Friday, 28 August 2015

रेडियो पत्रकारिता में कैरियर बोलेगा



वैश्वीकरण के इस दौर में कैरियर के विकल्प के रूप में एक क्षेत्र तेजी से उभर कर आया है। यह क्षेत्र है मास-मीडिया यानी जनसंचार माध्यम का। आज प्रायः हर युवती/युवा इस कॅरियर को अपनाना चाहता है। यह फ़ील्ड आज न केवल उच्च पारिश्रमिक देने वाला बन गया हैबल्कि क्रिएटिव और जॉब सैटिस्फैक्शन प्रदान करने वाला भी माना जा रहा है। आज के समय में मीडिया प्रोफेशनल्स को न केवल आकर्षक सैलरी मिल रही है, बल्कि मेहनत  और प्रतिभा के दम पर इस कॅरियर में कम समय में ही काफी प्रसिद्धि हासिल की जा सकती है।
इस क्षेत्र को कॅरियर के रूप में अपनाने का सपना देख रहे युवाओं के पास कठिन परिश्रम और धैर्य का होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि इस क्षेत्र में उच्च मुकाम हासिल करने में समय लगता है। साथ ही साथ बाहर से यह फ़ील्ड जितना चमकदार और सहज नज़र आता है अन्दर से उतना ही ज़्यादा चुनौतीपूर्ण और रोमांच से भरा हुआ है। इसके अलावा यह पेशा अब संकटों में घिरकर लगातार असुरक्षित हो गया है, ख़ासकर जब टेलीविज़न पत्रकारिता में श्रम की मारामारी और नवावसरों का अभाव हो भीड़ और प्रिण्ट मीडिया के संदर्भ में जब बहस इस बात पर शुरू हो चुकी हो कि ‘इज़ प्रिण्ट मीडिया डेड?’ तब ऐसे में नज़रें उस ओर टिकती हैं जहां नये-नये अवसरों की राह दिख रही हो। साथ ही हमें यह भी ध्यान में रखकर चलना होगा कि आज पत्रकारिता का ताना-बाना पूरी तरह से बदल गया है। रोज नये-नये तकनीक और पहलू पत्रकारिता को एक नयी व अलग पहचान दिलाने में लगे हैं।    
इसके बावजूद पत्रकारिता एक रुचिकर, अतुल्य और विविध क्षेत्र है जो आपको विभिन्न कॅरियर क्षेत्रों व अवसरों में ले जाता है। इससे जुड़कर आप समाज के विकास और सशक्तिकरण में अपना योगदान दे सकते हैं क्योंकि पत्रकारिता (मीडिया) का प्रभाव समाज पर लगातार बढ़ रहा है। यहां आप इसके कुछ मुख्य कार्यक्षेत्रों जैसे विश्लेषण, लेखन और संपादन जैसी ज़िम्मेदारी को संभाल सकते हैं। इन सब कार्यों में यहां पर बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा है। इसी कारण से यह क्षेत्र आज सृजनशील युवतियों/युवाओं की पहली पसंद के रूप में उभरा है और ज़्यादातर युवतियां/युवा इस क्षेत्र में संस्थागत अनुशासन के पालन के बाद प्रवेश करना चाहता है।
अब से कुछ समय पहले तक साहित्य में डिग्री और कुशल संवाद क्षमता रखने वाले लोगों को पत्रकारिता तथा इससे जुड़े क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता था। लेकिन मानवीय जीवन में तकनीक के बढ़ रहे हस्तक्षेप ने इस क्षेत्र में ऐसे ट्रेड-प्रोफेशनल्स की ज़रूरत पैदा कर दी है जो सभी तक तेज़ी से सूचनाएं पहुंचा सकें। यद्यपि सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति ने पत्रकारिता को अधिक मज़बूत बनाने के लिए अपना योगदान दिया है, तथापि अब नए लोगों के लिए यहां चैलेंज अधिक है। जबकि स्थिति यह है कि आज भी अंतिम व्यक्ति तक कई माध्यम पहुंच नहीं बना सके हैं। साथ ही साथ इस क्षेत्र में प्रशिक्षित प्रोफेशनल पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं।
