Monday, 26 July 2021

सावन और जुदाई

चित्रः साभार

सावन आया, पर तू ना आई
हाय! ये, कैसी जुदाई...
 
बरस दरस को, बीते रीते
खोल सखी दो, बिरह के फीते
मैंने क्या कहो, तुमने कभी क्या
यार वफ़ा कहीं पाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
 
हमसे ख़फ़ा तुम, क्यों हो सनम तुम
रहती सदा हो, ग़ुमशुम-ग़ुमशुम
कह-दो कह-दो, कुछ तो बोलो
ऐसी क़सम क्या खाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
 
छोड़ गयी जो, जलते तारे
लपझक करते, रहते बेचारे
उन नयनों का, क्या करें सजनी
तेरी-छवि-जिनमें, बसाई...
हाय! ये, कैसी जुदाई...
 
सावन आया, पर तू ना आई
हाय! ये, कैसी जुदाई...

5 comments:

  1. अद्भुत अनुपम 👌👌👌

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  2. बहुत सुंदर
    बहुत बहुत बधाई

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार प्रिय प्रतिभा जी।🙏🌺

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