ब्राह्मण
Tuesday, 10 April 2018
इश्क़ की भाषा...
क़िस्सागो हूँ क़िस्सागोई करूँ कैसे
!
तार बेतार हुए डाक भी ज़रा कम आती ।
इश्क़ में रूह से वाचते हैं लोग
अब आप ही को समझ नहीं आती ।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment