• अमित राजपूत
बीते दिनों डेंगू के प्रकोप और इससे होने वाली
मौतों व भावी स्थितियों के प्रति शिथिलता के चलते माननीय उच्च न्यायालय की फटकार
ने प्रदेश सरकार और उसके सम्बन्धित अधिकारियों को शर्मसार कर दिया है। डेंगू की
भयावहता पर कोर्ट का मिजाज़ इस क़दर गम्भीर हुआ कि मुख्य सचिव तक को तलब कर दिया
गया। इसके चलते आनन-फानन में तमाम ज़रूरी क़दम उठाए गए हैं। प्रमुख सचिव
(स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा ने विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक कर चार
बीमारियों को महामारी घोषित करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है। इसमें डेंगू, चिकुनगुनिया, फाइलेरिया और मलेरिया को शामिल किया
गया है। ज्ञात हो कि केन्द्र सरकार ने इसी वर्ष जून में इन बीमारियों को महामारी
की श्रेणी में चिह्नित कर लिया था। ऐसे में सूबे की सरकार को चाहिए तो यह था कि वो
इसे लेकर अपने प्रदेश में भी ध्यान देती लेकिन वह तो अपने सियासी झगड़ों में ही
मसगूल रही। परिणाम यह हुआ कि इसके लिए न्यायालय को फटकार लगानी पड़ी और सरकार से
पूछा गया कि सूबे में राष्ट्रपति शासन क्यूं न लगा दिया जाए।
यद्यपि सूबे के आला अफ़सरों ने न्यायालय के भय
से डेंगू के लिए अपनी कमर कंस ली है, लेकिन उनकी
कमर का यह बंधन लम्बे समय तक बंधे रहने की मियाद चाहता है क्योंकि डेंगू के बाद
स्वाइन फ्लू अपनी दस्तक दे सकता है जिसके लिए इन्हें अभी से तैयार रहना होगा।
वास्तव में किसी भी बीमारी या महामारी से
निपटने के लिए सरकार और सोसायटी पहले से कोई तैयारी नहीं करता है। सरकार की तैयारियों
की बात करें तो वह यही बताती है कि हमने कितने करोड़ रुपए दवाईयों के भण्डारण और
अन्य व्यवस्थाओं पर खर्च किए हैं। जबकि ज़मीनी सच्चाई यह है कि यदि सरकार इन
बीमारियों पर अपने ख़र्च का एक तिहाई पैसा भी उन कारकों पर खर्च कर दे जिनसे ऐसे
संक्रमण फैलते हैं तो काफी हद तक इन बीमारियों से बचा जा सकता है। इनमें नालियों
का सुगम बहाव, उनके ढकने का समुचित प्रबंध, जल भराव, कूंड़े का रख-रखाव और तमाम रोज़मर्रा से
जुड़ी चीज़ों की बेहतर का समायोजन शामिल है।
हल्के में ना लें स्वाइन फ्लू कोः
यह बीमारी मैक्सिको से शुरू होकर आज 45 से
अधिक देशों में फैल चुकी है जबकि सन् 2009 तक इसका संक्रमण 39 देशों तक था। स्वाइन
फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है, जो ए-टाईप के
एन्फ्लुएंजा वायरस के कारण होती है। इसका वायरस ‘एच-1
एन-1’ के नाम से जाना जाता है।
भारत में सन् 2009, 2010, 2012, 2013 और 2015 के
मामलों सहित अब तक राजस्थान, गुजरात, हरियाणा,
पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र,
मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु,
तेलंगाना और आन्ध्रप्रदेश इसकी चपेट में रहे हैं। पिछले साल उत्तर
प्रदेश भी इसकी चपेट में था जिसमें कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था। स्वाइन
फ्लू का मौसम दस्तक देने वाला है और मुसीबत बताकर नहीं आती है, ऐसे में सरकार और उनके अधिकारियों सहित लोगों को भी इस तकह के प्रयास अभी
से ही शुरू कर देने चाहिए कि स्वाइन फ्लू पैलने ही न पाए।
ऐसे फैलता है स्वाइन फ्लूः
जब आप छींकते या खांसते हो तो हवा में या
ज़मीन पर या फिर जिस भी सतह पर थूंक अथवा मुंह व नाक से निकले द्रव के कण गिरते
हैं वह वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से
दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के ज़रिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन दरवाजे, फोन, मोबाइल, की-बोर्ड या
रिमोट के ज़रिए भी इसके वायरस फैल सकते हैं, अगर इन चीज़ों
