Monday, 26 July 2021

सावन और जुदाई

चित्रः साभार

सावन आया, पर तू ना आई
हाय! ये, कैसी जुदाई...
 
बरस दरस को, बीते रीते
खोल सखी दो, बिरह के फीते
मैंने क्या कहो, तुमने कभी क्या
यार वफ़ा कहीं पाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
 
हमसे ख़फ़ा तुम, क्यों हो सनम तुम
रहती सदा हो, ग़ुमशुम-ग़ुमशुम
कह-दो कह-दो, कुछ तो बोलो
ऐसी क़सम क्या खाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
 
छोड़ गयी जो, जलते तारे
लपझक करते, रहते बेचारे
उन नयनों का, क्या करें सजनी
तेरी-छवि-जिनमें, बसाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
 
सावन आया, पर तू ना आई
हाय! ये, कैसी जुदाई...

Tuesday, 13 July 2021

नागफनी

  

चित्रः साभार

गुनागार नहीं मैं, निर्गुनी हूँ।

फ़क़ीर हूँ... कहाँ मैं धनी हूँ?

बिखरी हैं पत्तियाँ दुनिया में मेरी भी,

ढीठ हूँ, जटिलता में नागफनी हूँ।।

 

जग में... शोर बहुत है यारों!

सुन-सुन किसकी-किसको तारूँ?

छेड़ा जो राग सिंफ़नी का, बज उठी

अपनी ही धुन का धुनी हूँ।।

 

जीवन निर्वासित, अंगार-आसित

कामना नहीं, फिर भी धन है अयाचित।

देना न लेना मैं बंद गनी हूँ,

रहने दो छूना न! चुभते-सनसनी हूँ।।

 

बिखरी हैं पत्तियाँ दुनिया में मेरी भी,

ढीठ हूँ, जटिलता में नागफनी हूँ।।