Wednesday, 19 December 2018

सब अपने आप हो जाये


चित्रः साभार
• अमित राजपूत
तेरे लब को चूमूँ तो गुलाब हो जाये,
पत्थर भी पिघलकर जैसे आब हो जाये!
मोहब्बत के दरिया में यूँ तो तैरना न आता है,
दुआ पढ़ता हूँ रोज़, सब अपने आप हो जाये!!

Sunday, 16 December 2018

पुस्तक समीक्षाः जातिभास्कर


जाति को सूर्य की उजली रोशनी में देखने का साधन

• अमित राजपूत
हाल ही में भारत के पाँच राज्यों में एक साथ चुनाव परिणाम घोषित हुये हैं। इनके लिए बीते चुनाव प्रचार के दौरान इक्कीसवीं सदी के भारत में मौजूद एक बड़े और सेकुलर युवा नेता की पहचान बना उसका गोत्र। ये युवा नेता सेकुलरवादियों के सबसे दीप्तमान चिराग़ माने जाने वाले राहुल गाँधी हैं। यूँ तो सेकुलरवादियों को इससे पहले इस तरह से अपना गोत्र उजागर करने की छटपटाहट में पहले नहीं देखा गया है, जैसा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान के पुष्कर में ख़ुद को कश्मीरी कौल ब्राह्मण बताते हुए अपना गोत्र दत्तात्रेय बताया। इसका आशय स्पष्ट है कि अब लोगों में जातीय चेतना किसी न किसी मायने में पहले से ज़्यादा बढ़ी है।

इस बात का और तीखा प्रमाण हमें इसी चुनाव प्रचार में मिला जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान में ही चुनाव प्रचार के दौरान हनुमान को दलित बता दिया अलवर जिले के मालाखेड़ा में एक सभा को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने बजरंगबली को दलित, वनवासी, गिरवासी और वंचित करार दिया योगी ने कहा कि बजरंगबली एक ऐसे लोक देवता हैं, जो स्वयं वनवासी हैं, गिरवासी हैं, दलित हैं और वंचित हैं। इसका प्रभाव यह हुआ कि देश के कई हनुमान मन्दिरों में दलितों ने कब्जा करना शुरू कर दिया। ऐसे समय में यह ज़रूरी हो जाता है कि लोगों द्वारा जाति को अंधेरी बंद कोठरी में टटोलने से बेहतर है कि इसे सूर्य की उजली रोशनी में देखा जाये और इसके लिए हमारे पास अब एक उपयुक्त साधन है जातिभास्कर

जातिभास्कर एक ऐसी पुस्तक है जो भारतीय जातियों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पक्षों को अनेक मतों और सर्वेक्षणों के आधार पर लिपिबद्ध की गयी है। ऐसा करने का प्रशंसनीय और आश्चर्यजनक प्रयास पण्डित ज्वाला प्रसाद मिश्र ने किया है। चूँकि हमारे देश में वर्ण, जाति, गोत्र, अवटंक, शाखा-प्रशाखादि की मान्यताएँ बहुत ही पुराने समय से रही हैं। प्रत्येक समुदाय और अध्येताओं के बीच में इस तरह की मान्यताएँ हमेशा से ही रोचक रही हैं। इसका एक कारण इसकी उलझी हुयी गुत्थियाँ है। इसलिए कोई भी ऐसा साधन जो कि इन गुत्थियों को सुलझाता जाये वह लोगों में कुतूहल पैदा करता है और ये पुस्तक जातिभास्कर वही साधन ही है। इस कारण लोगों को इसकी प्रबल आवश्यकता है।

भारतवर्ष जातियों की बहुलता का देश है और यहाँ प्रत्येक व्यक्ति की पहचान जाति और उसके कुल से ही होती है। इसलिए भारत का सामाजिक वर्गीकरण बहुत ही महत्वपूर्ण है और यह सामान्य सोच का परिणाम नहीं, बल्कि विशिष्ट विचार वाली संव्यवस्था का सूचक है। पूरे विश्वभर में यह ही एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें वर्ण के समानान्तर मानव के कर्मों के आधार पर उसकी पहचान होती आयी है। इसलिए हमें इसकी सटीक जानकारी भी होना आवश्यक है। प्रस्तुत पुस्तक जातिभास्कर भारतीयों की जातियों के संबंध में प्रामाणिक और शास्त्र सम्मत सामग्री प्रस्तुत करती है। लेखक ने बहुत ही शोधानुसंधान करके देश की चारो ही दिशाओं में बसने वाली प्रमुख जातियों के कुल, गोत्र और उनके पेशों के आधार पर शास्त्र सम्मत अधिकतम जानकारी जुटाई है। इस तरह से यह एक औसत पुस्तक से अधिक उपयोगी ग्रंथ ही है। हालाँकि जिस प्रकार से इसके विषय वस्तु की समग्रता है उस हिसाब से यह बेहद कम मात्र 623 पन्नों में ही लिख दी गयी है। वास्तव में यही इस ग्रंथ की विशेषता भी है और कमी भी।

इस ग्रंथ में अनेक जातिकथन, जातियों के लक्षण, पुराणों में जातियों के उद्धरण का विश्लेषण, ब्राह्मण ग्रन्थों में अवंटकों के वर्णन और चक्र, अनेक वंश विस्तार, भौगोलिक रहवासियों के अनुरूप उनके वंशादि की पड़ताल, प्रवरों का निरूपण, अनेक गोत्रों की व्याख्याएँ, उनका वर्णन, साथ ही साथ उन पर विशेष वर्णन का इसमें समाहित होना इस ग्रन्थ की ख़ूबियाँ हैं। इसके अलावा पुस्तक को कई खण्डों में विभाजित कर और भी रोचक बनाया गया है। इसमें दूसरे अनेकविधि ब्राह्मणों की उत्पत्ति, अथ क्षत्रिय खण्डः, वैश्य खण्डः, खाँपखतानी, विचार कोटि की जातियाँ, अथ मिश्रखण्डः, अष्टादश, सप्त समूह, अन्त्यजसप्त  समूह, एकादश समूह और दूसरी संकर जाति कथन जैसे अध्ययन पड़ाव इसे सहज स्वरूप प्रदान कर अध्ययन में रुचि पैदा करते हैं। इसे और बेहतर मुकाम देने के लिए लेखक ने वर्तमान समाज में मौजूद जातियों का वर्गीकरण कृषिजीवी व पशुपालक, वनविहारी, जीवनोपयोगी हस्तकलाधर्मी, यायावर व द्रव्यतापूर्तिकरण, पूजनादि कृत्यधर्मी, गायकादि कलाधर्मी, कवि, वंशवाचक या पोथीकार, याचक, वैश्यधर्मी और योद्धा व लेखक जातियों के समूह में बेहद सुगठित रूप में निरूपित किया है।

इस ग्रंथ की प्रमुख विशेषता इसमें संस्कृत शास्त्रों के प्रमाणिक सन्दर्भ तो हैं ही, इसके अलावा प्रारम्भिक सर्वेक्षणों पर आधारित जानकारियाँ भी  इसे ख़ास बनाती हैं। इसलिए कुल और जातियों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह ग्रंथ जातिभास्कर अति उपयोगी है।

पुस्तकः जातिभास्कर
संपादकः पण्डित ज्वाला प्रसाद मिश्र
प्रकाशकः आर्यावर्त्त संस्कृति संस्थान, दिल्ली।
मूल्यः 600 रुपये।