ब्राह्मण
Friday, 10 April 2015
nightout...
कितना अन्तर है तहजीबों में,
कभी वहां चांदनी रातों में निकलते थे खेतों के लिए कबड्डी मचती थी।
आज नाईट-आउट के अंदाज़ ही निराले हैं।
वहां हर दांव में चाहते थे कोई देख ले हमे,
देखे न कोई
दांव
यहां हम चाहते हैं।
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