कि खेत के खेत सड़
ही जाएं। इस लिहाज से किसान आसमान की ओर अपने सिर को उठाये गरजते बादलों को देखता
रहता है, ठीक उसी तरह जैसे आजकल बनारस की गलियों के व्यापारी अपनी दुकानों को बंद
किये दिल्ली के सिंहासन की ओर देखता रह जा रहा है कि आज शायद मोदी आयेंगे, आज शायद
काशी को स्मार्ट बनाने वाले वास्तुकार का जून होगा। लेकिन इस कम्बख़्त बारिश ने
सिंहासन से चल पड़े उनके रथ को पथ ही न दिया। लिहाजा मोदी अपने लोगों के बीच यहां
तक कि अपने दत्तक गांव के बीच भी न पहुंच सके। वास्तव में पहली बार किसी सेवक को
अपने स्वामियों के बीच पहुंचने में इतनी कठिनाई देखी है। और यदि ऐसी दिक्कत प्रधान
सेवक के साथ आ खड़ी हो तो निःसंदेह यह एक बड़ी समस्या है। किन्तु यह प्रधान सेवक
तो घबराया ही नहीं, बल्कि इस बार बारिश से बचाव करने के लिए उसने नौलखा नहीं,
बल्कि नौकरोड़ी पण्डाल की जबरदस्त व्यवस्था कर दी। इस बार वो तनिक चूकना नहीं चाह
रहे थे अपने लोगों के बीच आने के लिए। इसलिए कोई दिक्कत न हो, व्यवस्था ‘टाईट’ रहे
इसके लिये पूरे दो दिन पहले से ही एसपीजी ने बीएचयू ट्रामा सेण्टर और डीरेका मैदान(डीएलडब्ल्यू
ग्राउण्ड) सहित हेलीपैड स्थल को अपने कब्जे में ले लिया।
यद्यपि हमारे यशस्वी
प्रधानमंत्री महोदय बनारस आकर 1828.43 करोड़ रुपये का तोहफ़ा देंगे। इस धनराशि से
बनारस की स्वास्थ, सड़क और बिजली की व्यवस्था में बुनियादी बदलाव लाया जायेगा। वह
197 करोड़ से बने बीएचयू ट्रामा सेण्टर का उद्घाटन करेंगे। 250 करोड़ की रिंग रोड
और 450 करोड़ की कचहरी-बाबतपुर फोर लेन योजना के साथ कज्जाकपुरा और चौक विद्युत सब
स्टेशन का शिलान्यास करेंगे। इसके अलावा वह इंटीग्रेटेड पॉवर डेवेलपमेण्ट
स्कीम(आईपीडीएस) और दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना की शुरुआत करेंगे और
विकास योजनाओं की बुनियाद रखने के साथ ही डीरेका मैदान में केद्र सरकार की एक साल
की उपलब्धियां बताएंगे। तथापि प्रश्न यह बन रहा है कि इस काम में दो मरतबा मिली
मोदी को असफलता क्या उनको अभी भी इस काम के लिए बनारस आने को मदमुग्ध करेगी?
