Tuesday, 21 August 2018

कसीदाकार...


• अमित राजपूत
चित्रः साभार


तैं का जानन...
तैं का जानन
लागन रिमझिम,
दिन गुजरत कइसे
हैं मोरी पियु बिन।
टप-टप मन सुलगाए
हाय राम...
साँस चलत हैं गिन-गिन।
तैं का जानन...

बदरा भवानी जउन
दिन लई आवा,
मोंहिंका सवनवा
चित नहीं भावा।
बाँसुरी कउन बजाए
हाय राम...
नाच उठा मन धुन बिन।
तैं का जानन...

हाल परदेसिया के
सुन ना रे भइया,
देहिंया जुड़ाये कइसे
घरै मोर गुँइया।
काहे दहिजरऊ चिढ़ाए
हाय राम...
मार के बइठूँ कस निज मन।
तैं का जानन...

रनिया की धज लख
उरज की रेखा,
कटि करधन लच
बीच सुरेखा।
मन-उपवन महकाए
हाय राम...
सपन लगत अब उन दिन।
तैं का जानन..

मोर हिंया तो अब
लागै न दीदा,
आगी लगे रे
बरि जाये कसीदा।
बूँदा जियरा जलाये
हाय राम...
मन अकुलाने खिन-भिन।

तैं का जानन...
तैं का जानन
लागन रिमझिम,
दिन गुजरत कइसे
हैं मोरी पियु बिन।
टप-टप मन सुलगाए
हाय राम...
साँस चलत हैं गिन-गिन।

Sunday, 12 August 2018

ऐलान-ए-रब्त...


अमित राजपूत

आँखों से हर्फ़ लिख्खा है दिल में किसी ने
सरेराह रुककर,
ऐलान-ए-रब्त का फ़तवा किया है किसी ने
मगर छुपकर।

जो मेरे दीद में कडुवाहट भरी है
उजासी पीप सी पीली-पीली
रोशनी जाती है कभी फिर तेज़ चिरागाँ,
लौ जले हैं नीली-नीली
हाय मंज़र ये देखूँ कैसा दिन में चाँदनी सा
उलझूँ रात में फिरूँ हमराज़ होकर
आँखों से हर्फ़ लिख्खा है दिल में किसी ने
सरेराह रुककर,
ऐलान-ए-रब्त का फ़तवा किया है किसी ने
मगर छुपकर।

वो कहते क्यों नहीं हैं बतला दें मुझे
हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो यक़ीनन झुठला दें मुझे
मौजूद हैं वो हर एहसास तेरे आगे
अब ज़रूरत क्या बची है जो दिखला दें तुझे।
सच कह गये पीर ओ फ़कीर दो पल की ज़िंदगानी में
खड़े हैं महकते हमाम में सब बेपर्दा होकर।
आँखों से हर्फ़ लिख्खा है दिल में किसी ने
सरेराह रुककर,
ऐलान-ए-रब्त का फ़तवा किया है किसी ने
मगर छुपकर।

रब का वास्ता है सुनो दिलबहार यार
लाज़िम है इश्क़, मोहब्बत, प्यार
यार बंद कर खिड़कियाँ, रोशनदान सारे
अकेले घुप्प कमरे में आख़िर करोगी कैसे इज़हार
आफ़रीन कहलाओ रूबरू-ए-यार बोलो..
हया छोड़ो, आज कह दो ज़रा खुलकर।
आँखों से हर्फ़ लिख्खा है दिल में किसी ने
सरेराह रुककर,
ऐलान-ए-रब्त का फ़तवा किया है किसी ने
मगर छुपकर।

Thursday, 2 August 2018

परमेश्वरी...


• अमित राजपूत
चित्रः साभार 
भाग-1
इकबार परमेश्वरी अबला बन
पहुँची जाकर अवपीड़न वन,
व्यवहार कुटिल पशुवत पाकर
कहती अबला य बला मत बन।

भ्रकुटि दुष्ट की केश झरोखे
डसने जो लगी करिया सा फन,
तब काँप उठी देवी निढाल
तब काँप उठा नारी का मन।

मैं बात बताता तमस रात्रि
चीत्कार उठा यौवन सा तन,
न कोई उसके निकट दिख रहा
लुटने को पड़ा रक्तिम सा बदन।

बदहोश होश को लगा ठिकाने
फिर चाल चली थी नारी,
हाथ जोड़ दोनों आपस में
बोली- विनती सुनो हमारी।

अट्टहास कर गरजा फिर वो
जैसे शिवभक्त दशानन,
बावरी मुरइली शिरोधरा को
छूने लाया आनन।

आनन-फानन उसे झटककर
अनुग्रह तज मीनाक्षी,
गाड़के नैना उसके नैना
स्वयं की बन गयी रक्षी।

बाँध जटा अपनी उठ गयी
ले कुँडल कवच सिधारी,
गड़ा दृष्टि भँउहन में उसकी
कहती सुनो हमारी...

याचना नहीं अब होगा रण,
फिर याद रखेगा तू ये क्षण
क्षण अभी शुरू हो युद्ध न कल
हा हा कायर!
हा हा रे विकल!!

भाग-2
फाड़कर लोचन को
सोचन क्या लाग है,
डर गई मैं
काँप-काँप थर थरा थरा थरा।

हट फट झट,
देख सर फरा सरा सरा...
चीर चीर देख मोर चीर
चीर खोल लोचन को,
गंध मोर अंग खुले
सुर सुरा सुरा सुरा...
ढील छोड़ी काली तोरी
बह चला पूरा पूरा।

ओ रे सठ!
देख लट्ठ सी भुजंग मोर है
साँझ ढली ज़िंदगानी तोर है
मेरे यहाँ भोर है।

मैं चेतना जगाऊँगी
राग गुनगुनाउँगी
डमरू मैं बजाउँगी
नाद भरती जाउँगी
डमड् डमड् सुनाउँगी
मैं दंभ तेरा खाऊँगी।

देख, कर में कोई अस्त्र नहीं
बाजू भी नेक शस्त्र नहीं
मुझसे कभी तू त्रस्त नहीं
त्रासदी ले लाउँगी
जो ख़ुद को मैं जगाउँगी।

ख़ामोश जो वो स्त्री नहीं
प्रचंड हूँ
कराल हूँ
मैं काल विकराल हूँ।
लिखुँगी अपनी अस्मिता
विरक्त हूँ
उन्मुक्त हूँ
विभक्त किंतु तुझसे नहीं।

सार है तू मेरा
तेरी शक्ति मैं अपार हूँ
सवार हूँ मैं ख़ुद में
तुझमें जीवन का सार हूँ।
मैं बार-बार कहती तुझसे
पूरा संसार हूं।
हाँ, पूरा संसार हूं।
मैं पूरा संसार हूं।।।