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अमित राजपूत
मुझको छोड़कर चली!
मेरी शिरीष की कली!!
नन्हा सा था मन उसका
औ चंचल-शोख अदाएँ!
स्नेह-सिक्त मुस्कान लिए
वो सबका मन भरमाए!!
घट-घट उसको चाहने वाले...
प्राण थी लली।
मेरी शिरीष...
चहक-चहककर जब वो मेरे
होश उड़ाती थी!
डाँट-डपटकर अपनापन वो
झोलीभर लाती थी!!
ग़ुस्सा होकर ख़ुद ही मनाती...
इतनी थी भली।
मेरी शिरीष...
संग मिला जब मुझको उसका
मिली धरोहर-थाती!
जले जिगर मोरा वही दफ़ा
तब ठंड थी छाती!!
भयी विदाई हुयी पराई...
गल गयी हेमडली।
मेरी शिरीष...
मुझको छोड़कर चली!
मेरी शिरीष की कली!!
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