Thursday, 31 March 2016

मोदी के घर देर है अंधेर नहीं...



पिछले कई महीनों से आईआईएमसी के महानिदेशक की नियुक्ति को लेकर मंत्रालय से लेकर कुछ दफ़्तरों के कोनों तक खूब उठा-पटक चली। इसमें दूरदर्शन महानिदेशालय मल्ल-युद्ध का मुख्य आखाड़ा हुआ करता था। हालांकि ये युद्ध अब जीता जा चुका है। ज्ञात हो कि अन्ततः श्री के. जी. सुरेश सर को अप्वाइंट्समेण्ट कमेटी की समिति (एसीसी) ने भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक पद पर आगामी तीन सालों के लिए नियुक्त कर दिया है। वास्तव में यह इस संस्थान और देश की भावी संचार कौशल की पीढ़ी के लिए शुभ संकेत है। निश्चित है कि देश में पत्रकारों की और मंझी खेप निकलेगी।

यद्यपि सुरेश सर की नियुक्ति पर एसीसी की नियुक्ति-घोषणा के बाद अभी मंत्रालय की औपचारिक मुहर लगनी बाक़ी है। कयास ये लगाए जा रहे हैं कि सम्भवतः मंत्रालय की ओर से कुछ हेर-फेर भी हो सकता है, हालांकि मंत्रालय ऐला ख़तरा अब लेगा नहीं क्योंकि यह खेला कई महीनों से चल रहा है और परिणाम मंत्रालय को भलीभांति मालूम है तभी ये परिणआम सामने आया है। इसलिए सम्भावना है कि मंत्रालय समिति की इस नियुक्ति पर पूर्णतः राज़ी है। फिर भी यदि कुछ विपरीत संभावनाएं देखी गईं तो निश्चित मानिए आईआईएमसी के पुराछात्रों, तमाम पत्रकारों और बुद्धिजीवियों द्वारा इसका कड़ा विरोध होगा ही होगा और इसमें हम जैसे युवा पत्रकारों की भूमिका अधिक तीक्ष्ण हो सकती है। ख़ास बात यह भी कि हम निजी रूप से इसमें अगली पंक्ति में खड़े नज़र आएंगे, फिर चाहे दिल्ली को इलाहाबाद ही बनाना पड़ जाए...।
फिलहाल ओइम् शान्ति!!!
मोदी के घर देर है अंधेर नहीं।

सरोकारी विमोचन...



जब पूरी दुनिया आईएसआईएस के दंश को झेल रही हो और खुलेआम जिहाद के बेढंगे राग के साथ हिंसा का नंगा नाच नाचा जा रहा हो तब ऐसे में भारत को इस जिहादी ख़तरे से भला कोई सरोकार क्यूं न हो, वो भी तब जब भारत को लगातार जिहादी धमकियाँ मिल रही हैं...

एक भारतीय मुसलमान के द्वारा इस्लाम में किस तरह से सुधार लाया जा सकता है, कुछ ऐसे ही पहलुओं को कुरेदनें का उम्दा प्रयास तुफ़ैल अहमद ने अपनी क़िताब "Jihadist Threat to India" में किया है। तुफ़ैल दक्षिण एशिया की इस्लामिक गतिविधियों और उर्दू मीडिया पर पैनी नज़र के साथ विशाल जानकारी रखते हैं।
कल विवेकानन्द इंटरनेशनल फ़ाउण्डेशन में तुफ़ैल अहमद की क़िताब "Jihadist Threat to India" का विमोचन भारत सरकार के केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री श्री किरण रिजिजू के कर कमलों द्वारा किया गया।

यहाँ विमोचन के अलावा रॉ के पूर्व प्रमुख श्री विक्रम सूद जी की अध्यक्षता में 'Jihadist Threat to India: The Case for Islamic Reformation by an Indian Muslim' विषय पर एक सार्थक विमर्श भी हुआ। इसमें भारतीय थल सेना के भूतपूर्व जनरल एनसी विज सहित सुशांत सरीन और लेफ्टिनेण्ट जनरल अता हसनैन शामिल थे।

दिलचस्प है कि क़िताब "Jihadist Threat to India" का प्रकाशन 'INFOLIMNER MEDIA' ने किया है और इस प्रकाशन के मालिक नलिन कुमार और और लेखक तुफ़ैल अहमद दोनो ही आईआईएमसिएन्स हैं.


Thursday, 3 March 2016

बसंती फुहार और हमारा समागम...


