Paint: Agacharya |
तोते की तरह रट्ट मारने में मशगूल
अपूर्वा की बातों से अनिल को कोई मतलब नहीं है। हालाँकि वो एकदम टक्क आँखों से
अपूर्वा के बड़बड़ाते चेहरे को ही निहार रहा है। अपूर्वा भी यह जानकर कि अनिल की
उसमें रुचि है वो उसके सामने बातों का पिटारा खोले ही बैठी है। लेकिन अनिल तो अपने
दीद से अपूर्वा के चेहरे पर कर्ण रेखा की भाँति गिरे उसके बालों के निचले सिरे के
सहारे ऊपर चढ़ता... माथा टटोलता और वहीं उसकी आँखों में कुछ देर ठहरकर वापस उसी
कर्ण रेखा के सहारे नीचे गाल और कंधे के बीच लगभग अपूर्वा की गर्दन तक उतर आता।
अपूर्वा के चेहरे पर पड़े इन चंद बालों के सहारे अनिल इस क्रम
को दोहरा रहा है। पहले चढ़ता... रुकता। और फिर नीचे उतर आता। फिर चढ़ता... रुकता
और अपूर्वा के कंधे तक वापस उतर आता। अनिल की नज़रों की ये अटखेलियाँ तब तक चलती
रहीं जब तक कि अपूर्वा ने अपने हाथ की उँगलियों के सहारे आहिस्ता से उन बालों को सहेजकर
अपने कान में खोस न लिया। ये बाल भी कमबख़्त कुछ देर तक तो कानों में टिके रहे,
फिर अगले पल कानों से सरककर वो फिर अपूर्वा के चेहरे पर गिर आते, जिनके सहारे अनिल
फिर चढ़ता, रुकता और फिर उतरता।
कुछ ऐसे ही अपूर्वा के चेहरे व उसके अन्य अलंकारों की
ज्यामिती में अनिल उलझा रहा। वो मन ही मन सोचता कि इतने महीनों से मिलने की योजना
बनाने के बाद अब जब उसका अपूर्वा से सामना हो रहा है तो वह उसे अपनी कल्पना से भी
सुन्दर पा रहा है। एकदम टनक... झक्क पकी बर्फ़ सी सफेद। उतना सी शीतल उसका मन। बोली
में ग़ज़ब की सौम्यता और स्वभाव में नरमी ओढ़े अपूर्वा ने अनिल के दिल को जकड़
लिया। अपूर्वा का दिल अनिल की जकड़न में आया या नहीं, इसका कोई सनद अभी तक मिलना
बाक़ी है।
अनिल और अपूर्वा की जान-पहचान को अभी लगभग सालभर ही हुये
होंगे, लेकिन आप इनकी बातें सुनिए और बातों में अपनेपन की सघनता को जाँचिए! मालूम होता है कि ये इस धरती का वो सबसे मज़बूत जोड़ा है, जो एक-दूसरे की
जीवन-परतों को सबसे बारीक़ी और संवेदना से जानता है। अपूर्वा को तो इसमें बड़ी
महारत हासिल है। यूँ तो कैनवस पर रंगों और उनकी ज्यामितीय बारीक़ियों को
समझने-समझाने में अनिल का लोहा है। लेकिन ख़ुद उसके जीवनरंगों की बारीक़ियाँ और
संवेदनाएँ उससे अधिक अपूर्वा को मालूम हैं। इसका कारण यह भी हो सकता है कि अनिल को
अपूर्वा ने ही सबसे बारीक़ी से पढ़ा हो। रोज़ उसकी कल्पनाओं, संवेदनाओं और उसके
तादात्म्य की पहेलियों को अपूर्वा ने ही सुलझाया हो। अपूर्वा तो कम से कम यही
बताती है।
केवल यह ही नहीं कि दोनों एक-दूसरे को महज सालभर से ही
जानते हैं, बल्कि आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि दोनों आज पहली बार ही मिल रहे
हैं। इनके आपसी परिचय का क़िस्सा भी बड़ा दिलचस्प है।
दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस के दौर में यह भारत में
हुए देशव्यापी लॉकडाउन के अनलॉक का तीसरा या चौथा चरण था। प्राइमरी स्कूल ख़ुल
चुके थे, लेकिन एक दिन एक ही टीचर को स्कूल में आना था। उसमें भी बच्चों का स्कूल
आना अभी भी मना था। ऐसे में पेशे से प्राइमरी टीचर अपूर्वा शुक्ला का उनके स्कूल
में बैठे-बैठे दिन काटना मुश्किल होता। अख़बारों ने भी अपने संस्करणों में पन्ने
बहुत कम कर दिये हैं। वरना बैठे-बैठे कुछ घण्टे अख़बार के सहारे ही निकल जाते थे।
अब तो अपूर्वा के लिए एक ही साधन उनका मोबाइल ही रह गया। तो आजकल वो घण्टों मोबाइल
सर्फिंग में ही लगी रहती हैं।
एक रोज़ ऐसे ही जब वो अपने किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के
पेज़ को स्क्रॉल करने में लगी थीं, तो उन्हें वहाँ एक विज्ञापन दिखाई दिया। ये एक
ऑनलाइन आर्ट गैलरी का विज्ञापन था, जहाँ जाकर आप पेंटिंग्स को देख सकते थे और
ऑनलाइन ख़रीद भी सकते थे।
अपूर्वा उस आर्ट गैलरी में अब पूरा-पूरा दिन बिताने लगी।
ये गैलरी नए ज़माने के एक मशहूर युवा चित्रकार अनिल पटेल की थी। अनिल अभी महज 27
साल के हैं। लेकिन उनका काम और नाम इन दिनों देशभर में काफी मशहूर है। अनिल के काम
को रोज़ धीरे-धीरे देखते हुए अपूर्वा उससे बेहद मुतासिर हुयी। पैसे वाले इंजीनियर
पिता की संतान अपूर्वा के लिए उसकी टीचिंग की सैलरी उसके लिए महज पॉकेट मनी की तरह
ही थी। लिहाजा अपूर्वा को अनिल की पेंटिंग्स ख़रीदने में अधिक विचार न करना था।
इसलिए एक दिन उसने अनिल की तीन पेंटिग्स को ख़रीदकर अपने घर मँगवा लिया।
अनिल की ये तीनों पेंटिंग्स अपूर्वा के लिए लॉकडाउन में
जीने का सहारा बन गयी थीं। चूँकि इन दिनों अपूर्वा को केवल अपनी बारी में ही
हफ़्ते में केवल एक दिन ही स्कूल जाना पड़ता था। बाक़ी शेष दिनों में उसे घर पर ही
पड़े रहना था। ऐसे में अनिल की उन पेंटिंग्स की बारीक़ियों, संवेदनाओं और
ज्यामितियों में वो खोई रहती, जिन्हें अपूर्वा ने ख़रीदकर अपने घर मँगा लिया था।
विश्वविद्यालय के दिनों में दृश्यकला की विद्यार्थी होने
के नाते ही अपूर्वा को पेंटिंग्स में इतनी गहरी रुचि और बारीक़ समझ है। बतौर फ़ाइन
आर्ट स्कॉलर अपूर्वा को अनिल की पेंटिग्स अभूतपूर्व लगती हैं और ख़ासतौर पर अनिल
की पेंटिंग्स के रंगों की भाषा।
सच पूछो तो अब अपूर्वा अनिल की कूची और कल्पना की उससे
तारीफ़ करना चाहती थी। ज़रा सा अनिल के क़रीब आना चाहती थी। इस कारण उसने अनिल का
सम्पर्क तलाशना शुरू किया। और अपूर्वा को इसमें जल्दी ही सफ़लता भी मिल गयी तथा
उसे अनिल का मोबाइल नम्बर भी मिल गया। ह्वाट्स एप, ट्विटर, फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम
हर जगह अनिल और अपूर्वा अब मित्र हो चुके थे। लेकिन असल ज़िन्दगी में दोनों में
दोस्ती होना अभी आसान न था। दोस्ती होती भी कैसे! अनिल
