Thursday, 18 August 2022

सावन, संगम और शिव

चौदहवीं की साँझ काली

संग साक्षी पीहू आली!

क्या ग़ज़ब श्रृंगार करके

आ खड़े हैं मेघ देखो;

हाय! देखो उनके श्री से

आसमाँ पे कृष्ण-लाली!!

 

ये जो सावन रुक गया है

रुक गये हैं शिव के नंदी!

गिर बने बादल खड़े हैं

उनके पीछे अर्क बंदी!!

 

दृश्य गोचर जो बना है,

वो अगोचर अनजना है!

हाय! पर्वत है लुभाता

मेघों का जो तन तना है!!

 

मानों उनकी ओट लेकर

'मित्र'वर मुँह धो रहे हैं!

साँझ माता हकबकाती

थार नूतन सज रहे हैं!!

 

वासुकी वायव्य-गिर पर

जा खड़े हैं तनतनाते!

ज्येष्ठश्री नैऋत्य के गण

मंजरीयाँ लहरहाते!!

 

कुल सकल तीरथ...

दरस करने कहो क्या आ गये हैं!

जान पड़ता तीर्थसंगम में अमावस-

पूर्वसंध्या को स्वयं शिव आ गये हैं!!

 • अमित राजपूत





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