बसंत ऋतु चल रही है और हम हैं परदेश में। आज सुबह दफ़्तर निकलने के लिए कॉलोनी से जैसे ही क़दम निकाले, गुनगुनी धूप ने अपने चेहरे को बादल की ओट में छुपा लिया और बसंती छांव लिए कुछ फुहारें आकर मेरे चेहरे को छूकर होठों तक आ पहुँचीं। ये बसंती फुहारे हैं, जिन्होने मेरा रास्ता रोक लिया है शायद ये बताने के लिए कि ये चिन्तन और एहसासों की ऋतु है। लिहाजा मैं रुका और मैने महसूस किया कि जैसे किसी ने मुझसे कुछ कहा हो। शायद ये बसंती फुहारे किसी का संदेश लेकर आयी हैं। आज ही मुझे पता चला कि प्रकृतिक सरोकारो में प्रेम के ख़त सिर्फ़ कबूतर ही नहीं लाया करते हैं। मेरा तो डाकिया ही निराला है.. ये बसंती फुहार, जिससे मैं भीतर तक भीग गया हूँ।
आज तो घण्टे कटने से रहे। दफ़्तर में आज का मिलने वाला पारिश्रमिक हराम होगा, क्योंकि मन तो मेरा मुझे मिले इस ख़त के भावों में ही उलझा पड़ा है। मेरी प्रेमिका का ख़त। हाँ, मेरी प्रेमिका का ख़त। मेरी प्रेमिका, जिसका एहसास मेरे क़स्बे के दक्षिणी छोर से शुरू होता है और मेरे मन से होकर कहीं मन के भीतर ही किसी अनन्त छोर पर ग़ुम हो जाता है। मेरी प्रेमिका, जिसके साथ मैं बड़ा हुआ। मेरी प्रेमिका, जो मेरे छोटे होते कपड़ों का सनद है और जो मुझे आज भी अपने वात्सल्य में समेट कर पेशेवराना झंझावत से दूर प्रेम और बस प्रेम का ही एहसास कराती है। मेरी प्रेमिका, मेरे क़स्बे की मिट्टी।

ऐसी जाने कितनी बसंती फुहारों में हम मदमस्त होने की जगह सुलगते ही रहे हैं एक-दूजे से मिलने को, एक-दूसरे के चंद दीदार को। लेकिन इस बार सीमाओं के पार जाकर एक अदद आलिंगन की तमन्ना है। इसलिए आज का दफ़्तर जल्दी ख़त्म कर राजधानी को छोड़ सीधे अपने क़स्बे का रुख़ करना है मुझे। इस बसंत को मैं अपने जीवन के बेहतरीन लम्हों में संजो लेना चाहता हूँ। बसंत में दो रंग ही दिल को सुकून देते हैं मुझे। पहला धानी और दूसरा भगवा। इसीलिए ख़्वाहिश है मेरी कि जब मैं अपने क़स्बे पहुचूँ तो मेरी प्रेमिका धानी कुर्ते पर भगवा दुपट्टे की सरपरस्ती लिए मेरे इंतज़ार में यादों की दीवार की ओट लिए खड़ी हो। हालांकि इस दफ़ा भी डर लगता है कि जीवन के तमाम सरोकार को लिए मुझे उसके एक स्पर्श के बिना ही दिल्ली की अंगारी परिकर पर सोने फिर से लौट आना पड़ेगा। कम्बख़्त कहूँ या ख़ास सखा मैं इन शब्दों को, क्योंकि ये शब्द ही हमारा मिलन होते हैं हर बार और ये बसंती फुहार ही हमारा समागम... उफ्फ!!

Wednesday, 2 March 2016

साक्षात्कार... डॉ. महेश चन्द्र शर्मा



 कोई चीज़ स्वदेशी है इतने मात्र से ही वह ग्राहीय नही होती हैं। विदेशी होने मात्र से त्याज्य और स्वदेशी होने मात्र से ग्राहीय ऐसा दीनदयाल जी नहीं मानते हैं। छुआछूत भी स्वदेशी है, लेकिन वह ग्राहीय तो नहीं है। इसलिए जो स्वदेशी है उसे युगानुकूल यानी युग के तर्क के अनुकूल बनाना और जो विदेशी है उसको देशानुकूल बनाना चाहिए।


