Friday, 31 December 2021

उठो जवानों!

• अमित राजपूत


उठो जवानों! दृग खोलो, आभा अरविन्द समा लो जी!

कमलनयन कहलाओगे तुम, हरिपद ऐसे पा लो जी!!

 

साहित्य-सुधा के अमरकांत, वो सावित्री के हुए जनक,

भाषाएँ जिनकी मधुरेचक, बाग़ीचों को ना लगी भनक,

जो लोरेटो से कैम्ब्रिज़ तक... यूनान मिस्र पदचिह्न दिये!

उन पदचिह्नों को चूम-चूम, प्रज्ञारस जमकर पी लो जी!!

कमलनयन कहलाओगे......(१)

 

राष्ट्र-पताका निज हाथों में, लेकर भारत एक रखा,

वंदे-मातरम् के अधरों को, राग दिये जो राष्ट्र चखा,

तोड़ ब्रितानी ज़ंजीरों को... पुदुचेरी को भाग्य मिला!

सौभाग्य मिला जिस धरती को, उसकी रज-कण को छू लो जी!!

कमलनयन कहलाओगे......(२)

 

एकात्म-योग का रूप नया, इस जग को पहली बार मिला,

धराचरों का दिव्य हो जीवन, ऐसा अध्यात्म उपहार मिला,

श्रीअरबिन्दो जैसा हिन्दू... भारत माँ का हर लाल बनें!

अभ्युदयित भारत में रहने को, जीवन ऐसा जी लो जी!!

कमलनयन कहलाओगे......(३)

 

उठो जवानों! दृग खोलो, आभा अरविन्द समा लो जी!

कमलनयन कहलाओगे तुम, हरिपद ऐसे पा लो जी!!

 

नवा रूप

अमित राजपूत


प्रेमवश देवी कहा मैंने, जिसे पूजा नवाँ माथा!

नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

 

लगा जब आयेगी इक रौशनी, नहाकर मस्त होउँगा!

पे तीखी चीज़ ऐसी है, मैं रातें कई न सोउँगा!!

नहीं हैं सर्द रातें ये वफ़ा की, सो कहाँ जाता...

नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

 

वो हत्यारें हैं मेरे, सब बहाने, गिन-गिन बताऊँ क्या!

बला क्या हुस्न मौला ने दिया उसको, बताऊँ क्या!!

ज़रा सा दिल्लगी संग ग़र, वफ़ा देती तो क्या जाता...

नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

 

हटी चूनरी बारी-बारी, ख़ुल गयी देवी की मक्कारी!

झूठ के दिन बहुरेंगे कितने, नंगी हो गई सारी-की-सारी!!

प्राण लिया हाँ, प्राण लिया जी, हाय विधाता... हाय विधाता...

देखो..! नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

 

प्रेमवश देवी कहा मैंने, जिसे पूजा नवाँ माथा!

नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

सरदार वल्लभ!!

अमित राजपूत



सत्यधर्म पक्षधर

भारत के अगुवा

रत्नजड़िता मणिका

हे दुर्लभ!

सरदार वल्लभ!!

 

रियासत-ए-हिन्द

आनन्द औ वैभव के दाता

सरदार सरोवर राष्ट्र-शिल्पी

हे दुर्लभ!

सरदार वल्लभ!!

 

अतुल्य साहस अमितविक्रम

लौहपुरुषम् उत्तमम्

एकय पुरोधा एकता के साक्षी

हे दुर्लभ!

सरदार वल्लभ!!