एक पब्लिक फ़ीगर होल्ड करता है और अपूर्वा एक टीचर है। हालाँकि कुछ दिनों बाद
धीरे-धीरे दोनों की बातें होना शुरु हो गयी। ज़्यादातर बातें ह्वाट्स एप पर होतीं
और ये प्रायः होने लगीं। वैसे तो अनिल और अपूर्वा की दोस्ती न होने में केवल अनिल की
ख़्याति भर का रोड़ा था लेकिन अच्छी बात यह रही कि स्वयं अपूर्वा का स्वभावगत औरा
उसके अपने पद से कहीं विपुल था और अनिल अपने वास्तविक औरे से नीचे अपने स्वभाव में
एक सुहृदय, अति संवेदनशील और ज़मीनी इंसान था। इस हिसाब से देखें तो दोनों में दोस्ती
की तमाम गुंजाइश नज़र आती है।
किसी के साथ भी बातचीत में अनिल अपने औरे को कभी भी कैश न
करता और न ही उस बैगेज को अपने साथ ढोता। ऐसे में तो अनिल अब चित्रकार अनिल के
चोले से बाहर आकर ख़ालिस अनिल भर अपूर्वा शुक्ला के सामने ख़ुद को अकिञ्चन पाता।
और अपूर्वा अनिल के ज़रा सा नम्र होने पर स्वयं को उस जगह पर देखने लगी जहाँ पर
उसे अनिल के बरक्स शक्ति की समानता मालूम पड़ती थी।
दोनों का ये उतार-चढ़ाव चलता रहा। अनिल चित्रकार अनिल पटेल
से परे अनिल मात्र के रूप में अपूर्वा से बातें करता रहा। कभी-कभी अपने मन की निजी
बातें मसलन अपनी उलझनें, अपनी ख़ुशी, ग़म, रुसवाइयाँ, ज़िम्मेदारियाँ, सफ़लता,
चुनौतियाँ और विफ़लताएँ सबकुछ अपूर्वा के साथ साझा करने लगा। अपूर्वा उन सभी
भावनाओं के साथ अनिल के साथ होती। इस प्रकार, धीरे-धीरे पता ही नहीं चला कि कब
अपूर्वा अनिल की कूची और कल्पना के पार जाकर उसी की मुतासिर हो गयी। अनिल का कुछ
पता नहीं... हालाँकि दोनों अभी तक आमने-सामने से एक-दूसरे से कभी मिले नहीं। ये
समझने वाली बात है। लेकिन अब तो दोनों ही एक-दूसरे के जीवन को हर रोज़ ऊर्ध्वता
देते जाते। अब अनिल रंग भरता था, कैनवस के साथ-साथ अपूर्वा के जीवन में भी।
अपूर्वा पाठ पढ़ाती थी, केवल अपने स्कूल के बच्चों भर को नहीं, बल्कि अनिल को भी
उसके जीवन के उलझाऊ और पेचीदे पाठ।
अनिल पटेल के जीवन में जीवटतावश अपूर्व सौन्दर्य बढ़ता जा
रहा है। अपूर्वा शुक्ला के जीवन में सरोवर सी स्थिरता सा अनिल छाने लगा। “क्या अपूर्वा को प्रेम हो गया है?” अनिल के मन में
आया।
“अर्रे नहीं-नहीं। तौबा मैं ऐसा क्यों सोच रहा हूँ!” अनिल
अपने दाहिने हाथ को चूमकर पहले माथा और फिर अपने कंठ से लगाने के बाद अनिल अपने
कानों को बारी-बारी से पकड़ने लगा।
“अपूर्वा तो बड़ी सोफ़ेस्टिकेटेड है। वो भला इन सब चक्कर में न पड़ेगी, वो
भी मेरे साथ! नहीं-नहीं... ऐसा हो ही नहीं सकता।” इस स्वगत के पीछे मानों अनिल यह स्पष्टता चाहता हो कि आख़िर उसे किसी तरह
यह पता चल जाये कि अपूर्वा शुक्ला उसे प्यार करती है या नहीं।
हफ़्तेभर नहीं बीते कि एक रोज़ अपूर्वा की अनिल के पास कॉल
आती है- “कुछ महत्वपूर्ण चीज़ माँगू तो आप मना तो नहीं करोगे?”
“ऐसा भी क्या है?”