पण्डित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति और इसके दर्शन का एक ऐसा नाम है जिसने जनसंघ के मंच से भारत को एकात्म मानववाद के दर्शन के साथ-साथ अर्थायाम् के रहस्य और राष्ट्र जीवन की दिशा को प्रदर्शित करने का सकारात्मक प्रयास किया है। उनके ये विचार और राज-व्यवस्था के पैमाने भारत की किसी भी सरकार के लिए अपनाना यहां की प्रजा के लिए एक सुखद व हितकर हो सकता है। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी के उदय के साथ पं. दीनदयाल के विचारों का विकल्प गांधी को तलाश लिया गया, लेकिन अब एक बार फिर पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचारों पर राष्ट्र जीवन की दिशा तय की जा रही है और इसका सबसे जीता जागता उदाहरण हमें इस बार के बजट में देखने को मिला है, जिसमें पंण्डित दीनदयाल उपाध्याय के ग्रामोत्थान और अन्त्योदय के सिद्धान्तों पर अमल किया गया है जिससे यह बजट पूर्णतः किसान, कृषि और ग़रीबों के लिए माना जा रहा है। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को आत्मसात करने वाले एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ. महेश चन्द्र शर्मा के साथ दीनदयाल जी के विचारों की इस बजट से प्रसंगिकता का साझा विश्लेषण कर रहे हैं अमित राजपूत-