उक्त बातों में क्रमशः देखें तो पहली बात यह कि ऐसा कौन सा माध्यम है जो अन्तिम दूर के व्यक्ति तक पहुंच सकता है, तो वह माध्यम रेडियो है। दूसरी, यद्यपि कुछ जगहों पर टेलीविज़न या अख़बार यदि पहुंच भी बना पाए हैं तो अड़चन यह है कि वहां कि लगभग अधिकतम जनसंख्या अनपढ़ है, जो किसी ख़बर को मात्र सरल भाषा में सुनकर ही समझ सकती है। अतः ऐसे विकल्प के रूप में मात्र रेडियो ही वह माध्यम है जो दूरस्थ पहुंच रखता है और  सूचनाओं को सरल, स्पष्ट, और सीधे ढंग से प्रस्तुत कर पाने में सक्षम है क्योंकि सूचना तकनीक के विस्तार और विकास पत्रकारिता के क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को दिनो-दिन विस्तार दे रहे है। रेडियो पत्रकारिता भी इसी में एक है।
एक बात यह भी कि दूर दराजो में सभी जगह एक सी भाषा का इस्तेमाल नहीं होता है इसको ध्यान में रखकर भी रेडियो को मज़बूत बनाया गया है। यही कारण है कि आज आकाशवाणी से 23 भाषाओं और 146 प्रान्तीय भाषाओं में प्रसारण किया जाता है तब जाकर यह भारत के 91.79 प्रतिशत क्षेत्रफल तक और जनसंख्या के हिसाब से 99.14 प्रतिशत तक अपनी सीमा को पहुंचा पाया है, जो कि अन्य माध्यमों में यह इतना आसान सा काम नहीं है। ऐसी संभावना तो रेडियो मात्र में ही है।
वास्तव में तकनीक के विस्तार आदि के अलावा भी तमाम अन्य कारण यथा कइयों का पहले ज़िक्र भी किया जा चुका है हैं, जिन्होने रेडियो पत्रकारिता को स्वतंत्र रूप से एक कैरियर के रूप में स्थापित कर दिया है। हां, यह सत्य है कि रेडियो पत्रकारिता आज के दौर में प्रधान व स्वतंत्र पाठ्यक्रम के रूप में उभर रहा है। अब श्रोताओं को जोड़े रखने के लिए रेडियो और साउण्ड दोनो में तकनीक व स्वरूप में ख़ासा परिवर्तन सामने आ रहा है। ऐसे में इसकी गुणवत्ता और मांग दिन-ब-दिन बढ़ रही है। आज रेडियो का डिजिटलाईजेशन हो चुका है। अब रेडियो पॉकेट में आ चुका है। आज लगभग हर मोबाईल में रेडियो बजता है।
रेडियो पत्रकारिता, पत्रकारिता की एक विशिष्ट और चुनौतीपूर्ण विधा है। यह एक अलग तरह की पत्रकारिता है जिसमें पढ़ने के लिए काग़ज़ पर शब्द नहीं देखे जा सकते, चित्रों के माध्यम से हम किसी भी चीज़ का अहसास नहीं कर सकते हैं और न ही चलचित्रों की सहायता से किसी का दर्शन ही कर पाते हैं बल्कि इसमें शब्दों से तस्वीर गढ़ी जाती है। उन्हीं में हम चलचित्र का अहसास भी कर लेते हैं और उन्हीं शब्दों के भावों को ही हम पढ़कर व अहसास कर सूचनाओं का जीवंत मोल महसूस करते हैं।
