Tuesday, 13 July 2021

नागफनी

  

चित्रः साभार

गुनागार नहीं मैं, निर्गुनी हूँ।

फ़क़ीर हूँ... कहाँ मैं धनी हूँ?

बिखरी हैं पत्तियाँ दुनिया में मेरी भी,

ढीठ हूँ, जटिलता में नागफनी हूँ।।

 

जग में... शोर बहुत है यारों!

सुन-सुन किसकी-किसको तारूँ?

छेड़ा जो राग सिंफ़नी का, बज उठी

अपनी ही धुन का धुनी हूँ।।

 

जीवन निर्वासित, अंगार-आसित

कामना नहीं, फिर भी धन है अयाचित।

देना न लेना मैं बंद गनी हूँ,

रहने दो छूना न! चुभते-सनसनी हूँ।।

 

बिखरी हैं पत्तियाँ दुनिया में मेरी भी,

ढीठ हूँ, जटिलता में नागफनी हूँ।।

 

 

13 comments:

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    1. हार्दिक आभार।🌺🙏

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  2. बहुत ही शानदार और जबरदस्त है ये कविता वाह भैया वाह दिल को छू लिया

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    1. धन्यवाद प्रिय पवनेश जी।🙏🌻🌺🌿🥰

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  3. शानदार जबरदस्त जिंदाबाद

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    1. हार्दिक आभार।🌺🙏🌿

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  4. अद्भुत एवं अद्वितीय रचना!!!!

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    1. हार्दिक आभार आपका।🌺🙏🌻🌿🥰

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  5. बहुत बढ़िया

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  6. अमित जी, बहुत खूब। भावी रचनाओं के लिए शुभकामनाएं।

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