चित्रः साभार |
एक
कली खिलते देखा है
ज्येष्ठ
मास,
रीती सरसी में
एक
कली खिलते देखा है। -2
धानी
धवल वसन लिपटी है
मुखमण्डल
आभा शोणित है
केश
क्रमागत सुलझे सुलझे -2
भानु
प्रबल तपते देखा है।
एक
कली खिलते देखा है। -2
है
शिरीष स्निग्ध अति सुन्दर
मसृण
गात,
कुशाग्र पयोधर
उनके
रद शशिप्रभा सरीखे
विमल
साँच दुर्दम्य हँसी में
अतीन्द्रिय
निष्कलुषित माया
परिमल
मादक तुहिन पाश से -2
कितनों
को घिरते देखा है
एक
कली खिलते देखा है। -2
अज्ञ
विज्ञ जो प्रेम पियासे
बैठे
बहुत गये रिसियाते
अनाहूत
भृंगी बहु धाये
मधु
रेचक अभ्यंतर आये
अगणित
कंदर्पी परिरम्भण
चन्द्रहास
का कर सुस्पंदन
रूप
शिवी की युक्ति हुयी तो...
स्वच्छ
गवाक्ष हुये मनमारे
पावस
की तुम बूँद हो आली
मानसीक
सी तुम धी धारी
स्वयंसिद्धि
की कर तैयारी
यदा-कदा
निर्देवित चित में
अंतस
को कुढ़ते देखा है
एक
कली खिलते देखा है। -2
हुँकार
हुतासन सहर सहर जब
उमस
में प्राण उबलते तब-तब
जब
भावों का अकाल पड़ता
स्वजनों
से निष्ठागत जड़ता
हृदय
विकल विह्वल सा होकर
ठूँठ
पड़ा नितांत दर जाकर
लेकर
निज मुझ एकाकी को
अप्रहत
रज धूषरित न्यून को
स्नेह
प्रस्त्रवण वेग पुनीता-2
अपने
पर पड़ते देखा है
एक
कली खिलते देखा है। -2
महामंत्र
मस्ती का देकर
फक्कड़
भाव भंगिमा लेकर
होकर
नव अदत्त अवधूता
जीवटता
का बीज जो रोपा
मद
में दसों दिशाएँ देखीं
धूम
प्रभंजन नयन बिलोकी
बेपरवाही
अनासक्ति से
अटखेलत
दुलरात मचलते
सरस
सजल निश्छल उन्मुक्ता
रस
लाती किस विधि किस युक्ता
जोग
कौन अरु कौन तपस्या-2
छुप-छुपकर
मैंने देखा है।
एक
कली खिलते देखा है। -2
अंकशायी
मैं हूँ अंबरासन
कलित
अवीरा वो अंबरसी
वो
चपला शफरी वो केकी
हेम
सुधा सी मूल्य विसेखी
वो
है अटल अमित गुणधर्मा
अपनी
रति की गूढ़ सुकर्मा
है
परिधेय,
सलिल मनभावन
मेरी
तो है यही मनीषा
मेरी
तो है यही तितीर्षा
पार
करूँ तरणी उस सुधी से
मिले
शिरीष कली जिस विधि से
सुभग
मंजरी को माली बन-2
मन
ही मन चुनते देखा है।
एक
कली खिलते देखा है। -2
Very nice, Amit!
ReplyDeleteशुक्रिया आलोक जी
ReplyDeleteआभार...
So Beautiful
ReplyDeleteThanking you.
Deleteआत्मिक विश्लेषण बहुत सुंदर
ReplyDeleteVery Very Thanking you.
Deleteबहुत ही शानदार अमित जी
ReplyDeleteBeautiful poem like u 😊☺️
ReplyDelete