आईआईएमसी के 'स्वर्ण-बैच'
का दीक्षांत समारोह होना सुनिश्चित हो गया है। लम्बे अरसे के बाद यह
फैसला लिया गया है। प्रतीत होता है की आईआईएमसी के स्तम्भ इस क़दर कमज़ोर हो गए
हैं कि अब इसे इतराना नहीं आता, उम्मीद है कि कोई सिकन्दर
इसे अपना लक्ष्य भी बना बैठे।
आलम यह है कि एक तो इननी लतीफी के बाद
दीक्षांत समारोह होना सुनिश्चित हो पाया हो, उसमें भी
पंगु प्रशासन ने किसी क़ायदे के मुख्य अतिथि को आमंत्रित कर पाने में अपनी असफलता
का परिचय दिया है। उम्मीद यह भी है कि शायद संस्थान में मतैक्य न होने से इसकी
शक्तियां बिखरी पड़ी हैं, जिसका परिणाम हमारे सामने दिख रहा
है कि जहां स्वर्ण दीक्षांत में माननीय प्रधानमंत्री या महामहिम राष्ट्रपति के
बतौर मुख्य अतिथि आने के बजाय उसके मंत्रालय के एमओएस से ही काम चलाया जा रहा है,
केन्द्रीय मंत्री तक भी अब इनकी संप्रेषण-शक्ति नहीं रही या फिर ये
कहें कि हमने तो कहा था वो हमारी सुने ही नहीं। मुझे लगता है कि राज्यमंत्री भी
शायद इसलिए चले आ रहे हैं कि उनका आवास वहीं पड़ोस में बसन्त कुंज में है वरना...
हे भगवान!
बेहतर होता कि आप आईआईएमसी की धरोहर को ही
तवज्जो देते। एमओएस से ठीक तो यही था कि आप हमारे किसी बेहतरीन पुरा छात्र को ही
बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित कर लेते, विदित है कि
संस्थान के पुरा छात्र इस पद को संभाल पाने में एक एमओएस से काफी खरे हैं। निश्चित
है कि यह स्वर्ण-बैच अपने अभिभावक से यह सम्मान पाकर गर्व का अनुभव करता। लेकिन
आपने तो ऐसी स्तरहीनता दिखाई है कि मन खिन्न हो गया है। उत्साह जाने किस लोक में
जा दुबका है कि उसे ढूढ़ने जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं हम।
यही प्रक्रिया होती है किसी संस्थान की
गुणवत्ता और उसके अतीत या वर्तमान के उन्माद पर दीमक लगने की। ज़िम्मेदार
कौन-कौन..?? आत्म मन्थन का वक़्त शेष है।
सादरः एक आईआईएमसिएन।
No comments:
Post a Comment