Wednesday, 27 April 2016

कचरा दानव










एक बार एक गांव में महामारी फैल गई। वहां के लोग तेज़ी से बीमार पड़ने लगे। रोज़ाना किसी न किसी घर से एक आदमी अस्पताल पहुंचने लगा। बीमार होने वाले लोगों में बच्चे, बूढ़े, आदमी और औरत सभी लोग थे। धीरे-धीरे गांव के आधे से ज़्यादा घरों के लोग बीमार होकर बिस्तरों पर पहुंच गए। अब गांव वालों के सामने यह महामारी एक बड़ी समस्या थी।
काफी दिनों से गांव वाले इस महामारी की समस्या की गुत्थी सुलझाने में लगे थे। उनको बड़ी चिन्ता थी कि जाने क्या ऐसी विपत्ति आन पड़ी है कि किसी को हैजा हो रहा है तो किसी को पीलिया। किसी के पेट में भारी परेशानी आ गई है तो किसी को त्वचा के रोगों ने घएर रखा है। बड़ी मशक्कत के बाद भी गांव वालों को इस समस्या के कारण का पता नहीं चल पा रहा था कि आख़िर माजरा क्या है जो पूरे गांव के लोग एक साथ इतनी बड़ी मात्रा में बीमार पड़ते जा रहे हैं। आधे गांव को तो महामारी ने पहले ही जकड़ रखा था। अब ये संख्या बढ़ती ही जा रही है। गांव वाले अब और ज्यादा परेशान हो रहे थे।
गांव में इस महामारी की समस्या इतनी तेज़ी से फैल रही थी कि हर आम-ख़ास और बूझ-अबूझ को इसकी भनक लग गई थी। पिंकी भी इस समस्या को जान गयी थी। वो इस बात से डरी भरी थी कि वह भी इस महामारी की चपेट में न आ जाये। हालांकि पिंकी का घर अभी इस बीमारी के कहर से दूर है, फिर भी चार साल के नन्हे से दिल में ही सही बीमारी का भय तो होगा ही।
अब तक महामारी की समस्या को लेकर गांव वालों की चिंता और भी बढ़ चुकी है और समस्या का हल कहीं दूर-दूर तक उन्हें नज़र भी नहीं आ रहा है। आज गांव के प्रधान ने इस समस्या से निपटने का हल ढूढ़ने के लिए गांव में डुग्गी पिटवाई है। शाम को पूरा गांव पंचायत भवन पर इकट्ठा हो रहा है।

