Monday, 23 November 2020

शिरीष की कलीः भाग-2

 

• अमित राजपूत


 

मुझको छोड़कर चली!

मेरी शिरीष की कली!!

 

नन्हा सा था मन उसका

औ चंचल-शोख अदाएँ!

स्नेह-सिक्त मुस्कान लिए

वो सबका मन भरमाए!!

घट-घट उसको चाहने वाले...

प्राण थी लली।

मेरी शिरीष...

 

चहक-चहककर जब वो मेरे

होश उड़ाती थी!

डाँट-डपटकर अपनापन वो

झोलीभर लाती थी!!

ग़ुस्सा होकर ख़ुद ही मनाती...

इतनी थी भली।

मेरी शिरीष...

 

संग मिला जब मुझको उसका

मिली धरोहर-थाती!

जले जिगर मोरा वही दफ़ा

तब ठंड थी छाती!!

भयी विदाई हुयी पराई...

गल गयी हेमडली।

मेरी शिरीष...

 

मुझको छोड़कर चली!

मेरी शिरीष की कली!!

Tuesday, 3 November 2020

साँझ...

कार्तिक, कृष्णपक्ष/त्रतीया; खागा।


ऐसी साँझ ढले तो रब्बा ढल जाने दो!

प्राची हो तो क्या! प्रतीची में मिल जाने दो!!

संचार के नए प्रयोगों के लबरेज होगा MCU का नया कैंपसः प्रो. केजी सुरेश

प्रो. केजी सुरेश
मीडिया शिक्षक के रूप में पूरी दुनिया को भारतीय दृष्टिकोण से अवगत कराने वाले प्रो. केजी सुरेश ने पत्रकारिता एवं संचार विशेषज्ञ के रूप में अपनी ज़बरदस्त छाप छोड़ी है। भाषायी पत्रकारिता को नया आयाम देने में भी इनकी बड़ी भूमिका मानी जाती है। एक फक्कड़ी पत्रकार होने के साथ-साथ भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक रह चुके प्रो. सुरेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति बनाये जाने के बाद से लगातार चर्चा में हैं। प्रस्तुत हैं 01अक्टूबर, 2020 को अमित राजपूत  के साथ हुयी उनकी बाचतीच के प्रमुख अंश...

• किसी विश्वविद्यालय के कुलपति का दायित्व आपके लिए नया है। इसे आप अपने लिए कितना चुनौतीपूर्ण मानते हैं?
मेरे लिए कुलपति का दायित्व वैसा ही है जैसे IIMC के महानिदेशक का था। दोनो जगह संस्थान की विभागीय बनावट से लेकर अकादमिक उद्देश्य लगभग एक जैसे ही हैं। इसके अलावा मुझे यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेट्रोलियम एनर्जी स्टडीज़ में डीन रहने के अकादमिक प्रशासन के अनुभवों का लाभ भी इस उद्देश्य के लिए मिल रहा है। लिहाजा मेरे लिए कोई ख़ास चुनौती या मुश्किल की बात नहीं है।

• भारतीय दृष्टिकोण से दुनिया को परिचित कराते हुए आपको भारतीय मीडिया के लिए दुनिया के किस दृष्टिकोण ने सर्वाधिक प्रभावित किया?
मुझे पश्चिम के उन देशों ने बहुत प्रभावित किया है, जहाँ पब्लिक हेल्थ कम्युनिकेशन के क्षेत्र में बेहतरीन शोध किए जा रहे हैं। वहाँ कई ऐसे देश हैं, जिनकी संवाद समितियों की यदि आप कॉपी देखें तो उनमें आपको बैकग्राउंडर मिलेंगे। इससे नए पाठकों को संबंधित विषय-वस्तु को समझने में बड़ी आसानी होती है। भारतीय मीडिया में यह मिसिंग है, जबकि पश्चिम में इसकी बेहतरीन परंपरा है। विषय-विशेषज्ञता पर ज़ोर वहाँ की दूसरी प्रभावशाली बात है और इसका कारण है संचार के क्षेत्र में ज़बरदस्त शोध।

• ...लेकिन जनसंचार में शोध की क्या गुंजाइश है, जबकि ज्यादातर विद्यार्थी पेशेवर पत्रकारिता में चले जाते हैं?
बिल्कुल। लेकिन मीडिया में शोध का मतलब केवल पीएचडी ही नहीं है। मीडिया में शोध का सीधा मतलब है कि गूगल सर्च से हटकर अध्ययन, फुटवर्क और दूसरे माध्यमों से जानकारियाँ एकत्र करना और उनका विश्लेषण करके नई दृष्टि देना। इस प्रक्रिया पर बहुत कम पत्रकार चल पा रहे हैं, जिन्हें विचार करने की आवश्यकता है।

• पीएचडी ही शोध नहीं है, लेकिन पीएचडी भी शोध है। लिहाजा एक विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर क्या आपको नहीं लगता कि जनसंचार में शोध की प्रवृत्ति और गुणवत्ता को बढ़ाये जाने की ज़रूरत है? इसके लिए आपके क्या प्रयास होंगे?
सतही और अत्यधिक उपलब्ध साहित्य वाले विषयों पर शोध से हटकर नीतिगत बदलाव ला सकने में समर्थ विषयों का शोध के लिए चयन हमारी प्राथमिकता में होगा। इसके अलावा कुछ अछूते विषयों पर शोध किये जाने की आवश्यकता को भी हम महसूस करते हैं।

• जब आप IIMC के महानिदेशक थे तो वहाँ आपकी कार्यप्रणाली से बड़ा कायाकल्प देखने को मिला था। बतौर कुलपति क्या माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में भी बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे?
देखिए, ये तो वक़्त बताएगा। लेकिन मेरे कुलपति बनने के हफ़्तेभर के भीतर ही जो मैंने फ़ैसले किए हैं उनके बारे में मुझे बताया जाता है कि आजतक इस तरह से फ़ैसले नहीं किए गये। मसलन, सभी संकाय-सदस्यों के लिए सतत् तकनीकी दक्षता का फैसला, क्रॉस-कैंपस टीचिंग का फ़ैसला और हमारे एसोसिएट स्टडीज़ सेंटर्स के अकादमिक ऑडिट का फ़ैसला आदि। इसके अलावा छह-सात महीने में हम अपने कैंपस को बिशन खेड़ी में शिफ़्ट कर लेंगे, जो संचार के नए प्रयोगों से लबरेज होगा। यहाँ बहुत ऐसे नए प्रयोग किए जाएँगे जो शायद ही भारत के किसी पत्रकारिता के विश्वविद्यालय में अभी तक प्रयोग किए गये हैं।