लौट आ ऐ वक़्त मेरे,
इतना आगे क्यूँ गया है
चल पलटकर देख ले, सामान
मेरा खो गया है
ज्येष्ठ के मानिंद मेरा,
तप रहा देखो हृदय
रीते पहलू ना सुहाते, भर
रहे हैं घोर भय
आज उनको याद करके होश
मेरा खो गया है...
चल पलटकर देख ले, सामान
मेरा खो गया है।
लौट आ ऐ वक़्त मेरे... (1)
सब तलातुम खो गये हैं,
ज़िन्दगानी में कहर
छूटा दर जब वो ठिकाना,
हर तरफ़ तपती सहर
हूँ कहाँ अब मस्त वैसा, मुझको
कुछ तो हो गया है...
चल पलटकर देख ले, सामान
मेरा खो गया है।
लौट आ ऐ वक़्त मेरे... (2)
उनकी शोख़ी इक वबा थी,
जिसकी कोई ना दवा थी
हरती रहती रोग सारे, सच
कहूँ वो क्या सबा थी
दूरियाँ जो हैं मयस्सर,
गिर-हुलस सब ढह गया है...
चल पलटकर देख ले, सामान
मेरा खो गया है।
लौट आ ऐ वक़्त मेरे... (3)
बेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र।❤️🙏🌺
Deleteबहुत बढ़िया भाव संग शब्द
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र।❤️🙏🌺
DeleteBeautiful
ReplyDeleteपाटिल साहब।❤️
Deleteहार्दिक आभार मित्र।❤️🙏🌺
Deleteआपके हाथों से लिखी गयी हर एक कविता की, कबीले तारीफ़ हैं। जितनी भी तारीफ़ करो कम है, बहुत सुंदर अमित जी, मंगलकामना हमारे तरफ से आपके लिए,
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