आज पंचायत भवन गांव के लोगों से ठसाठस भरा पड़ा है। पिंकी भी प्रधान की मेज की बिल्कुल जोर धरे वहां बैठी है और सबकुछ ग़ौर से देख-सुन रही है। पंचायत में गांव की इस भयानक समस्या को लेकर भारी चिंता जाहिर की गई। लेकिन आज भी कोई हल न निकल सका। तभी पहली लाईन में पीछे से तीसरे नम्बर पर बैठे रजोल चाचा ज़मीन का सहारा लेते हुए खड़े हुए और सबका ध्यान अपनी तरफ खीचते भए बोले- ‘देखो भाई प्रधान जी, पास के कुंभीपुर गांव में एक बुल्ला बाबा हैं। बड़े होशियार हैं वो। लगता है कि हमारे गांव पर किसी जिन्न का साया है। कहो तो कल उनको बुला लावें?’
सभी लोग एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। प्रधान जी ने भी सबका मन भांपकर रजोल चाचा को हां कह दिया। अब भला प्रधान जी करते भी क्या किसी के पास कोई दूसरा हल भी तो नहीं था।
अगले दिन बुल्ला बाबा के साथ रजोल चाचा सहित पूरा गांव फिर से पंचायत भवन में इकट्ठा है। इस बार पिंकी बुल्ला बाबा जहां बैठे हैं उनकी पीठ से ठीक पीछे उत्सुकता से खड़ी है। प्रधान और पूरे गांव वालों के सामने रजोल चाचा ने बुल्ला बाबा के सामने गांव की समस्या को बताना शुरू किया- ‘बाबा हमारे गांव पर किसी राक्षस की साया है। लगता है कि कोई जिन्न हम गांव वालों को परेशान कर रहा है, वो हमें बीमार बना रहा है।’
‘चिन्ता की कोई बात नहीं है। मैं उस जिन्न को बोतल में भरकर इस गांव से दूर कर दूंगा.. बहुत दूर।’ बुल्ला बाबा ने पूरे गांव की सहानुभूति लेने के लिए थोड़ा ज़ोर से कहा।
अब जब रजोल चाचा खुद ही गांव की महामारी की समस्या को जिन्न से जोड़ रहे थे तो भला बुल्ला बाबा कैसे उनकी हां में हां न मिला देते। आख़िर बुल्ला बाबा का पेशा ही यह था, लोगों को अंधविश्वास के झांसे में फंसाकर उनको ठगना। लिहाजा गांव से कुछ रुपए लेकर बुल्ला बाबा जिन्न को ढूढ़ने के बहाने फरार हो गए और फिर कभी दोबारा इस गांव में लौटकर नहीं आए।
उधर गांव में बीमार होने वालों की संख्या और बढ़ती ही चली जा रही थी। इनमें औरतों की संख्या पुरूषों से बहुत ज्यादा थी। फिर एक दिन ऐसा आया जब पिंकी के घर का भी एक सदस्य बीमार हो गया और वो सदस्य कोई और नहीं बल्कि खुद पिंकी ही है। दरअसल कल रात से पिंकी के पेट में ज़ोर की पीड़ उठ रही है।वो दर्द के मारे कराह रही है। उसके दिमाग में यही चल रहा है कि बीमार करने वाले उस जिन्न को पकड़ कर कोई बोतल में क़ैद कर दे। उस जिन्न के लिए पिंकी का गुस्सा उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था।
अगले दिन सरकार की तरफ से एक अधिकारी पिंकी के गांव पहुचा। उसे पंचायत घर की ओर जाने का रास्ता नहीं मालूम था। उस दिन पिंकी की मां उसे लेकर घर के बाहर ही बैठी थीं। पिंकी खटोले में लेटी आराम कर रही है। अधिकारी ने पिंकी की मां से पंचायत घर का रास्ता पूछा और पिंकी को बीमार देख उसकी हालत भी जानने के लिए पिंकी के पास जा बैठा। अधिकारी ने पिंकी के माथे पर अपना हाथ फेरते हुए पूछा उसकी मां से पूछा- ‘क्या हुआ है इसे?’
पिंकी की मां ने उस अधिकारी से पिंकी सहित पूरे गांव का हाल बता डाला।
‘अंकल मुझे उस जिन्न को ना, बोतल में भरना है जो हमें बीमार कर रहा।’ पिंकी ने हल्की सी तोतली आवाज़ में अधिकारी को अपने हाथओं के इशारों से कहा।
अधिकारी हंस पड़ा और पिंकी के हाथों को देखते हुए बोला- ‘जिन्न को तुम ज़रूर बोतल में क़ैद कर लेना मेरी बच्ची। लेकिन पहले ये बताओ कि आपके हाथों के नाखून इतने बढ़े हुए क्यूं हैं? यही आपकी बीमारी के असली जड़ हैं।’
पिंकी की मां हड़बड़ाकर पिंकी के और पास आ बैठी और उसके हाथों को देखने लगी।
अधिकारी ने सीधे पिंकी की मां से ही बात की और कहा कि ‘ये तो बच्ची है। आपको इसका ख्याल रखना चाहिए। पता है ये इन्हीं नाखूनों की बजह से ही बीमार है? इसके नाखूनों में जमा ये कचरा ही इसे बीमार बनाने के लिए ज़िम्मेदार है। थोड़ा साफ-सफाई का ख्याल रखना चाहिए आपको।’
थोड़ी देर सोचने के बाद वह फिर बोला कि ‘मुझे उम्मीद है कि ये पूरा गांव कचरे की बजह से ही बीमार हुआ होगा।’
पिंकी की मां चुपचाप अधिकारी की बातें सुनती रही।
‘तुम सब गांव वाले अपना कचरा कहां फेंकते हो?’ अधिकारी ने पूछा।

