• अमित राजपूत
बुधवार 30 अक्टूबर,
2019 को जैसे ही स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार की घोषणा हुयी देश-दुनिया में गाय और
गो-सेवा के प्रति लोगों का नज़रिया बदलने लगा। वास्तव में गो-सेवा को लेकर अभी
इतना ही नहीं, बल्कि गहरे रोमांच की ज़रूरत है। कम से कम भारत में तो यक़ीनन इसकी
बेहद ज़रूरत है और स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार इसके आरम्भ की बहुत ही सुनियोजित और
दिलचस्प शुरुआत है। यह पुरस्कार दो श्रेणियों गो-सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में दिया
जा रहा है। इसमें गो-सेवा के क्षेत्र में पुरस्कार की श्रेणी अपने आप में विशिष्ट
श्रेणी है, क्योंकि गो-सेवा विशेष के लिए अब तक इस तरह का कोई भी पुरस्कार चलन में
नहीं है।
स्वामी ब्रह्मानंद
पुरस्कार भारत के पहले गेरुआ वस्त्रधारी सांसद और अभूतपूर्व सन्यासी स्वामी ब्रह्मानंद
के नाम पर इस साल उनकी 125वीं जयंती-वर्ष से गो-सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में
विशिष्ट कार्य करने वाले भारतीय और गैर-भारतीय नागरिकों को प्रत्येक वर्ष प्रदान
किया जायेगा। जहाँ तक मुझे ख़बर है कि स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार प्रत्येक वर्ष
त्यागमूर्ति स्वामी ब्रह्मानंद जी की जयन्ती 4 दिसम्बर के दिन लोधेश्वर धाम, राठ (उत्तर
प्रदेश) में दिया जाया करेगा। यदि फ़्रेडरिक का वहाँ आना संभव न हो पाया तो समिति
उन्हें उनके आश्रम जाकर शनिवार, 23 नवम्बर, 2019 को सम्मानित कर सकती है।
इस स्वामी ब्रह्मानंद
पुरस्कार में अवॉर्डी को 10,000 रुपये जो कि भविष्य
में बढ़ाये भी जा सकते हैं, धातु विशेष का पदक, स्टेचू, सनद और अंगवस्त्र प्रदान किया जायेगा। इस
पुरस्कार का प्रयोजक ‘लक्ष्य’ (लोधी
क्षत्रिय एम्प्लॉइज़ एंड इंटलैक्चुअल्स एसोसिएशन) नाम का ग़ैर-सरकारी संगठन है।
मेरे लिए निजी तौर पर
यह बेहद दिलचस्प बात है कि स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार का आरम्भिक पुरस्कार जिन
फ़्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग को दिया जा रहा है मैं उनका प्रस्तावक हूँ। मेरे
प्रस्ताव को स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार समिति ने सर्व सम्मति के साथ स्वीकार किया
मैं इस समिति के प्रत्येक सदस्य का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
इस साल की स्वामी
ब्रह्मानंद अवॉर्डी फ़्रेडरिक के बारे में बताऊँ तो सु श्री फ़्रेडरिक इरीना
ब्रूनिंग का जन्म 02 मार्च, 1958 को जर्मनी के बर्लिन
शहर में हुआ है और अब ये 61 वर्ष की हैं। साल 1978 में जब ये 20 वर्ष की किशोरवय
थीं तो पर्यटन के उद्देश्य से भारत आयी हुयी थीं, जिसके बाद
से ये हमेशा-हमेशा के लिए भारत में रच-बस गयीं और ब्रज को अपनी साधना का केन्द्र
बनाया। बीते 41 सालों से यहाँ रहकर फ़्रेडरिक भारतीय अस्मिता को आत्मसात कर रही
हैं और पिछले 25 सालों से अनवरत गायों की देखभाल और उनकी
सेवा के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं।
इन्होंने उत्तर
प्रदेश के मथुरा में कोन्हई गाँव के पास एक ‘राधा सुरभि
गोशाला’ बनाई है, जहाँ ये लगातार लगभग डेढ़ हज़ार गायों की
सेवा करती हैं। जिन गायों की सेवा में फ़्रेडरिक लगी हैं, वे सभी ग़ैर-उपादेय यानी
कि सामान्यतः लोग जिन्हें ग़ैर-ज़रूरतमंद समझते हैं मसलन जो दूध नहीं देतीं उन
गायों का पालन-पोषण करती हैं। इनमें ज़्यादातर बूढ़ी, बीमार, रोगी, घायल और कमज़ोर
गायें शामिल रहती हैं। अपने सम्पूर्ण जीवनवृत्त में अब तक इन्होंने लाखों गायों की
सेवा का पुण्य लाभ उठाया है।
इन गायों की देखभाल
के लिए सु श्री फ़्रेडरिक को लगभग 25-30 लाख रुपये मासिक का खर्चा आता है, जिसे ये
प्रमुख रूप से बर्लिन में स्थित अपनी पुश्तैनी संपत्ति से वहन करती हैं। शेष
उन्हें लोगों का सहयोग भी प्राप्त होता है। गो-सेवा के प्रति सु श्री फ़्रेडरिक की
दीवानगी ऐसी है कि इन्होंने इसके लिए अपनी तरुणाई समेत पूरा जीवन इसमें खपा दिया,
यहाँ तक कि इन्होंने विवाह भी नहीं किया बावजूद इसके कि वह अपनी माँ-बाप की इकलौती
संतान हैं।
इनके ऐसे प्रेरणादायी
कार्य के लिए लोग इन्हें ‘बछड़ों की माँ’ कहते हैं और ये ब्रज समेत पूरे भारतवर्ष में ‘सुदेवी
दासी’ या ‘सुदेवी माता’ के नाम से पुकारी जाती हैं। इसलिए, गो-सेवा के क्षेत्र में सु श्री
फ़्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग के द्वारा किए गये अद्वितीय, अप्रतिम एवं अनुकरणीय
कार्यों और उनके विशिष्ट प्रयासों हेतु उन्हें जो आरम्भिक स्वामी ब्रह्मानंद
पुरस्कार मिला है असल में उसकी पहली हक़दार वो ही थीं। अतः मेरी ओर से स्वामी
ब्रह्मानंद पुरस्कार की पहली हक़दार फ़्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग जी को कोटि-कोटि
बधाई!