का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो।
स्वाइन फ्लू के वायरस में चिड़ियों, सुअरों और इंसानों में पाया जाने वाला जेनेटिक मटेरियल भी होता है। वास्तव
में पीसीआर परीक्षण के बाद ही यह पता चलता है कि किसी को स्वाइन फ्लू है। लक्षण का
पता चलने के 48 घण्टे के भीतर इसका इलाज शुरू हो जाना चाहिए क्योंकि एच-1 एन-1
वायरस स्टील व प्लास्टिक में 24 से 48 घण्टे, पेपर व कपड़ों
में 08 घण्टे, हाथों में 30 मिनट और टिश्यू पेपर में 15 मिनट
तक सक्रिय रहते हैं। इन्हें ख़त्म करने के लिए डिटर्जेण्ट, एल्कॉहॉल,
ब्लीच या साबुन का उपयोग कर सकते हैं। लक्षण दिखने के 48 घण्टे पहले
से लेकर आठ दिन बाद तक इसके ट्रांसमिशन का ख़तरा बना रहता है।
जब महामारी बन बैठा स्वाइन फ्लूः
1976 और 1988- अमेरिका
2007- फिलीपीन्स
2009- उत्तरी आयरलैण्ड
2015- भारत और नेपाल
2016- पाकिस्तान
स्वाइन फ्लू न फैले इसके लिए ध्यान दें कि-
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों ने कुछ विशिष्ट उपाय
अपनाने की सलाह दी है जैसे कि कफ़ पैदा करने वाले भोजन से परहेज करना आदि। केन्द्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद (सीसीआरयूएम) ने यूनानी विशेषज्ञों के साथ विस्तार से परामर्श किया है और कुछ
निवारणात्मक उपाय जैसे काढ़े, चाय, अर्क, विशिष्ट यौगिक सूत्रों का उपयोग करने, विशेष प्रकार के ‘रोगन’ स्थानीय रूप से लगाने तथा हल्का भोजन एवं व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए
रखने की सलाह दी है। हर दिन आप इन सामान्य सी लगने वाली बातों की तरफ़ ध्यान देकर
इससे बच सकते हैं। जैसे-
• इधर-उधर कचरा नहीं फैलाना चाहिए और अपने
आसपास सुगन्धित व स्वच्छ वातावरण बनाकर रखना चाहिए।
• सरकारों द्वारा समय-समय पर मानसून बदलने
के साथ हवा की जांच कर उसके अनुसार रहने के निर्देश ज़ारी किए जाने चाहिए।
• नालियों का पानी राके नहीं, उसे लगातार बहने दें और नाली को ढक कर रखना चाहिए।
• पूरे कपड़े पहनकर ही घर से बाहर निकलना
चाहिए।
• खांसी या छींक आने पर रुमाल अथवा टिश्यू
पेपर का प्रयोग करना चाहिए।
• इस्तेमाल किए गए मास्क या पेपर को ढक्कन
बंद डस्टबिन में ही डालना चाहिए।
• अपने शरीर की साफ़-सफ़ाई का ख़ुद से ही
ध्यान दें और हाइजेनिक रहने का प्रयास करना चाहिए।
• थोड़ी-थोड़ी देर में हाथ को साबुन और पानी
से धोते रहना चाहिए।
• गंदगी वाले इलाक़ों को साफ़ किया जाना
चाहिए और वहां विशेष सावधानी के साथ निश्चित समय पर दवाओं के छिड़काव पर ध्यान
देते रहना चाहए।
• मृत पशु-पक्षियों को खुली हवा में कभी
नहीं फेकना चाहिए।
• मांस खाने में सावधानी बरतें और ख़ास तौर
पर पोर्क (सुअर का मांस) को नज़रअंदाज़ करना चाहिए।
• लोगों से मिलने पर हाथ मिलाने, गले मिलने और चूमने से बचना चाहिए।
• गंदे हाथों से आंख, कान
या मुंह कभी नहीं छूना चाहिए।
रोगों से बचने के लिए खान-पान का रखें विशेष
ख्यालः
• प्रातः काल उठें। योग और प्राणायाम को
अपनाएं। रात में जल्दी सो जाएं और पूरी नींद लें।
• सुबह भारी नाश्ता करें और रात में तरल
पदार्थों का सेवन करें।
• घर का ताज़ा बना खाना ही खाएं और पानी का
अधिक उपयोग करें।
• ताज़ें फल और हरी सब्जियों का सेवन करें।
• सभी प्रकार की दालों का सेवन कीजिए।
• दिनभर भिन्न-भिन्न तापमानों में रहने से
बचें।
• नींबू-पानी, सोडा,
शर्बत, दूध, चाय,
जूस, मट्ठा और दूध आदि सभी का सेवन करते रहें।
• देर तक फ्रीज़ पर रखी चीज़ों और बाहर के
खाने से बचें।
कुछ यूं सालभर बना रहता है बीमारी का चक्रः
पीलिया- हैजा-
खसरा-चिकनपॉक्स-मलेरिया-टायफाइड- डेंगू-चिकुनगुनिया-फाइलेरिया-स्वाइन फ्लू।