• इस बजट को आप पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के कितने नज़दीक देखते हैं?
मैं समझता हूँ कि दीनदयाल उपाध्याय जी ने भारत की राजनीति और अर्थनीति के लिए जो दिशा दी है, उस दिशा की ओर जाने वाला यह देश का पहला बजट है, क्योंकि भारत की अर्थनीति ग्रामाधारित है और ग्रामाधारित अर्थनीति की रीढ़ है कृषि। मैं समझता हूं कि कृषि पर जितना फोकस इस बार किया गया है उतना पहले कभी भी नहीं किया गया है। भारत की कृषि ही है जो देश को रोजगार प्रदान करती है। श्रीमान् नानजी देशमुख ने दीनदयाल जी के विचारों को एक नारे में व्यक्त किया है और वह उद्घोष है- हर खेत को पानी-हर हाथ को काम। दीनदयाल जी ये मानते हैं कि देश के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है शिक्षा, सुरक्षा और स्वावलम्बन।
• दीनदयाल जी के आर्थिक विचारों का केंद्र विकेंद्रीकरण है। बजट में घोषित तमाम योजनाओं को अन्तिम पंक्ति तक ले जाने के लिए आपको ये लगता है कि सरकार इसके लिए कोई ख़ास तरह की तैयारियाँ भी करेगी या फिर यह पूर्व की भांति हवा-हवाई ही होगा?
जहां तक मैं समझता हूं दीनदयाल जी विकेन्द्रीकृत व्यवस्था की ही बात करते हैं जिसको जनपदीय स्तर पर विकेन्द्रीकृत होना है। जब तक वह व्यवस्था नहीं आती है तब तक आज की सरकार को आज की व्यवस्था में ही काम करना होगा और इसके लिए सामान्यतः श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इस बात का बार-बार आग्रह किया है कि हमारा जो फेडरेशन है वह कॉपरेटिव फेडरेशन है और इसलिए देश की सारी संस्थाएं जिसमें केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें, पंचायतें सब मिलकर काम करती हैं। विकेन्द्रीकरण को ये सब संस्थाएं मिलकर ही ला सकती हैं, केवल केन्द्र सरकार ये काम नहीं कर सकती। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि इस बजट की जो भावना है उस भावना के अनुकूल देश की सभी निकायें काम करेंगी।
• बजट पेश होते ही लोगों की दृष्टि कृषि की ओर मुड़ गई है। क्या इस बजट से कृषि में क्रान्ति आएगी?
क्या आएगा यह तो भविष्य कोई तय नहीं कर सकता है, पर इस बजट की ही यदि चलेगी तो कृषि में इतना सुधार होगा जो आज तक कभी नहीं हुआ।
• देश का युवा खेती की ओर कैसे उन्मुख हो सकता है?
खेती जब लाभप्रद होगी, खेती जब सम्मानजनक होगी तो युवा उस तरफ अवश्य झुकेगा। जो बजट की मंशा है समाज को भी अपनी मानसिकता उस तरफ करनी होगी, क्योंकि सम्मान तो समाज देता है और इसलिए यदि खेती की व्यवस्था को समाज सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेगा तो युवा उस ओर नहीं झुकेगा।
• कोई किसान सर उठाकर ये कब कह पाएगा कि हाँ, मैं किसान हूँ?
वह कह पाएगा क्योंकि जिस प्रकार से इस बजट में कृषि को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है उसी प्रकार से यदि व्यवस्था कृषि अभिकेन्द्रित रहेगी तो किसान जो आज लाचार दिखता है वह कल स्वाभिमानी हो जाएगा।
• अब तक देश में एक भी कृषि नीति नहीं बनाई गई है। क्या यह सरकार देश को कृषि नीति दे पाएगी?
सरकार को कृषि नीति देना चाहिए, अब सरकार इस दिशा में किस ढंग से काम कर रही है, वह इस बारे में किस तरह से क्या सोचती है ये तो सरकार ही बेहतर बता पाएगी, लेकिन मुझे कृषि और किसानों के लिए सरकार की मंशा सही दिशा में जान पड़ती है।
• बजट के बरक्स विपक्ष अपने पारम्परिक रवैये में नहीं दिखा। इस बात को आप किस तरह से देखते हैं?
ऐसा है कि सत्ता हो चाहे विपक्ष आख़िर दोनो देश के लिए काम करते हैं और इसलिए यदि देश आज सर्वानुमति व सर्वसम्मति से चलता है तो यह हमारे लोकतंत्र का शुभ लक्षण है इसका स्वागत किया जाना चाहिए। सरकार की दमदार नीतियां और विपक्ष की समझ से ही शायद ऐसा देखने को मिल रहा है।
• डिजिटल इण्डिया, सुपर फ़ास्ट ट्रेन, मेक इन इण्डिया और स्मार्ट सिटी जैसे भारी निवेश यानी एक तरह से कहे तो एफ़डीआई के द्वारा प्रधानमंत्री जी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में विकेंद्रीकरण की कितनी सम्भवनाएं हैं?
जितने भी आपने नाम लिए हैं मैं समझता हूं कि इन सबका सम्बन्ध विकेन्द्रीकरण से नहीं है, इनका सम्बन्ध आधुनिकीकरण से है। देश में पहले आधुनिकीकरण आये और फिर वह विकेन्द्रित हों इसकी ज़रूरत है। मैं समझता हूं कि नई पीढ़ी इन विषयों में अधिक प्रतिभासम्पन्न है और वह ज़रूर प्रधानमंत्री जी के आह्वान को उचित प्रतिक्रिया देगी।  
• दीनदयाल जी ने स्व-साधन स्व-उत्पादन और स्व-उपभोग के द्वारा स्वाभिमान की बात की है, लेकिन विदेशी पूंजी और विदेशी तकनीक से यह कैसे सम्भव है?
दीनदयाल जी का एक वाक्य है और वह यह है कि कोई चीज़ स्वदेशी है इतने मात्र से ही वह ग्राहीय नही होती हैं। छुआछूत भी स्वदेशी है, लेकिन वह ग्राहीय तो नहीं है। इसलिए जो स्वदेशी है उसे युगानुकूल यानी युग के तर्क के अनुकूल बनाना और जो विदेशी है उसको देशानुकूल बनाना चाहिए। विदेशी होने मात्र से त्याज्य और स्वदेशी होने मात्र से ग्राहीय ऐसा दीनदयाल जी नहीं मानते हैं। जब हम बात करते हैं मेक-इन-इण्डिया की तो उसका अर्थ ही यह है कि जो विदेशी पूंजी आएगी तो वह भारतानुकूल होकर ही यहां पर काम करेगी।
• गांधी जी पर कितनी गोलियां चली थीं इस तथ्य को डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी उजागर करवाने की बात कर रहे हैं, तो क्या दीनदयाल जी के रहस्यमयी असामयिक मृत्यु की जाँच कराएगी वर्तमान सरकार?
दीनदयाल जी अब नहीं हैं। कोई जांच या कोई सरकार अब उनको वापस नहीं ला सकती है। बड़ा रहस्य है उनकी मृत्यु और उसको यदि कोई खोज सके तो ये उनका काम है जो रहस्यों को खोजा करते हैं। मेरी अपेक्षा है कि लोग दीनदयाल जी के विचारों को जाने और उनको माने। इसलिए देश में एक निकाय है जिसका काम है रहस्यों को जानना वह अपना काम करे।
• क्या यह कहा जा सकता है कि पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचारों के साथ बीजेपी की जनसंघ में वैचारिक घर वापसी हो रही है?
जनता पार्टी से बीजेपी का निकलना एक ऐतिहासिक राजनैतिक प्रकिया के तहत वो हो गया है। बीजेपी अब एकात्म मानववाद और दीनदयाल जी को आधिकारिक रूप से अपनी विचारधारा मानता है। इसके अलावा घर वापसी तो उनकी हुआ करती है जो कभी घर से बाहर गए हों। भारतीय जनता पार्टी दीनदयाल जी के वितारों से परे ही कब हुई है। बीजेपी आरम्भ से ही पं. दीनदयाल जी के विचारों को ग्रहण करती आयी है और अब लोगों को लगता है कि इसका कुछ नाम देना ज़रूर लगता है तो वह देते रहें।