“नहीं, पहले बताओ...” अपूर्वा ने ज़िद की।
“चलिए ठीक है। जानता हूँ आपको, ऐसा भी कुछ नहीं माँगोगी जो मेरे वश में न
हो। आप पर भरोसा है। माँगो क्या चाहिए?” अनिल राज़ी हो गया।
“मुझे आपका एक दिन चाहिए। पूरा...। सुबह से शाम तक।”
अपूर्वा ने उत्सुक किन्तु शर्माकर कहा।
“क्यों?”
“क्योंकि पता नहीं कभी आपसे मिलना हो भी या नहीं। इसी बहाने हम कम से कम एक-दूसरे
से आमने-सामने मिल लेंगे और भविष्य में मेरी यदि शादी हो जाती है तो फिर उस तरह से
ख़ुलकर मिलना न हो सकेगा। इसलिए आपके साथ एक दिन पूरी तरह से जीना चाहती हूँ।” अपूर्वा ने अपना प्रस्ताव अनिल के सामने रख दिया।
“अर्रे मेरा सौभाग्य होगा आपके साथ एक दिन बिताना। मुझे याद रहेगा अपने
जीवन का आपके साथ बीता वो हसीन दिन। बताइए कब मिलना है?”
“मैं बताऊँगी आपको कभी। जब भी मुझे लगेगा कि अब मिलना है।”
“बेशक। आप अपनी सुविधा के लिहाज से बताना जब भी मिलना हो।” अनिल ने भरोसा दिलाया।
अब दोनों एक-दूसरे से मिलने को उत्सुक हो गये और उस दिन की
बाट जोहने लगे जब इनका मिलना होगा। एक दिन अपूर्वा ने अनिल को कॉल करके याद दिलाया
कि हमें मिलना है। भूल तो नहीं गये! बेचारा अनिल
तो तभी से तैयार बैठा था- “अर्रे जब भी मिलना हो बस मुझे एक
रोज़ पहले बता देना। मिलना क्यों नहीं है! ऐसे कैसे भूल
जाऊँगा भला! तुम भी जब मिलना हो, अपने स्कूल से कैज़ुअल लीव
लेकर आ जाना।”
“ठीक है मैं बताउँगी।” कहकर अपूर्वा मुलाक़ात को आगे
के लिए टाल गयी।
अब महीने भर बाद इस बार अनिल ने अपूर्वा को याद दिलाया कि
हमें मिलना है।
“जब भी-जहाँ भी-जैसे भी मिलना हो मुझे बता दो, मिल लेते
हैं।” अपूर्वा राज़ी हो गयी।
वैसे राज़ी होने जैसा किसी की ओर से कुछ बचा ही नहीं था।
अब तो दोनों बस मिलने की जुगत लगा रहे थे। अपूर्वा को लगता अनिल अपने व्यस्ततम समय
में से कुछ समय निकालकर अपूर्वा को बताएगा। वहीं अनिल को लगता कि अपूर्वा अपनी
छुट्टी लेकर ख़ुद ही उसे बताएगी तो अनिल इस मुलाक़ात के लिए समय निकाल लेगा। इसी
रस्साकसी में समय निकलता गया और दोनों न मिल पाने को लेकर एक-दूसरे पर
आरोप-प्रत्यारोप गढ़ते-मढ़ते रहे।
दोनों को एहसास होने लगा कि वास्तव में, जब से दोनों ने
परस्पर मिलने की इच्छा ज़ाहिर की है मानों इनके रिश्ते में संताप सा भर गया हो। ये
बात अपूर्वा ने गाँठ बाँध ली और अब हर हाल में जल्दी से मिल लेने की योजना बनाने
लगी। उसने एक नदी किनारे अनिल से मिलने का फ़ैसला किया। वो चाहती थी कि अनिल से वह
किसी सार्वजनिक जगह पर तो मिले लेकिन वहाँ उसे निजता मिल जाये। इस लिहाज से किसी
रेस्टोरेंट या मॉल की अपेक्षा रिवर बैंक एक अच्छा विकल्प था।
अपूर्वा ने अनिल से अपना प्लान साझा किया। अनिल को भी ये
