Saturday, 29 July 2017

दस्तावेजः खागा का वीर बालक

अपनी अर्धांगनी श्रीमती धुन्नू कुँवर के साथ 'वीर बालक' बृजलाल

खागा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बृजलाल पाल पुत्र नारायण उर्फ मुन्नू गड़रिया को 15 अगस्त, 1972, 24 श्रावण, 1894 शकाब्द को स्वतंत्रता के 25वें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए सन् 1913 में जन्मे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बृजलाल पाल को राष्ट्र की ओर से प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने आनन्द भवन, इलाहाबाद में ताम्र-पत्र और एक चांदी का मेडल भेंट किया।

बृजलाल पाल की पत्नी श्रीमती धुन्नू कुँवर ने बातचीत में बताया कि हेमवती नंदन बहुगुणा समेत तमाम बड़े कांग्रेसी नेताओं का हमारे यहां लगातार आना-जाना लगा रहता था। धन्नू कुँवर को बड़ा स्पष्ट याद है और वह बताती हैं कि एक बार जब हेमवती नंदन बहुगुणा हमारे यहां आये थे तब हम कच्चे मकान में रहते थे और मैंने छप्पर के नीचे अपने चूल्हे में एक पतीली पर गुड़ चाय बनाकर उन सबको पिलाया था।
इन्दिरा गांधी जब खागा आती थीं तो गंगा पांडे के घर में बैठकी होती थी जिसमें बृज लाल पाल आदि लोगों का बढ़ चढ़कर मीटिंग के लिए बुलावा होता था।

(स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बृजलाल पाल के छोटे पुत्र हरिशंकर ने लेखक अमित राजपूत को बताया।)
29 मई, 1993 को 80 वर्ष की अवस्था में बृजलाल पाल का निधन हो गया।

बृजलाल पाल के बड़े लड़के रामचंद्र पाल बताते हैं कि जब जब मैं 10 साल का था तो सन् 1962 के चुनाव के समय नेहरू जी को शुकदेव कॉलेज की बड़ी फील्ड में अपनी जनसभा करनी थी। इसके लिए उनको बहादुरपुर खागा हो करके ही नई बाजार मोहल्ले के रास्ते बड़ी फील्ड को जाना था। तब वह हमारे घर के पास जनहितकारी इंटर कॉलेज के बगल में प्राइमरी स्कूल के सामने से होकर अपनी एम्बेस्डर कार से गुगर रहे थे। तब बप्पा (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बृजलाल पाल) ने मुझे और मेरी छोटी बहन शकुंतला (तब वह साढ़े सात साल की रही हैं) को एक-एक गेंदे के फूल के माला देकर नेहरु जी के गले में डालने को दे दिया। हम दोनों ने नेहरू जी को एंबेसडर कार में बैठे-बैठे ही माला पहनायी थी। उधर से जवाब में नेहरू जी ने हमें पहले से ही अपने गले में पहली तमाम मालाओं मे से एक-एक उतार कर मुझे और मेरी बहन को पहना दी। मेरे गले में नेहरू जी द्वारा पहनायी गयी माला कपड़े के फूलों की बनी थी जिसे मैंने सहेजकर एक बड़े बक्से में रख दिया था। लेकिन सन् 1970 में जब खागा में गंगा-जमुना एक होकर बहने लगीं और भीषण बाढ़ आयी तब यहां नावें भी चलने लग गयी थीं। हमारे घर गिरने लगे। तब उसी बाढ़ में हमारा मिट्टी का बना हुआ घर भी गिरकर ढह गया था और वह बक्सा जिसमें मैने नेहरू जी द्वारा दिया गया माला रक्खा था, बाढ़ में डूब गया। हम घर छोड़कर चले गये और इसी के साथ नेहरू जी के द्वारा दी गयी वो निशानी सदा के लिये खो गयी।

