अभी प्राइम टाईम में एक पत्रकार साथी नेपाल के
भूकंप पीड़ित युवा से अस्पताल में पूछ रहे थे, कि आप आख़िर बचे कैसे...? और उस कराह रहे नौजवान ने टूटी हुयी व्यंग्यात्मक हंसी में उस रिपोर्टर से
कुछ कहना चाहा, लेकिन उसने रिपोर्टर को बक्ष दिया। साहब
स्मार्ट चैनल में ही हैं।
अब मुझे याद आता है कुछ महीने पहले का एक
वाकया,
जब एक सज्जन ने मुझसे पूछा था कि बेटा आखिर पत्रकारिता में ऐसी कौन
सी पढ़ाई पढ़ रहे हो तुम दिल्ली में। भला पत्रकारिता की भी कोई पढ़ाई होती होगी
क्या..?
अब समझ में आ गया मुझे कि हमने क्या पढ़ाई कर
ली है। कम से कम हमें 'कैसे बच गए' और 'कैसे बचाव किया' में का
अन्तर और सहूलियतें तो पता होती हैं। इस तरह से पत्रकारिता में भाषा और शैली का
अपना महत्व है, जो एक शैक्षिक प्रक्रिया से मज़बूत होती है।
अतः देश में इन मूल्यों से विहीन पत्रकारों को छुट्टी दे देनी चाहिए। हमारें यहां
नवकोपलों की कमी नहीं है।
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