ख़ूब भाया। अपूर्वा जैसे-जैसे अनिल के क़रीब पहुँचने का ख़्याल करती वो रोमांच से
भर उठती। उसे लगता है कि वो इस एक मुलाक़ात से ही अनिल को अपने भीतर समा लेगी। एक
दिन का जीवन जो दोनों साथ जीने वाले हैं वो प्रेम का ऐसा पर्याय बन उठेगा, जिसके
बोध से अपूर्वा और अनिल ताउम्र तृप्त होते रहेंगे।
आज अपूर्वा और अनिल दोनों की मुलाक़ात का स्वर्ण दिवस है।
वो मुलाक़ात, जिसके होने से पहले ही उसके आनन्द का स्वाद चखा जा चुका है। वो
मुलाक़ात, जिसके ख़्याल अपूर्वा के वास्ते अनिल के ज़हन में भी उतरा रहे हैं। जी
हाँ, वो मुलाक़ात जिसमें युगल परस्पर भेंट तो अब करेंगे किन्तु दोनों का मेल तो
पहले ही हो गया है।
सूर्योदय से पहले उमड़ आई पुरवाई की बयार की तरह सरफराती
अपूर्वा ने अनिल के लिए चमेली के फूलों से गुछा एक बुके लिया। अपने कपड़ों के
चुनाव में तो उसने आज ख़ासा वक़्त जाया कि तब जाकर सफ़ेद कुर्ती जिस पर रंग बिरंगी
बुंदियों की झालर पड़ी है, का चुनाव कर पायी है वो। बदन पर गुलाबी इत्र और आँखों
में गाढ़ा काजल लगाकर गौरवर्णी अपूर्वा जैसे नवोढ़ा तितली जान पड़ रही है, जिसकी
सफ़ेद चूनर पर अभी लाल टीका लगना बाक़ी है।
इधर अनिल भी अपूर्वा के दिये समय पर तैयार होकर नदी किनारे
पहुँच गया। अपूर्वा के हाव-भाव और आँखों में अपने लिए प्रेम की नदी की लहरें अनिल
साफ़ देख रहा था। दोनों घण्टों तक नदी किनारे बैठे बातें करते रहे। अनिल को अपूर्वा
कितना मानती है, इसका उसे बख़ूबी भान था। लिहाजा वो कोई ऐसी हरक़त करने को लेकर
पहले ही सावधान था, जिससे कि अपूर्वा के मन में उसके प्रति कोई ग़लत और सस्ता भाव
जगे।
यूँ तो अपूर्वा अपने घर पर बैठी मन ही मन अनिल के बारे में
बहुत कुछ सोचती रहती। लेकिन अब जबकि अनिल उसके सामने प्रत्यक्ष है, तो अनिल के हावभाव
और स्वभाव के सामने अपूर्वा उससे कुछ भी बयाँ नहीं कर पा रही है। वो तो बस अनिल से
बड़बड़ सरपट बातें ही किये जा रही है... बातें ही किये जा रही है। लेकिन तोते की
तरह रट्ट मारने में मशगूल अपूर्वा की बातों से अनिल को कोई मतलब नहीं है। हालाँकि
वो एकदम टक्क आँखों से अपूर्वा के बड़बड़ाते चेहरे को ही निहार रहा है। अपूर्वा भी
यह जानकर कि अनिल की उसमें रुचि है वो उसके सामने बातों का पिटारा खोले ही बैठी
है। लेकिन अनिल तो अपने दीद से अपूर्वा के चेहरे पर कर्ण रेखा की भाँति गिरे उसके
बालों के निचले सिरे के सहारे ऊपर चढ़ता... माथा टटोलता और वहीं उसकी आँखों में
कुछ देर ठहरकर वापस उसी कर्ण रेखा के सहारे नीचे गाल और कंधे के बीच लगभग अपूर्वा
की गर्दन तक उतर आता।
अपूर्वा के चेहरे पर पड़े इन चंद बालों के सहारे अनिल इस
क्रम को दोहरा रहा है। पहले चढ़ता... रुकता। और फिर नीचे उतर आता। फिर चढ़ता...
