Tuesday, 7 November 2023

मोर सखा...

अवध-भूमि के स्वच्छ-गगन में,

इक बाल हँसा, इक़बाल हँसा!

रमामाई मय एकदशी को,

जन्मलिया था मोर सखा!!

 

ले वैशेषिक की परादृष्टि,

स्नेहिल-तुषार की शुभ्र-वृष्टि!

जिसके जन्मे से धन्य सृष्टि,

मुझे अतिप्रिय है वो, लो स्पष्टि!!

 

वो सामवेद का साक्षी है,

विद्याश्री-युत् उसकी आभा!

रमापुत्र चिक्लीत वही,

वो देवसखा-सा गांभीर्य!!

 

रेशू उस देह विराजी है,

वो वाम अंग सौभाग्यी है!

दक्षिण में उसके अमित शक्ति,

हृदयस्थल पर निश्चल भक्ति!!

 

वो लगता सबका हमदम सा,

उद्देश्य में जैसे कर्दम सा!

वो तेजेश्वर है जातवेद,

औ यदा-कदा मेरे श्रीप्रदा!!

 

वो तिग्म-अंशु लावण्यपूर्ण,

सिर पर इक जटा निराली है!

काम-क्रोध-मद-लोभ विजयी,

वो शिव का जैसे आली है!!

 

वो तूबा है हर संगत की,

पारद-समान गुण रंगत की!

वो स्वर्ण-भस्म जाँचा-परखा,

जन्म लिया था मोर सखा!!

 

हाँ, अवध-भूमि के स्वच्छ-गगन में,

इक बाल हँसा, इक़बाल हँसा!

रमामाई मय एकदशी को,

जन्मलिया था मोर सखा!! 


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