चित्रः साभार
• अमित राजपूत
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हाल
ही में बीते विधानसभा चुनावों में महाराष्ट्र-भाजपा की ओर
से उनके चुनावी घोषणा-पत्र में विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न दिये जाने के
लिए मांग का ऐलान करते ही देशभर में सावरकर को लेकर बहस छिड़ गयी। इसके बरक्स दो
दिनों पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कानपुर में एक जनसभा को
संबोधित करते हुए गणेश शंकर विद्यार्थी को भारत रत्न दिये जाने की अपनी मांग रख दी
और उसके कारण भी बताये। इस प्रकार, भारत रत्न के प्रस्ताव हेतु महाराष्ट्र के
मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास
अपने-अपने विभूति क्रमशः सावरकर और विद्यार्थी हो गये हैं।
मुख्यमंत्री बघेल ने कानपुर
में सार्वजनिक रूप से यह प्रस्ताव रखा कि भारत रत्न देना ही है तो आजादी के लिए
लड़ने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी को दिया जाये। इस पर उनका तर्क था कि सावरकर को
मानने वाले लोग वैचारिक असहमति होने पर बांटने की और प्रतिशोध की राजनीति करते
हैं। लेकिन वहीं गांधी और गणेश का भारत अहिंसा का भारत है। इस प्रकार, हमारे
पारंपरिक राष्ट्रवाद में असहमति को पूरा स्थान मिलता था। जबकि सावरकर के पैरोकारों
में यह परंपरा निर्वहन नहीं करती है। गणेश शंकर विद्यार्थी के बारे में बघेल ने जो
दीगर महत्वपूर्ण बात कही जो कि अन्य कांग्रेसी नेता अब तक नजरअंदाज़ करते आये हैं
वह ये कि उन्होंने स्पष्ट रूप से रेखांकित करते हुए कहा कि गणेश शंकर विद्यार्थी
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष (यूनाइटेड प्रोविन्स यानी यूपी के) रहे थे।
वास्तव में बघेल का
गणेश शंकर विद्यार्थी को लेकर दिया गया इस तरह का बयान उनके विरोधियों द्वारा उनकी
पार्टी के शीर्ष प्रतीकों की वैचारिक हड़प की शैली पर अवरोध पैदा करने के तौर पर
भी देखा जा सकता है। यह बघेल का एक अच्छा पॉलिटिकल डिफेन्स है, क्योंकि गणेश शंकर
विद्यार्थी के बारे में अब तक स्वयं काग्रेस पार्टी द्वारा भी यह प्रमुखता से
रेखांकित नहीं किया जाता रहा है कि वह यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे
हैं, लेकिन देश में चल रही राजनैतिक तासीर को समझते हुए बघेल ने एक अच्छा दांव खेला
है।
भूपेश बघेल के पास गणेश
शंकर विद्यार्थी को भारत रत्न दिये जाने के पीछे कई सारे तर्क हैं और वो सभी उनके
राजनीतिक विरोधियों की विचारधारा पर प्रहार करते हैं। बघेल ने सबसे पहला तर्क यह
दिया है कि गणेश शंकर विद्यार्थी जोकि कांग्रेस के बड़े नेता थे उन्होंने भगत सिंह
को अपने नज़दीक रखा जबकि भगत सिंह वामपंथी विचारधारा के थे। बावजूद इसके उन्होंने
भगत सिंह को दो महीने अपने घर पर रखा। इतना ही नहीं उन्होंने भगत सिंह को अपने
प्रतिष्ठित अख़बार ‘प्रताप’ का
कॉरेन्पॉन्डेंट भी रखा था। बघेल बताते हैं कि यह असहमति का सम्मान है, जो अब ख़त्म
हो गया है। इस बहाने बघेल यह भी बताने की कोशिश कर गये कि कांग्रेसियों की
विचारधारा असहमति का सम्मान करने की रही है और है, जबकि उनके विरोधी असहमति की राह
पर चलते हैं।
असहमति का सम्मान
करके के एवज में गणेश शंकर विद्यार्थी का वास्तव में कोई सानी नहीं था। सन् 1915 में होम रुल लीग के प्रभारी रहे विद्यार्थी ने जब फतेहपुर में कांग्रेस
की नीव डालने पर विचार किया तो उग्र क्रान्तिकारी तेवर वाले घोर राष्ट्रवादी और राम
चरित मानस के पक्के वाचक झंडा गीत की रचना करने वाले श्याम लाल गुप्त ‘पार्षद’ को सबसे पहले अपने क़रीब रखा और उनके
नेतृत्व में फतेहपुर कांग्रेस के गठन का काम आगे बढ़ाया। इसके बाद भी जिन दो लोगों
को विद्यार्थी ने पार्षद जी के साथ लगाया उनमें फ़तेहपुर के दो नामी वकीलों बाबू
उमाशंकर व बाबू वंशगोपाल को भेजा। इन दोनों में बाबू उमाशंकर आर्य समाज के परम
उपासक और स्पष्ट रूप से दक्षिणपंथी विचारधारा वाले नेता थे और गांधीवादी बाबू
वंशगोपाल घोर कांग्रेसी नेता थे। ऐसे में गणेश शंकर विद्यार्थी में वैचारिक असहमति
के बाद भी लोगों को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति का पता चलता है।
इसके अलावा भारत रत्न
देने की बात यदि राष्ट्रवाद के नाम पर ही हो तो भी लोगों को यह ध्यान में रखना
होगा कि गणेश शंकर विद्यार्थी को संगठित राष्ट्र का बीज बोने वाले नेता के तौर पर
भी देखा जाता है। ऐसे में बहुत हद तक इसमें कोई दो राय नही है कि गणेश शंकर
विद्यार्थी को भारत रत्न दिये जाने के प्रस्ताव को दक्षिणपंथी धड़ा नकार पाये,
क्योंकि वह कहीं न कहीं विद्यार्थी की विचारधारा और उनके कार्यों की सराहना करती
आयी है। इसमें सबसे दिलचस्प तो यह रहा कि यूपी की मौजूदा योगी सरकार ने साल 2017
में अपनी सरकार बनाने के महीने भर के भीतर ही गणेश शंकर विद्यार्थी की कर्मभूमि
कानपुर के चकेरी हवाई अड्डे का नाम बदलकर या नामकरण कर गणेश शंकर विद्यार्थी हवाई
अड्डा कर दिया था। ये संकेत बताते हैं कि दक्षिणपंथियों को विद्यार्थी के नाम पर
कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। इसलिए जब बात सहमति की ही होगी तो सावरकर से अधिक
गणेश शंकर विद्यार्थी के नाम पर ही भारत रत्न दिये जानने की आम सहमति बननी चाहिए।
इस प्रकार, वास्तव
में वैचारिक शून्यता के दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी के लिए भूपेश बघेल की ये
धारा उनकी पार्टी को राजनीति की ख़तरीली लहरों से निकालकर साहिल तक पहुँचा सकती
है, जहाँ से उनकी पार्टी फिर से अपनी कश्ती को एक नए सफर के लिए बेहतर ढंग से
तैयार कर सकती है।
(लेखक
‘अंतर्वेद प्रवरः गणेश शंकर विद्यार्थी’ पुस्तक के
लेखक हैं)
आज के पत्रकार जगत के लिए आदरणीय अनुकरणीय
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