Monday, 23 November 2020

शिरीष की कलीः भाग-2

 

• अमित राजपूत


 

मुझको छोड़कर चली!

मेरी शिरीष की कली!!

 

नन्हा सा था मन उसका

औ चंचल-शोख अदाएँ!

स्नेह-सिक्त मुस्कान लिए

वो सबका मन भरमाए!!

घट-घट उसको चाहने वाले...

प्राण थी लली।

मेरी शिरीष...

 

चहक-चहककर जब वो मेरे

होश उड़ाती थी!

डाँट-डपटकर अपनापन वो

झोलीभर लाती थी!!

ग़ुस्सा होकर ख़ुद ही मनाती...

इतनी थी भली।

मेरी शिरीष...

 

संग मिला जब मुझको उसका

मिली धरोहर-थाती!

जले जिगर मोरा वही दफ़ा

तब ठंड थी छाती!!

भयी विदाई हुयी पराई...

गल गयी हेमडली।

मेरी शिरीष...

 

मुझको छोड़कर चली!

मेरी शिरीष की कली!!

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