‘यहीं साहेब। हम तो घर के सामने ही इस तालाब के जोर में फेंक देते हैं और सब लोग भी लगभग ऐसे ही जिसे जहां मिला उसने वहीं फेंक दिया।’
‘बस यही तो तुम पूरे गांव वालों की बीमारी कारण है।’ पिंकी की मां की बातें सुनकर अधिकारी हैरान था।
‘माफ़ कीजिएगा, आप सबलोग शौच के लिए कहां जाते हो?’ अधिकारी ने फिर पूछा।
पिंकी की मां ने फटाफट सब साफ-साफ कह दिया कि ‘साहेब बाहर ही जाते हैं खेतों में। गांव में तो शौचालय ही नहीं है।’
अधिकारी ने मामले को गम्भीरता से समझते हुए कहा कि ‘देखिए, आपके गांव में स्वच्छता की हालत बहुत ही खस्ता है। सरकार के ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की ओर से आपके गांव में भी शौचालय की व्यवस्था की जाएगी। साथ ही कचरे के सही रख-रखाव के लिए भी उचित प्रबंध की ओर ध्यान दिया जाएगा। जल्दी ही इसके लिए कोई न कोई व्यवस्था ज़रूर करवायी जाएगी। लेकिन इसके साथ ही आपके पूरे गांव को भी स्वच्छता के लिए खुद ही जागरुक होना होगा और आपसी सहयोग से अपने गांव को कचरा-मुक्त करना होगा वरना ऐसे ही सब बीमार होते रहेंगे। मैं अभी पंचायत भवन जाकर प्रधान से मिलता हूं और इसकी रपट सरकार को भेजकर यहां और भी बंदोबस्त कराने की अर्जी देता हूं। लेकिन ध्यान रहे गांव में अब और कचरा बिल्कुल नहीं।’
इतना समझाकर अधिकारी पंचायत की तरफ जाने के लिए उठता है, लेकिन इससे पहले वह पिंकी की ओर देखकर मुस्कुराता है और फिर से उसके माथे पर हाथ फेरकर उठने को करता है कि बीमार पिंकी ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली- ‘अंकल जी, ये कचरा क्या होता है?’ मासूमियत भरी नज़रों से पिंकी ने उस अधिकारी से पूछ लिया।
अधिकारी ने पिंकी को ठिठोली करते हुए अपनी गोद में उठा लिया।
‘बेटा ये एक दानव है, कचरा दानव। ये बहुत ख़तरनाक होता है, जो हमें बीमार कर देता है।’ अधिकारी ने पिंकी को समझाने का प्रयास किया।
‘हूं..... फिर हमें डॉक्टर के पास जाना पड़ता है।’ पिंकी अधिकारी की बातों को अपने तरीके से समझ रही थी।
‘और क्या..!’ अधिकारी ने पिंकी की बातों की हुंकारी भरी।
‘अंकल!’ पिंकी कचरे को ख़त्म करने की फिराक़ में थी।
‘हां बोलो...।’ अधिकारी भी पिंकी को अपने संचार-कौशल से सीख देने के लिए तैयार था।
पिंकी ने अपना सवाल पूछा- ‘ये कचरा दानव कैसे मरेगा?’
‘अरे बेटा, इसका तो बड़ा आसान सा तरीक़ा है।’
‘वो क्या...?’ पिंकी ने अपनी उत्सुकता जारी रखी।
‘अब जैसे हम जिन्न को बोतल में क़ैद करते हैं ना...’
‘हां-हां...’ पिंकी की उत्सुकता और बढ़ती जा रही थी।
‘बस वैसे ही कचरे को भी उठाकर डिब्बे में बंद करके रखना है। कचरा दानव हमें कहीं भी इधर-उधर खुलेआम दिख गया न तो समझो वो हमें बीमार करके ही छोड़ेंगा।’
‘ये..ए...ए.... अब हमें जहां भी कचरा दानव दिखेगा उसे उठाकर डिब्बे में बंद कर देना है..’ और पिंकी ख़ुशी से हंस पड़ी।

उसकी हंसी में पिंकी की मां और उस अधिकारी की हंसी भी मिलती चली जा रही है, मानो पिंकी की इच्छा-शक्ति ने कचरा दानव को जिन्न की तरह हमेशा के लिए क़ैद कर लिया हो।

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