ब्राह्मण
Monday, 28 May 2018
दोज़ख़ की मिट्टी...
दूर कर लो जो बीमारी है
ये सियासत
,
रोज़ी,
तालीम
औ मजहब के
ज़र्रे
-
ज़र्रे में नफरत की ख़ुमारी है ।
डुबाकर शराब में यूँ फेंकते हो रोटियाँ
चल रही ऐसी ही ख़ातिरदारी है !
रहने दो।
बस
,
अपनापन हो
...
मिट्टी दोज़ख़ की भी प्यारी है ।।
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