•अमित राजपूत
प्रेमवश देवी कहा मैंने, जिसे पूजा नवाँ माथा!
नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!
लगा जब आयेगी इक रौशनी, नहाकर मस्त होउँगा!
पे तीखी चीज़ ऐसी है, मैं रातें कई न सोउँगा!!
नहीं हैं सर्द रातें ये वफ़ा की, सो कहाँ जाता...
नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!
वो हत्यारें हैं मेरे, सब बहाने, गिन-गिन बताऊँ क्या!
बला क्या हुस्न मौला ने दिया उसको, बताऊँ क्या!!
ज़रा सा दिल्लगी संग ग़र, वफ़ा देती तो क्या जाता...
नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!
हटी चूनरी बारी-बारी, ख़ुल गयी देवी की मक्कारी!
झूठ के दिन बहुरेंगे कितने, नंगी हो गई सारी-की-सारी!!
प्राण लिया हाँ, प्राण
लिया जी, हाय विधाता... हाय विधाता...
देखो..! नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!
प्रेमवश देवी कहा मैंने, जिसे पूजा नवाँ माथा!
नवा है रूप देवी का, कही जाये न कोई गाथा!!
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteशुक्रिया
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