Tuesday, 28 November 2017

सनम झल्लरी...

∙ अमित राजपूत

शादाब मोहब्बत में ऐ फुलझरी
है जवानी तेरी हरिअर वल्लरी 
माशूका बनी आ जतन से बड़े 
यूँ न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।


कामिल करो तसव्वुर जानम 
आफ़रीन कहलाओ,
ताबीर जमे जो उसी पे चलके
मंज़िल तक पहुँचाओ,
लाखों सपने दफ़न यूँ पड़े हैं पड़े
यूँ न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।


आफ़ताब सा रोशन इश्क़ हमारा 
उँजियर बढ़ता जाए,
रंगरेज़ मेरे क्या रंग घोला है 
चोखा चढ़ता जाए,
हैं हकूक भी तुम पर बड़े से बड़े 
यूँ न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।


बगर मेरे बरगद से जमिए
हरदम पानी पाए,
बड़ा करो माटी सा मन 
तन जामे धंसता जाए,
महरम को दिखेगी हां, उनकी जड़ें 
यूं न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।

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