दीपू एक अच्छे समझ-बूझ वाला लड़का है। वह हर
नई चीज़ सीखने के लिए लालायित रहता है। लेकिन वह ख़ासा नटखट और चंचल भी है।
अभी-अभी दीपू के स्कूल में गर्मी की छुट्टियां घोषित कर दी गई हैं। इस बार गर्मी
की छुट्टी पर दीपू अपने ननिहाल घूमने जायेगा। दीपू के ननिहाल में उसके नान-नानी के
अलावा उसके मामा-मामी और उनके दो बच्चे चम्पा और बीरू हैं। चम्पा और बीरू भी दीपू
के ही हम-उम्र हैं।
गर्मी की छुट्टियां बताने से पहले दीपू के
क्लास-टीचर ने कक्षा में सबसे कहा है कि इस बार हर बच्चा गर्मी की छुट्टियों में
एक नई सीख लेकर आएगा। इसलिए दीपू का मन और भी मचल रहा है कि वह कितनी जल्दी अपने
ननिहाल पहुंचकर अपनी नानी से ढेर सारी नई बातें सीख ले और वापस आकर क्लास-टीचर और
पनी कक्षा में उन्हें बताकर शाबाशी ले ले।
ननिहाल जाने से पहले दीपू ने अपनी मां के साथ
कुछ खरीददारी भी की। उसने चम्पा के सुन्दर सी चमकीली फ़्रॉक और बीरू के लिए
खेल-कूद वाले जूते लिए। नानी और नाना के साथ समय बिताने के लिए दीपू ने इस बार एक
बड़ा सा कैरम-बोर्ड भी ख़रीदा है। अब तो दीपू ने लगभग सारी तैयारियां भी कर ली
हैं। बस, अब तो सिर्फ़ मम्मी के बैग उठाने का ही चम्पा को इंतज़ार रह गया है।
दीपू अपनी मम्मी के साथ अपने ननिहाल पहुंच रहा
है। ये एक हरा-भरा गांव है जहां पक्षियों के ज़ोर-ज़ोर से चहकने की आवाज़े सुनाई
पड़ रही हैं। ट्यूब-वेल के ठुक-ठुक करने की आवाज़ आ रही है और मौसम में मीठास है।
हवाएं जैसे गीत गाती हुई दीपू के नन्हे क़दमों के साथ-साथ बह रही हैं। दीपू अपन
मां से चार क़दम आगे हाथ झुला-झुलाकर मस्ती में चला जा रहा है।
अपनी नानी के घर पहुंचे ही दीपू हैरान था।
अपनी हैरानी को मिटाने के लिए उसने झटपट नानी से पूछा- ‘नानी-नानी ये घर में नया
मेहमान कौन है?’
नानी ने दीपू को दुलराते हुए जवाब दिया- ‘बच्चू
ये तो तोता है। इसका नाम हमने मिट्ठू रखा है।’
‘मिट्ठू...। कितना प्यारा नाम है!’ दीपू ने
तोते के पिंजरे को बाहर से ही सहलाते हुए कहा।
‘ये हमसे बात भी करता है।’ पीछे से आवाज़
लगाते हुए चम्पा आ धमकी।
‘अच्छा...!’ दीपू हैरान था।
बीरू ने तोते के बार में दीपू को और बताया ‘हां-हां
दीपू ये तो हमें डांटता भी है।’
‘ओह्ह्...हो, ये तो मज़ेदार है।’ दीपू को
छुट्टियां और भी अच्छी लगने वाली थीं।
उधर दीपू की मामी ने ज़ोर से आवाज़ लगाई ‘दीपू....
चम्पा.... बीरू.... आकर दूध पी लो।’
शाम को खाने के बाद दीपू अपने नान के पास था।
नाना के बगल में रखी सुपारी की थैली को दीपू बहुत देर से उत्सुकता के साथ देख रहा
था। उसने थैली को उठाने के लिए ज्यों ही हाथ लगाया पीछे से खीझती हुई आवाज़ आई।
‘चोर चोर चोट्टा...।।’
‘चोर चोर चोट्टा...।।।’
पीछे मिट्ठू लगभग अपनी भौहों को तरेर कर दीपू
की ओर बनावटी गुस्से में देख रहा था।
दीपू थोड़ा झेपकर शर्मा गया और उसे देखकर सब
लोग हंस पड़े। फिर दीपू ने अपनी नानी से सवाल किया कि ये तोता मुझे चोर क्यूं कह
रहा है?
नानी ने दीपू को समझाया ‘दीपू ये तुम्हे चोर
नहीं कह रहा है बल्कि तुमको चोर चोर चोट्टा कहकर चिढ़ा रहा है।’
‘हां तो ये मुझे ऐसे क्यूं चिढ़ा रहा है?’
