Tuesday, 28 November 2017

सनम झल्लरी...

∙ अमित राजपूत

शादाब मोहब्बत में ऐ फुलझरी
है जवानी तेरी हरिअर वल्लरी 
माशूका बनी आ जतन से बड़े 
यूँ न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।


कामिल करो तसव्वुर जानम 
आफ़रीन कहलाओ,
ताबीर जमे जो उसी पे चलके
मंज़िल तक पहुँचाओ,
लाखों सपने दफ़न यूँ पड़े हैं पड़े
यूँ न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।


आफ़ताब सा रोशन इश्क़ हमारा 
उँजियर बढ़ता जाए,
रंगरेज़ मेरे क्या रंग घोला है 
चोखा चढ़ता जाए,
हैं हकूक भी तुम पर बड़े से बड़े 
यूँ न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।


बगर मेरे बरगद से जमिए
हरदम पानी पाए,
बड़ा करो माटी सा मन 
तन जामे धंसता जाए,
महरम को दिखेगी हां, उनकी जड़ें 
यूं न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।

चमक चेहरे की...

∙ अमित राजपूत

चमक चेहरे की ऐसी कि नूर भी शरमा जाए,
हँसी बरक़रार रहे ऐसी कि दुःखों को भरमा जाए !
लगी आग जंगल में फिर चाहे हो कितनी
बुझे तो बस इतना कि शबनम छूकर भी बहार आ जाए !!

Wednesday, 15 November 2017

पंख लगा उड़ जाइए...


∙ अमित राजपूत
थिर पग पावक उन्हें बनाकर
वात रूप धर जाइए
चलिए चलिए अब है चलना
पंख लगा उड़ जाइए ।

उठ बेताबी तोड़ो ख़ुद की
चैन के ढिग को जाइए
रहिए रहिए उधर ही रहना
हेतु न जब पा जाइए ।

चलिए चलिए अब है चलना
पंख लगा उड़ जाइए ।

शीत लगे शोणित को ग़र फिर
दहक क़दर इस जाइए
कुतर कुतर तुम सारा क़तरा
रक्त नाम कर जाइए ।

चलिए चलिए अब है चलना
पंख लगा उड़ जाइए ।

आवाज़ भी देंगे लोग पुराने
भय मय फेर न जाइए
सजिए सजिए अब है सजना
छोड़ सकल जग जाइए ।

चलिए चलिए अब है चलना
पंख लगा उड़ जाइए ।

नज़र न आना दिव्यदृष्टि बिनु
तारक ध्रुव हो जाइए
चमक चमक कर यूँ तो चमकना
भुवन तलक छा जाइए ।

चलिए चलिए अब है चलना

पंख लगा उड़ जाइए ।

Thursday, 2 November 2017

चिलमन


उठेगा चिलमन फ़िज़ाओं से जब कभी
खिलेगी कली बहारों में रंग लाएगी।
बिखेर कर ख़ुशबू करेगी हैरान फिर भी

चोखा चढ़ेगा रंग इश्क़ का, संग जश्न लाएगी।।