हालांकि मात्र स्वजनों से मिलने की चेष्ठा यदि मोदी में होती तो यह इतना दूभर न
था। बावजूद इसके यदि वह इस काम को इतना तवज्जो देते ही हैं तो बारिश के मौसम के
बाद ही चले आते तो कदाचित वाटर-प्रूफ़ पण्डाल की कोई आवश्यकता ही न रहती और तब
सीधे नौ करोड़ बच जाते जो इस पण्डाल के लिए खर्च किये गए थे। हालांकि मोदी तो
रामभक्त हैं, फिर भी वह उनसे भी तो न सीखे कि चौमास में रुक जाया जाये। ऊपर से
मलमास के गरू दिन भी चल रहे थे। यद्यपि स्वयं श्रीराम चन्द्र जी अपने वनवास के
दौरान चौमासे में रुक कर इंतज़ार कर लिया करते थे। तब तो ज़ाहिर है कि मोदी जी
किसी से कुछ नहीं सीख पाते, उनसे भी जिनको वो मानते हैं। वास्तव में उनकी यह ढिठाई
उचित नहीं।
अब अपरोक्त बातों की
शल्यक्रिया करके देखें तो यह मालूम होगा कि मोदी के बनारस दौरे के अब तक दो बार
हुये रद्दीकरण से लोगों में कितनी अव्यवस्था फैली और कितना आर्थिक नुकसान देश का
हो गया। पहली दृष्टि अव्यवस्था की ओर ले जाएं तो उन दिनों, जिस दिन मोदी का दौरा
प्रत्याशित था, वहां के स्थानीय व्यापारियों का सीधे नुकसान, लोगों को आवाजाही और
यात्रा में कथित यथोचित प्रतिबंध और लोगों के बदले काम की प्रकृति प्रमुख हैं।
आर्थिक दृष्टि से देखें तो उन दिनों जो लोग अव्यवस्थित थे उनके द्वारा हो सकने
वाले उत्पादन का नुकसान, व्यवस्थापन में लगे वाहनों में डीजल/पेट्रोल की खपत,
व्यवस्था में लगी कुल लागत, अगुवानी आदि में शामिल अति विशिष्ट की व्यस्तता से
उनके द्वारा लिये गये निर्णयों आदि का सीधा नुकसान या पिछड़ना और 16 जुलाई को
पण्डाल की सजावट में लगे एक ‘कौशल युक्त’ कामगार की दुर्घटना में मौत जैसे भारी
आर्थिक नुकसान पर टिका है मोदी का बनारस दौरा, एक साल में कथित उपलब्धि भरा राग,
ट्रामा सेण्टर का उद्घाटन और चौक विद्युत सब स्टेशन का शिलान्यास जो इतने नुकसान
के बाद भी अभी ठीक से संभव न हो पाया।
मैं ऐसे उद्घाटन
समारोहों के विफल होने के पश्चात हुये नुकसान और आयी दिक्कतों से भलीभांति परिचित
हूं। आज से लगभग तीन बरस पहले जब इलाहाबाद के कीडगंज में बने फ्लाईओवर के
उद्घाटन के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दौरा रद्द हुआ था तो वहां उपस्थित अखिल
जनता(पक्ष-विपक्ष सहित) का रोष, आमजन में फैली अव्यवस्था, विश्वविद्यालय के
विद्यार्थियों के कीमती समय का नुकसान और टूटी यातायात व्यवस्था का मंज़र मैं भूला
नहीं हूं। फिर जहां के आयोजन की अगुवानी में पूरे नौ करोड़ रूपये का पण्डाल और
प्रान्त के राज्यपाल और मुख्यमंत्री स्वागत के लिए तय हो, तो समूचे देश को हुये
आर्थिक नुकसान का अंदाज़ा भलीभाति लगाया जा सकता है।
आश्चर्य कहूं या ख़ेद
मुझे इस बात का है कि पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा को पोषित करने वाले दल
और स्वयं प्रधानमंत्री से ये भूल कैसे हो सकती है। जब स्वयं दीनदयाल उपाध्याय यह मानते
हैं कि बनारस में हुआ उक्त निर्माण अपने आप में कोई महान घटना नहीं है और न ही
प्रधानमंत्री का उनका उद्घाटन करना ही कोई महान सत्कर्म है। फिर प्रत्येक दिन,
बल्कि रोज के हर घण्टे का सदुपयोग करने वाले प्रधानमंत्री उद्घाटन का ऐसा आडम्बर
कैसे कर सकते हैं! वो नेता जो अपने मंत्रियों को चैन की सांस न लेने देने की बात
कहता हो और कम सोने की नसीहत देता हो, ताकि अधिकतम उपयोगिता के सिद्दान्त का पालन