रेडियो हमारे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा है। यह हमारे पुराने दोस्तों और परिवार के सदस्यों की तरह है। अक्सर हम कॉफ़ी-शॉप के कॉर्नर पर बैठकर व घरों में भी बैठकर रेडियो का उपयोग करते हैं। इसलिए ये प्रसारण माध्यम का बहुत ही दमदार साधन है जबकि अख़बार पढ़ना बहुत ही एकाग्रता भरा होता है। आज की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में अक्सर पूरे अख़बार से महत्वपूर्ण ख़बरे बहुत सम्भव है कि आप उन्हें पढ़ने से वंचित रह जाएं। टेलीविज़न के सामने भी आपके लिए पूरा-पूरा दिन बैठना सम्भव नहीं है, ऐसे में रेडियो एक सशक्त माध्यम और एक बेहतरीन उपलब्धता वाला साधन बनकर आपके विकल्प के रूप में प्रयोग हो सकता है। रेडियो को आप अपने दफ़्तर जाने वाली गाड़ी में, कैब में, सवारी गाड़ी में और स्वयं आप अपने दफ़्तर में भी सुन सकते हैं। ऐसे में संभव है कि आप दिनभर रेडियो जैसे एक शक्तिशाली संचार माध्यम से घिरे रहे जहां आपको अबाध्य सूचनाएं सरलता और सहजता के साथ उपलब्ध रहें।
रेडियो की पहुंच इंटरनेट और टेलीविज़न से कहीं व्यापक है। रेडियो घर-दफ़्तर की सीमाओं को पार करने में सक्षम है। आप दुनिया के किसी ऐसे सुदूर इलाके का छोर पकड़ लें जहां टेलीविज़न, टेलीफ़ोन या कम्प्यूटर की सुविधाएं न हों, वहां भी एक गादी भर का रेडियो आपको पूरी दुनिया से जोड़ देगा। हिमालय की चोटी हो या हिन्द का हृदय, भुज की भुजाओं से लेकर लोहित के लात तक रेडियो को आसानी से सुना जा सकता है।
रेडियो में संभावनाएं:- यह निश्चित है कि रेडियो माध्यम की संभावनाएं अपार हैं। भारत में  रेडियो का पुनर्जन्म सा हो रहा है। सेटेलाइट, केबल, टेलीविज़न और इंटरनेट जैसे माध्यमों की इस बेहद रोचक दुनिया में रेडियो के भावी स्वरूप के पहले से अधिक स्मार्ट होने की पूर्ण संभावनाएं हैं।
सन् 1990 के मध्य में सरकार ने जो कम्युनिटी रेडियो खोले हैं उनको अधिक संभावना है कि सरकार ख़बरों के प्रसारण की इजाज़त दे दे। ऐसे में देश के इन सभी कम्युनिटी रेडियो को प्रशिक्षित रेडियो पत्रकारों की भारी आवश्यकता होने वाली है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के हवाले से देश में अब तक कुल मिलाकर 436 कम्युनिटी रेडियो की स्थापना की जा चुकी है। साथ ही सरकार और भी दोनों स्तरों के कम्युनिटी रेडियो के स्थापना की मंशा में है।
इसके अलावा सरकार बहुत जल्द इस निर्णय पर भी फैसला ले सकती है जिसमें निजी रेडियो चैनलों को भी ख़बरों के प्रसारण की इजाज़त दे दी जाएगी। ऐसे में इसके बाद की स्थिति का अंदाज़ा ऐसे लगाया जा सकता है जैसे निजी टीवी चैनलों को जब ख़बरों के प्रसारण की अनुमति मिली तो टेलीविज़न पत्रकारिता में कैसा परिवर्तन आया है। दीगर है कि टेलीविज़न चैनलों से रेडियो चैनलों की संख्या बहुत ही अधिक है। अब रेडियो पत्रकारिता में भावी संभावनाओं का आप स्वयं ही मनन कर सकते हैं।
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इण्डिया(ट्राई) के जनवरी-मार्च 2012 के आंकड़ानुसार 245 निजी एफ़एम रेडियो चैनल्स कार्य कर रहे हैं। ध्यान देने योग्य यह है कि धिक संभावना है कि निजी रेडियो चैनलों को ख़बरों के प्रसारण की अनुमति के बाद इन चैनलों की संख्या में इजाफ़ा होगा।
