चित्रः साभार |
सावन आया, पर तू ना आई
हाय! ये, कैसी जुदाई...
बरस दरस को, बीते रीते
खोल सखी दो, बिरह के फीते
मैंने क्या कहो, तुमने कभी क्या
यार वफ़ा कहीं पाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
हमसे ख़फ़ा तुम, क्यों हो सनम तुम
रहती सदा हो, ग़ुमशुम-ग़ुमशुम
कह-दो कह-दो, कुछ तो बोलो
ऐसी क़सम क्या खाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
छोड़ गयी जो, जलते तारे
लपझक करते, रहते बेचारे
उन नयनों का, क्या करें सजनी
तेरी-छवि-जिनमें, बसाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
सावन आया, पर तू ना आई
हाय! ये, कैसी जुदाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
खोल सखी दो, बिरह के फीते
मैंने क्या कहो, तुमने कभी क्या
यार वफ़ा कहीं पाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
रहती सदा हो, ग़ुमशुम-ग़ुमशुम
कह-दो कह-दो, कुछ तो बोलो
ऐसी क़सम क्या खाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
लपझक करते, रहते बेचारे
उन नयनों का, क्या करें सजनी
तेरी-छवि-जिनमें, बसाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
अद्भुत अनुपम 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
बहुत सहेज
ReplyDeleteWow great amit ji 😌😊
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रिय प्रतिभा जी।🙏🌺
Delete