Saturday, 3 September 2022

बज़्म से दूर चला जाये...



 हुस्न-ए-साकी के अलावा, अच्छा क्या है!
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!!

थक गया हूँ पीते-पीते, जाम इन मय-कदों के!
क़ायदे से कोई, नया जाम लाया जाये।
उतरे नहीं नशा, कोई ला पिला दे ऐसी,
इन घूँट-घूँट झूठे, इंतेज़ाम में क्या रक्खा है...
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!! (१)

हुस्न-ए-साकी के अलावा, अच्छा क्या है!
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!!

तसव्वुफ़ का मकाँ माना, ऐ जाना! बादाख़ाना है- मगर
तलातुम ज़िन्दगी में हो, तो मैख़ाने सुहाते हैं कहाँ,
चले आओ! चलें हम-तुम लड़ाते जाम अपना हैं
बाक़ी झाम दुनिया के, यहाँ रक्खा क्या है...
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!! (२)

हुस्न-ए-साकी के अलावा, अच्छा क्या है!
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!!

मज़ा है बैठकर पीना, सनम के पहलुओं में म्याँ
मगर पहलू पिया का बैठकर, पीने को मिलता है कहाँ!!
लबों से इक जो प्याला, कर दिया जूठा,
तो दूजे बर्तनों की चाह में रक्खा क्या है...
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!! (३)

हुस्न-ए-साकी के अलावा, अच्छा क्या है!
बज़्म से दूर चला जाये, यहाँ रक्खा क्या है!!

-अमित राजपूत

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