योग्यता विकसित करें:- रेडियो के लिए कैसा लिखा जाना चाहिए व रेडियो पर अच्छी प्रस्तुति के लिए किन तरीक़ों को अपनाना चाहिए और इन सब के लिए किस तरह की तकनीक को इकट्ठा करना चाहिए? रेडियो पत्रकारिता के ऐसे ही कुछ बुनियादी पहलुओं को विस्तार से समझने के बाद आप एक रेडियो पत्रकार बन सकते हैं।
जो युवती/युवा रेडियो पत्रकारिता में अपना कॅरियर बनाकर नाम और पैसा कमाने का सपना देख रहे हैं, अग़र वे पूरी तैयारी के साथ इसमें प्रवेश करें तो उनका रास्ता आसान हो सकता है। याथ ही इसके लिए उन्हें अपने भीतर कुछ ख़ास योग्यताओं को भी विकसित करना होगा जैसे- चुनौतियों से मुक़ाबला करने का साहस, ख़बरों को पकड़ने और उन्हें अच्छी तरह से पेश करने की क्षमता, न्यूज़ सेंस, भाषा पर अच्छी पकड़ व सफ़ाई, लेखन, संपादन, खोज़, नेतृत्व व वार्तालाप में निपुणता, अधिक कार्यक्षमता व तनाव को वहन कर सकने का माद्दा, समय-सीमा के भीतर काम करने का कौशल, सृजनशीलता, विचारों में लचीलापन, टेक्नॉफ़्रेण्डली, एक्टिव लर्निंग व लिसनिंग तथा असपास से लेकर देश-विदेश में होने वाली घटनाओं के प्रति जागरुकता आदि।


“रेडियो पत्रकारिता कॅरियर के लिहाज से फ़िलहाल अभी अधिक आशान्वित क्षेत्र नहीं है क्योंकि अभी ख़बरों को आकाशवाणी ने सीमित करा हुआ है। आज आकाशवाणी में ख़बरों को आईआईएस अधिकारी और कुछ निविदा आधारित युवाओं के द्वारा ही प्रसारित करवाया जाता है। लेकिन अब आने वाले निकट भविष्य में कुछ आशा की किरण जागी है क्योंकि समाचार को अब निज़ी एफ़एम. चैनल्स और कम्युनिटी रेडियो भी प्रसारित कर सकेंगे। इस तरह से अब नयी युवा पीढ़ी केलिए यह एक लाभदायक पेशा होगा।”
                                                                                                                 -शाश्वती गोस्वामी-
कोर्स डायरेक्टर एवं एसोसिएट प्रोफ़ेसर
रेडियो और टीवी पत्रकारिता विभाग
भारतीय जन संचार संस्थाननई दिल्ली।

मौके हैं अनेक:- बतौर  एक रेडियो पत्रकार युवतियो/युवाओं के पास कई तरह के मौके हैं। वे अपनी योग्यता और रुचि के अनुसार इनमें से कोई भी ज़िम्मेदारी संभाल सकता है। इस विधा में एक रेडियो पत्रकार के प्रशिक्षु के लिए प्रमोशन्स को-ऑर्डिनेटर, रेडियो प्रज़ेण्टर, प्रोड्यूसर, पैनल ऑपरेटर, रेडियो सब-एडीटर, नैरेटर, न्यूज़ डायरेक्टर, प्रडक्शन असिस्टेण्ट, कॉरेस्पॉण्डेण्ट, रेडियो प्रोग्रामर,कॉपी राइटर व कम्युनिकेशन ऑफ़ीसर के रूप में मौके ही मौके हैं।
प्रशिक्षण के बाद करें प्रवेश:- जैसा कि हमें पहले ही विदित है कि रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रशिक्षित प्रोफेशनल पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं। वहीं आज के इस प्रतिस्पर्धी समय में हर कोई अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करना चाहता है इसलिए ज़्यादातर युवतियां/युवा इस क्षेत्र में संस्थागत अनुशासन के पालन के बाद प्रवेश करना चाहता है। अतः बिना प्रशिक्षण के इस क्षेत्र में आना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं होगा।
