Friday, 31 December 2021

नवा रूप

अमित राजपूत


प्रेमवश देवी कहा मैंने, जिसे पूजा नवाँ माथा!

नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

 

लगा जब आयेगी इक रौशनी, नहाकर मस्त होउँगा!

पे तीखी चीज़ ऐसी है, मैं रातें कई न सोउँगा!!

नहीं हैं सर्द रातें ये वफ़ा की, सो कहाँ जाता...

नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

 

वो हत्यारें हैं मेरे, सब बहाने, गिन-गिन बताऊँ क्या!

बला क्या हुस्न मौला ने दिया उसको, बताऊँ क्या!!

ज़रा सा दिल्लगी संग ग़र, वफ़ा देती तो क्या जाता...

नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

 

हटी चूनरी बारी-बारी, ख़ुल गयी देवी की मक्कारी!

झूठ के दिन बहुरेंगे कितने, नंगी हो गई सारी-की-सारी!!

प्राण लिया हाँ, प्राण लिया जी, हाय विधाता... हाय विधाता...

देखो..! नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

 

प्रेमवश देवी कहा मैंने, जिसे पूजा नवाँ माथा!

नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!

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