रुकता और अपूर्वा के कंधे तक वापस उतर आता। अनिल की नज़रों की ये अटखेलियाँ तब तक
चलती रहीं जब तक कि अपूर्वा ने अपने हाथ की उँगलियों के सहारे आहिस्ता से उन बालों
को सहेजकर अपने कान में खोस न लिया। ये बाल भी कमबख़्त कुछ देर तक तो कानों में
टिके रहे, फिर अगले पल कानों से सरककर वो फिर अपूर्वा के चेहरे पर गिर आते, जिनके
सहारे अनिल फिर चढ़ता, रुकता और फिर उतरता।
कुछ ऐसे ही अपूर्वा के चेहरे व उसके अन्य अलंकारों की
ज्यामिती में अनिल उलझा रहा। वो मन ही मन सोचता कि इतने महीनों से मिलने की योजना
बनाने के बाद अब जब उसका अपूर्वा से सामना हो रहा है तो वह उसे अपनी कल्पना से भी
सुन्दर पा रहा है। एकदम टनक... झक्क पकी बर्फ़ सी सफेद। उतना ही शीतल उसका मन।
बोली में ग़ज़ब की सौम्यता और स्वभाव में नरमी ओढ़े अपूर्वा ने अनिल के दिल को
जकड़ लिया। अपूर्वा का दिल अनिल की जकड़न में आया या नहीं, इसका कोई प्रत्यक्ष सनद
अभी तक मिलना बाक़ी है। हालाँकि अपूर्वा ने तो इसके अनुमान बहुत पहले ही दे दिये
थे। ख़ैर...
अब तब दोनों की बातें समाप्त हो चुकी थीं। अपूर्वा और अनिल
में से किसी के पास भी अब कहने के लिए कुछ भी न रह गया था। तथापि दोनों की चुप्पी
में कहने को अंबार लगा है। नदी के किनारे से हटकर एक रेस्टोरेंट में दोनों ने जाकर
लंच किया। वहीं अनिल ने एक सेल्फ़ी क्लिक की, जिसमें दोनों मुस्कुरा रहे हैं और
यही सेल्फ़ी ही इनकी मुलाक़ात का एक मात्र सनद बन गया।
अपूर्वा अपनी कार से वापस अपने घर चली गयी। शाम ढलने लगी। अनिल
एक बार फिर से नदी के उसी किनारे जाकर बैठ गया, जहाँ वो अभी दिनभर अपूर्वा के साथ
बैठा था। रेस्टोरेन्ट में उसने अपूर्वा के साथ जो सेल्फ़ी क्लिक की थी उसका
मेज़रमेंट करके अनिल से अपूर्वा को ह्वाट्स एप पर भेजा। अपूर्वा ने उसे फ़ौरन सीन
कर लिया।
यहाँ नदी किनारे शाम गहरा रही है। ऊपर आसमान में पक्षियों
का कारवाँ अपने-अपने घोसलों की ओर लौट रहा है। अनिल की एक मुट्ठी में कुछ कंकड़
हैं, जिनमें से एक-एक करके वो थोड़ी-थोड़ी देर में उन्हें नदी में फेंक रहा है।
अनिल का मोबाइल ब्लिंक करता है। ह्वाट्स एप मैसेज के
नोटिफ़िकेशन्स हैं। इनमें एक मैसेज नोटिफ़िकेशन अपूर्वा शुक्ला का भी है। अनिल ने
अति उत्सुकता में अपना ह्वाट्स एप खोला। अपूर्वा का मैसेज देखा। एक क्रिएटिव
ब्रोशर है, जिस पर लिखा है- “जो कह दिया वह ‘शब्द’ थे; जो नहीं कह सके वो ‘अनुभूति’ थी। और, जो कहना है मगर; कह नहीं सकते, वो ‘मर्यादा’
है।।”
अचानक से नदी की लहरें तेज़ हो गयी हैं, जिनका शोर अनिल के
कानों को चीरने लगा है...
(इति)
वाह भाई वाह क्या लिखा है आपने इस कहानी को पढ़कते समय मेरे होठो से एक छड़ के लिए मुस्कान नही हटी पुरी कहानी का चितृ मेरे मन में बना रहा।
ReplyDeleteअति सुन्दर कहानी ।
वाह भाई वाह क्या लिखा है आपने इस कहानी को पढ़कते समय मेरे होठो से एक छड़ के लिए मुस्कान नही हटी पुरी कहानी का चितृ मेरे मन में बना रहा।
ReplyDeleteअति सुन्दर कहानी ।