रेडियो पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री के साथ शुरुआत की जा सकती है। इसका प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए किसी भी विषय के साथ 10+2 उत्तीर्ण या स्नातक की डिग्री प्राप्त युवती/युवा मीडिया से जुड़े डिप्लोमा और डिग्री कोर्स करने के बाद इस फ़ील्ड में अपना कॅरियर बना सकते हैं।
इन पाठ्यक्रमों की अवधि एक वर्ष से लेकर तीन वर्ष तक की होती है। विभिन्न संस्थानों में इनकी फ़ीस तीस हज़ार रुपए से लेकर तीन लाख रुपए तक होती है। अधिकांश संस्थानों में प्रवेश परीक्षा के माध्यम से ही प्रवेश दिया जाता है।
आज कई स्कूलों, विश्वविद्यालयों व अन्य संस्थानों में मास-मीडिया के कई तरह के कार्यक्रम संचालित होते हैं, जिन्हें करने के बाद युवतियों/युवाओं को आसानी से मीडिया संस्थानों में काम मिल जाता है। इन कार्यक्रमों में बीजे, एमजे, पीजी डिप्लोमा इन ब्रॉडकास्ट जर्नलिज़्म,पीजी डिप्लोमा इन जर्नलिज़्म व पीजी डिप्लोमा इन मास मीडिया प्रमुख हैं। युवतियां/युवा जहां भी प्रवेश लें रहे हों, इस बात का ध्यान रखें कि उस संस्थान में सैद्धान्तिक से ज़्यादा फ़ील्ड की व्यवहारिक बारीकियों से रूबरू कराया जाता हो।
भारतीय जनसंचार संस्थान में रेडियो पत्रकारिता के प्रशिक्षण का अवसर:- भारतीय जनसंचार संस्थान को हम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन(आईआईएमसी) के नाम से भी जानते हैं। यह भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा स्थापित एक स्वायत्तशाषी संस्था है जो नई दिल्ली में स्थित है। यहां सन् 1997 से रेडियो पत्रकारिता के प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम लागू है। सरकार का उद्देश्य यहां से अच्छे व कुशल रेडियो पत्रकार प्राप्त करना है।
किसी भी विषय में स्नातक युवती/युवा, जो उत्तीर्ण कर चुके हों वो और जो अंतिम वर्ष की परीक्षा दे रहे हों वो भी भारतीय जनसंचार संस्थान में रेडियो पत्रकारिता के प्रशिक्षण के लिए आवेदन कर सकते हैं। आवेदकों की प्रतिसत्र 31 मई को लिखित परीक्षा आयोजित की जाती है। ये परीक्षा युवती/युवा नई दिल्ली, अहमदाबाद, आईजॉल, बैंगलोर, भोपाल, भुवनेश्वर, चेन्नई, गुवाहाटी, जम्मू, हैदराबाद, कोलकाता, कोच्चि, लखनऊ, मुम्बई, नागपुर,पटना, रांची, रायपुर, और श्रीनगर में से अपने संसाधनानुसार कहीं भी सम्मिलित होकर दे सकते हैं।
लिखित परीक्षा में चयनित विद्यार्थियों को जून माह के अन्तिम सप्ताह अथवा जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में साक्षात्कार अथवा समूह चर्चा में भाग लेना होता है। यहां भी युवतियों/युवाओं को चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। साक्षात्कार/समूह चर्चा के बाद लिखित परीक्षा व साक्षात्कार/समूह के क्रमशः 85 व 15 के अनुपात में मिले अंकों के आधार पर अन्तिम सूची निर्गत होती है जिसमें मेरिट के आधार पर उत्तीर्ण कुल 46 लोगों को संस्थान में प्रवेश मिल जाता है।
