• अमित राजपूत
उठो जवानों! दृग खोलो, आभा अरविन्द समा लो जी!
कमलनयन कहलाओगे तुम, हरिपद ऐसे पा लो जी!!
साहित्य-सुधा के अमरकांत, वो सावित्री के हुए जनक,
भाषाएँ जिनकी मधुरेचक, बाग़ीचों को ना लगी भनक,
जो लोरेटो से कैम्ब्रिज़ तक... यूनान मिस्र
पदचिह्न दिये!
उन पदचिह्नों को चूम-चूम, प्रज्ञारस जमकर पी लो जी!!
कमलनयन कहलाओगे......(१)
राष्ट्र-पताका निज हाथों में, लेकर भारत एक रखा,
वंदे-मातरम् के अधरों को, राग दिये जो राष्ट्र चखा,
तोड़ ब्रितानी ज़ंजीरों को... पुदुचेरी को
भाग्य मिला!
सौभाग्य मिला जिस धरती को, उसकी रज-कण को छू लो जी!!
कमलनयन कहलाओगे......(२)
एकात्म-योग का रूप नया, इस जग को पहली बार मिला,
धराचरों का दिव्य हो जीवन, ऐसा अध्यात्म उपहार मिला,
श्रीअरबिन्दो जैसा हिन्दू... भारत माँ का हर
लाल बनें!
अभ्युदयित भारत में रहने को, जीवन ऐसा जी लो जी!!
कमलनयन कहलाओगे......(३)
उठो जवानों! दृग खोलो, आभा अरविन्द समा लो जी!
कमलनयन कहलाओगे तुम, हरिपद ऐसे पा लो जी!!
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteआपकी लेखिनी को शत शत नमन
बहुत सुंदर मनोहारी भी और संदेशप्रद भी
ReplyDeleteहार्दिक आभार🌺🙏
Deleteपूरा चरित उदधृत कर दिया आवाहन के साथ बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार🌺🙏
Deleteअति मर्मस्पर्शी कविता
ReplyDelete👏👏🙏👍
ReplyDelete❤️🙏🌺
Deleteबहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteबड़े भाई को सादर प्रणाम, बड़े भाई की कविता ने मन को पूर्ण रूप से खुश कर दिया।
ReplyDelete👌👌👌👌🙏🙏🙏🙏🎉🇮🇳
हार्दिक आभार🌺🙏
Deleteअशेष स्नेह आपको।❤️
Shaandaar
ReplyDeleteअद्वितीय पंक्तिया भैया जी
ReplyDelete🙏🌺😊
हार्दिक आभार🌺🙏
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