ब्राह्मण
Tuesday, 10 April 2018
इश्क़ की भाषा...
क़िस्सागो हूँ क़िस्सागोई करूँ कैसे
!
तार बेतार हुए डाक भी ज़रा कम आती ।
इश्क़ में रूह से वाचते हैं लोग
अब आप ही को समझ नहीं आती ।
Sunday, 8 April 2018
सुकूं की नींद...
नफ़रत तो मुँआ नींद से न जाने कब से हैं,
मुला तू है जिसे मेरे जज़्बातों के ख़्याल न आये ।
बस इक अहसास जो मिले तेरे होने का
तो जहाँ हो मुकम्मल, सुकूं की नींद आ जाये ।
तेरा मौन...
बेनम हवा में मेरी हरक़तों से बेबस हो तुम भी,
ऐसे देखा है मौन पर खीझते तुमको कई दफ़ा ।
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