ब्राह्मण
Sunday, 8 April 2018
सुकूं की नींद...
नफ़रत तो मुँआ नींद से न जाने कब से हैं,
मुला तू है जिसे मेरे जज़्बातों के ख़्याल न आये ।
बस इक अहसास जो मिले तेरे होने का
तो जहाँ हो मुकम्मल, सुकूं की नींद आ जाये ।
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