करते हुये अधिकाधिक पैदा किया जा सके, वह इतना भारी नुकसान कैसे कर सकता है। क्या
प्रधानमंत्री मोदी यह स्वीकार करेंगे कि वह उसी विचारधारा के हत्यारे हैं, जिनके
वह स्वयं, उनकी पार्टी तथा वह जिस विचारधारा से जुड़ाव रखते हों वह भी सब उस
विचारधारा के पोषक हैं।
ज्ञात हो कि पण्डित
दीनदयाल उपाध्याय जी की किताब ‘पोलिटिकल डायरी’ जिसका प्रकाशक ‘सुरुचि प्रकाशन’
है, के पृष्ठ सं. 41 में ‘सार्वजनिक बनाम निजी क्षेत्र’ शीर्षक से छपे लेख में 29
जून,1959 ई. को उपाध्याय जी तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू के
द्वारा किये गये एक ऐसे ही उद्घाटन के संदर्भ में लिखते हैं कि “ट्रक का निर्माण
अपने आप में कोई महान घटना नहीं है, किन्तु जब प्रघानमंत्री ऐसे समारोह का उद्घाटन
करते हैं, तब समाचार पत्रों और जनता के लिए वह एक महत्वपूर्ण घटना बन जाती हैं। इस
समारोह के वृतात को प्रथम पृष्ठ के प्रथम श्रेणी का समाचार माना गया। किन्तु जनता
को ‘शक्तिमान’ की ‘शक्ति’ दिखायी नहीं पड़ती। सर्वसाधारण मनुष्य यह नहीं समझ पाता
कि प्रधानमंत्री को इतने सारे कष्ट उठाकर केवल इसलिए जबलपुर क्यों जाना चाहिए कि
वे बटन दबा दें, जिससे तीन टन का एक ट्रक पुर्जा-जोड़ाई स्थल(असेम्बली लाइन) से
थोड़ा दूर लुढ़क जाय। और केवल प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि अन्य बहुत से महत्वपूर्ण
व्यक्तियों ने भी इस समारोह में उपस्थित रहने के लिए समय निकाल लिया। जहां सरकार
के इतने बड़े-बड़े अधिकारी एक साथ उपस्थित हों, तो यह कितनी अशालीनता होती यदि
अधिकारियों का समूह ‘ख़िदमत में हाज़िर’ न रहें! यह अनुसंधान करना काफी रोचक होगा
कि इस समारोह में एकत्र ‘अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों और अनति महत्वपूर्ण व्यक्तियों’
द्वारा कितनी राशि यात्रा-भत्ते के रूप में वसूल की गयी। संभवता यह राशि उस
भाग्यशाली ट्रक से भी बहुत अधिक ठहरेगी।”
वास्तव में जब
प्रधानमंत्री समय के हर भाग के सदुपयोग की कड़ी सलाह दे रहे हों तो निश्चय ही देश
को मितव्ययिता का ख़्याल रखना चाहिए और स्वयं प्रधानमंत्री को तो और भी। किन्तु
बनारस में हुयें इन अपव्ययों के बारे में क्या प्रधानमंत्री मोदी कुछ कह सकेंगे? ज़ाहिर
है कि उनके द्वारा अपनाये गये अब तक के उपयोगितावादी सिद्धान्त सब धराशायी हो चुके
हैं और ऐसा चपल व धारदार व्यक्ति जब डूबता है तो कई कुछ साथ लेकर डूबता है। ऐसे
में आज मोदी की कार्यप्रणाली से देश में संकेत कुछ शुभ नहीं जान पड़ते हैं।
मात्र पण्डाल के लिए
हुए नौ करोड़ के अपव्यय को यदि मितव्ययिता की दृष्टि से देखें तो इसी धनराशि से
बनारस में तीन उपकेन्द्र, 300 लोहिया आवास, 36 मिनी नलकूप बन जाएं। ज़िले के
स्वास्थ केन्द्रों की हालत सुधर जाए। संस्कृत विवि के मुख्य भवन का जीर्णोद्वार हो
जाए, पक्का महाल के गलियों की सूरत बदल जाए, सालिड वेस्ट मैनेजमेण्ट प्लांट बन जाए
और 600 कैंसर व हृदय रोगियों का इलाज संभव हो जाए।
ऐसे में मोदी पूर्णतः
आलोचना के पात्र हैं, जिसकी भरपाई वो कभी नहीं कर सकते हैं। ऐसे में मोदी को उस
विचारधारा का पुनः अध्ययन करना चाहिए जिसके पथ पर वो चल रहे हैं और इससे भी आवश्यक
यह कि वह उसका अनुपालन भी करें। अन्यथा जिस राह पर प्रधानमंत्री मोदी निकल पड़े
हैं उससे देश यह आभास करने लगा है कि देश को मोदी से अशुभ संकेत मिलना शुरू हो
चुके हैं।