दीपू ने सवाल आगे किया।
‘बच्चे तुमने नाना से बगैर पूछे ही उनकी थैली
को उठा लिया था ना, तो बस इसीलिए ये तुमको चिढ़ाने लगा।’ नानी ने दीपू को मिट्ठू
के चोर चोर चोट्टा कहने का कारण स्पष्ट किया।
‘तो क्या मैं नाना की थैली को नहीं छू सकता
हूं नानी।’ दीपू ने पूछा।
‘नहीं।’ नानी ने कहा।
‘पर क्यूं?’ दीपू ने कारण जानना चाहा।
‘बिना किसी से पूछे बगैर किसी का सामान छूना ग़लत बात है। ये किसी सभ्य बच्चे की निशानी नहीं होती है।’ नानी ने दीपू को संतुष्ट किया।
अगली सुबह दीपू बीरू के चप्पल पहनकर घर से
निकलने लगा। ऐसा करते समय दीपू को मिट्ठू ने फिर देख लिया और वह ज़ोर से चीखा- ‘चोर
चोर चोट्टा... चोर चोर चोट्टा। चोर चोर चोट्टा... चोर चोर चोट्टा।।’
इस बार दीपू मिट्ठू पर आगबबूला हो गया। वह
मिट्ठू के पास जाकर गुस्से में कुछ बड़बड़ाने लगा।
‘क्या मैं अब हर काम के लिए तुमसे पूछा करूं?
मिट्ठू कहीं के.. हुंह।’
भीतर से नानी एक कटोरी में दही और चीनी को
चम्मच से मिलाती हुई आयीं और कटोरी दीपू को थमाते हुए बोलीं- ‘गुस्सा क्यूं कर रहे
हो दीपू बेटा?’
‘नानी मुझे दीपू का बोलना बिल्कुल भी अच्छा
नहीं लगता है।’ दीपू ने शिकायती स्वर में कहा।
‘लेकिन बच्चे क्या तुम सभ्य बालक नहीं बनना
चाहते हो?’ नानी ने दीपू से स्वयं सवाल किया।
‘मैं तो चाहता हूं।’ दीपू ने झट से अपने मन की
कह दी।
फिर नानी ने उसे ठीक से समझाया कि ‘देखो दीपू,
मिट्ठू जब भी तुम्हें तुम्हारे कामों के लिए टोकता है वो सब तुम्हारे सभ्य बनने के
लिए ही है। हम बच्चों को कई बातें बुरी ज़रूर लगती हैं लेकिन यदि हम उन्हे सीखते
जाते हैं तो धीरे-धीरे हम होशियार होते चले जाते हैं और लोग हमे सभ्य बच्चा कहने
लगते हैं। इतना ही नहीं फिर ये सारे लोग हमें हमारे व्यवहार के लिए शाबाशी भी देते
हैं।’
शाबाशी से दीपू को याद आया कि उसके क्लास-टीचर
ने इस छुट्टी पर एक नई बात सीखने को कहा था।
दीपू अपनी नानी की गोद में जाकर बैठ गया और
बोला कि ‘मुझे अब से मिट्ठू की बातें बिल्कुल बुरी नहीं लगेंगी। बल्कि मैं उसकी
बातों को अपने ध्यान में रखुंगा और सुधार लाउंगा।’
नानी ने दीपू की बातें सुनकर उसके माथे को चूम
लिया।
इस तरह दीपू को लगभग आठ से दस बार मिट्ठू ने
चोर चोर चोट्टा कहकर पुकारा लेकिन दीपू को मिट्ठू की बातों का बिल्कुल भी बुरा
नहीं लगा। बल्कि दीपू ने तो दिन-पर-दिन अपनी आदत में सुधार लाने लगा।
आज अगली कक्षा में दीपू का पहला दिन है। दीपू
का एक साथी उसके बस्ते से किताब निकालकर तसल्ली से अपनी बेंच पर बैठा पढ़ रहा था।
तभी दीपू आ गया और उसे देखकर दीपू ने उस पर ज़ोर की चीख लगाई- ‘चोर चोर चोट्टा..।।’
कक्षा के सभी लड़के आकर दीपू के पास जमा हो
गए। सबकी उत्सुकता को देखते हुए दीपू ने उन सबको चोर चोर चोट्टा का मतलब समझा दिया
कि यदि कोई भी बगैर पूछे किसी का सामान उठाए तो उसको ऐसे ही चोर चोर चोट्टा कहकर
चिढ़ाना है। इससे उसको बुरा लगेगा और फिर धीरे-धीरे वो अपनी आदत में सुधार ले
आएगा।
अगले दिन किसी दूसरी कक्षा का लड़का दीपू की
क्लास में घुसा और चॉक-डस्टर लेकर जाने लगा। वह लड़का ज्यों ही बाहर निकलने लगा
पीछे से दीपू की पूरी कक्षा चिल्लाई-
‘चोर.....चोर....चोट्टा।।।’
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