लेखागार (न्याय) 15 विविध, 71, 72 के अनुसार बृज लाल पाल दिनांक 21 जनवरी, 1932 को फतेहपुर के कस्बा गाजीपुर में दफा-144 का उल्लंघन करते हुए कांग्रेस का जुलूस निकालने के अभियोग में श्री रमाकांत मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी द्वारा दिनांक 23 जनवरी, 1932 को धारा-143 तथा 188 ता. हि. के अंतर्गत तीन-तीन माह की सख्त कैद और 15-15 रुपए जुर्माना अथवा एक-एक माह के अतिरिक्त कैद की सजा का आदेश दिया गया। दोनो ही सजायें क्रमवार चलने का आदेश हुआ था। इनसे कोई जुर्माना वसूल नहीं हुआ। वह सजा भुगतकर  27 अगस्त, 1932 को जेल से छूटे गये। उनके द्वारा क्षमा याचना करना नहीं पाया गया।
(मुकदमा नंबर- 38 सन् 1930; थाना-गाजीपुर, सरकार बनाम बैकल आदि।)

सन् 1929 में कानपुर के फूल बाग में उन्होंने सत्याग्रह किया था जिस पर अंग्रेजों ने उन्हें 3 माह की सख्त कैद और तीन बेत मारने की सजा दी थी। इस सजा के बाद बाद बृजलाल अंग्रेज़ों के चंगुल से बैकल (पागल) बनकर किसी तरह से बचकर निकल आये थे। तब से अंज्रेज़ों और पुलिस वालों के बीच से बैकल की पहचान के साथ ही पेश आते रहे और इसी पहचान से इनको सजायें भी दी जाने लगीं तथा इन पर मुक़दमें चले।
(स्वतंत्रतता संग्राम सेनानी बृजलाल पाल के मांझिल पुत्र रविशंकर से लेखक अमित राजपूत की सीधी बातचीत)

साल 1924 में जब झंडा गीत कानपुर में गाया गया तब बृजलाल पाल छात्र थे। वे बहुत तेज़-तर्रार स्वभाव के थे। इस समय इनकी उम्र मात्र 11 वर्ष की थी। वे फतेहपुर के तमाम कांग्रेसियों के साथ कानपुर जाकर के झंडा गीत गाने में सम्मिलित हुये थे। इसी के बाद से इनमें देश की आज़ादी के लिये काम करने का भारी जुनून पैदा हुआ और वे अपने स्कूल की पढ़ाई छोड़कर पूरी तरह से स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े थे।
(स्वतंत्रतता संग्राम सेनानी बृजलाल पाल के मांझिल पुत्र रविशंकर से लेखक अमित राजपूत की सीधी बातचीत)

खागा नगर के इकलौते स्वतंत्रता सेनानी बृजलाल पाल 12 वर्ष की उम्र में पढ़ाई छोड़कर इंडियन नेशनल कांग्रेस के दफ्तर में जाकर विभिन्न आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे थे। उनके साहस को देखकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें वीर बालक की उपाधि तक दे डाली थी।

आजादी की लड़ाई के दौरान सन् 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में खागा नगर निवासी बृजलाल पाल ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। इस आंदोलन के दौरान कानपुर के फूल बाग में इन्होने आजादी का प्रतीक तिरंगा झंडा भी फहराया था। इसमें भाग लेने पर इन्हें एक सप्ताह की सजा मिली थी। इसमें अंग्रेजो के जुल्मों को ताक में रखते हुए इस धरती मां के लाल ने अंग्रेजो के खिलाफ कड़ा मोर्चा लिया।

नमक क़ानून तोड़ने पर बृजलाल पाल को 2 माह, 13 दिन की कैद वर्धा जेल में काटनी पड़ी थी।
कानपुर में विदेशी कपड़ा जलाने के आरोप में इन्हें तीन सप्ताह की जेल हो गयी और ये पकड़कर कारागार में डाल दिये गये।
(दोआबा-वार्ता-फतेहपुर, 15 सितम्बर, 1995, पेज़-1)


कांग्रेस के उत्साही कार्यकर्ता बृजलाल सन् 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भी थोड़ी अवधि के लिये जेल गये थे। (सूचना विभाग-उत्तर प्रदेश सरकार, पेज़-568)

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