Friday, 9 September 2022

अवधी गीत: तुम बिन जी...

चित्र: साभार

शेर
दिल से दिल लगाया, दिल को जीने ना दिया!
दिल्लगी दिल से ना की, हमको मरने ना दिया!!

गीत
तुम बिन जीऽ नहीं, जाये गुजरिया!
सच कहूँ मान, रे हाय सुपिरिया!!

नित-नित इत-उत, कहाँ मँझाऊँ!
चैन ना कतो ढिग, कहाँ को जाऊँ
तड़पूँ अस जस, जेठ मछरिया!!
तुम बिन... (१)

सरपत जइसे, चाक करत है,
जइसे रहि रहि, घाव सरत है!
वइसे तिन-तिन, जिगर झरत है
हाल कहूँ अरु, का रे दुलरिया!!
तुम बिन... (२)

अपने गत की, आप मालकीं,
मोरे गति की, तुमहिं सारथी!
कहो उतारूँ, नित्य आरती,
केहु पट चैन न, तोहे सुथरिया!!
तुम बिन... (३)

-अमित राजपूत

Saturday, 3 September 2022

ग़ज़ल



हुस्न-ए-साक़ी के अलावा, अच्छा क्या है
बज़्म से दूर चला जा, याँ रक्खा क्या है

थक गया हूँ पीते-पीते, जाम मय-कदों के मैं
महबूब के लब से कोई जाम अच्छा क्या है

टूटकर अपने को चाहा ही नहीं जब
ज़िन्दगी से फिर तेरा रिश्ता क्या है

जब तिरा अक्स उभरता ही नहीं
तो आइने में तिरा चेहरा क्या है

जब मेरे ख़्वाबों में तू आती ही नहीं
फिर मेरी आँखों में ये सपना क्या है

तुन्द लहजे से बात करते हो क्यों
बात में नरमी नहीं, तो लहजा क्या है

जब हवा आती नहीं घर में तिरे
फिर तिरी दीवार में रख़ना क्या है

ज़ीस्त में इंसान के तूफ़ान होना चाहिए
बिन तलातुम मौजों का बहना क्या है

-अमित राजपूत

बज़्म से दूर चला जाये...



 हुस्न-ए-साकी के अलावा, अच्छा क्या है!
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!!

थक गया हूँ पीते-पीते, जाम इन मय-कदों के!
क़ायदे से कोई, नया जाम लाया जाये।
उतरे नहीं नशा, कोई ला पिला दे ऐसी,
इन घूँट-घूँट झूठे, इंतेज़ाम में क्या रक्खा है...
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!! (१)

हुस्न-ए-साकी के अलावा, अच्छा क्या है!
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!!

तसव्वुफ़ का मकाँ माना, ऐ जाना! बादाख़ाना है- मगर
तलातुम ज़िन्दगी में हो, तो मैख़ाने सुहाते हैं कहाँ,
चले आओ! चलें हम-तुम लड़ाते जाम अपना हैं
बाक़ी झाम दुनिया के, यहाँ रक्खा क्या है...
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!! (२)

हुस्न-ए-साकी के अलावा, अच्छा क्या है!
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!!

मज़ा है बैठकर पीना, सनम के पहलुओं में म्याँ
मगर पहलू पिया का बैठकर, पीने को मिलता है कहाँ!!
लबों से इक जो प्याला, कर दिया जूठा,
तो दूजे बर्तनों की चाह में रक्खा क्या है...
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!! (३)

हुस्न-ए-साकी के अलावा, अच्छा क्या है!
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!!

-अमित राजपूत