आयु सीमाः- भारतीय जनसंचार संत्थान में प्रवेश के लिए आयु सीमा भी निर्धारित है। इसमें प्रवेश के इच्छुक सामान्य वर्ग के प्रशिक्षुओं के लिए आयु सीमा अधिकतम 25 वर्ष निर्धारित है। पिछड़े वर्ग के प्रशिक्षुओं के लिए आयु सीमा अधिकतम 28 वर्ष है और एससी/एसटी/विकलांग प्रशिक्षुओं के लिए अधिकतम 30 वर्ष की आयुसीमा का प्रावधान है।
नोटः- ध्यान रहे सभी वर्गों की आयु-गणना मौजूदा सत्र के अगस्त माह की पहली तारीख़  से की जायेंगी।
अवधिः- पाठ्यक्रम की अवधि एक वर्ष की है।
सीटेः- भारतीय जनसंचार संस्थान में कुल 46 सीटें हैं। इनमें 5 सीटें एनआरआई के लिए आरक्षित हैं।
शुल्कः- यहां फ़ील्ड में होने वाले प्रशिक्षण की भरपूर सुविधा मौज़ूद है। इसके अलावा संस्थान का अपना कम्युनिटी रेडियो अपना रेडियो(96.9 एफ़एम)है और साथ ही उच्च श्रेणी के लैब आदि भी हैं।
अतः कुल वार्षिक शुल्क 1,10,000 रुपये है जिसे दो भागों में देना होता है।
वेबसाईटः- www.iimc.nic.in

यह दौर रेडियो के सुरीले दिनों की शुरूआत का दौर है। टेलीविजन के उदारीकरण के बाद रेडियो के फीके पड़ जाने की बहुत-सी आशंकाएं जताई गई थीं। लेकिन यह रेडियो की क्षमता ही है जिस वजह से वह संचार के नए और बेहतर होते साधनों के बावजूद अपने दम पर कायम है और मजबूत भी। प्रधानमंत्री की ‘मन की बात’ से लेकर सामुदायिक रेडियो तक रेडियो ने बहुत से मील के पत्थर बनाए हैं। रेडियो आज भी सुकून का साधन है। रेडियो में कॅरियर को लेकर संभावनाओं की कहीं कोई कमी नहीं। निजी रेडियो से लेकर आकाशवाणी तक रेडियो खुद को नए समय के मुताबिक मांझने को तैयार दिख रहा है। ऐसे में रेडियो का भविष्य भी सुनहरा होगा और उनका भी जो इस माध्यम से जुड़ना चाहते हैं।”
                                                                                                                   -डॉ. वर्तिका नंदा-
 सुप्रसिद्ध लेखिका और पत्रकार

रेडियो पत्रकारिता का कोर्स कराने वाले कुछ अन्य अग्रणी संस्थान

आईआईएमसी के अलावा रेडियो पत्रकारिता का कोर्स कराने वाले देश के कुछ अग्रणी संस्थान निम्लिखित हैं-
1. ज़ेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ़ कम्युनिकेशन्स, मुम्बई।
2. द एशीयन कॉलेज़ ऑफ़ जर्नलिज़्म, चेन्नई।
3. सिम्बियोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन, पुणे।
4. ज़ामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली।
5. मुद्रा इंस्टीट्यूट ऑफ़ कम्युनिकेशन्स, अहमदाबाद।
6. द इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ जर्नलिज़्म एण्ड न्यू मीडिया (आईआईजेएनएम), बैंगलोर।
7. मनोरमा स्कूल ऑफ़ कम्युनिकेशन, कोट्टयम।
8. एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेण्टर, नई दिल्ली।
9. द टाईम्स स्कूल ऑफ़ जर्नलिज़्म, नई दिल्ली।
10. इण्टरनेशनल मीडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया, नोएडा।




  


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