∙ अमित राजपूत
शादाब मोहब्बत में ऐ फुलझरी
है जवानी तेरी हरिअर वल्लरी
माशूका बनी आ जतन से बड़े
यूँ न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।
कामिल करो तसव्वुर जानम
आफ़रीन कहलाओ,
ताबीर जमे जो उसी पे चलके
मंज़िल तक पहुँचाओ,
लाखों सपने दफ़न यूँ पड़े हैं पड़े
यूँ न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।
आफ़ताब सा रोशन इश्क़ हमारा
उँजियर बढ़ता जाए,
रंगरेज़ मेरे क्या रंग घोला है
चोखा चढ़ता जाए,
हैं हकूक भी तुम पर बड़े से बड़े
यूँ न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।
बगर मेरे बरगद से जमिए
हरदम पानी पाए,
बड़ा करो माटी सा मन
तन जामे धंसता जाए,
महरम को दिखेगी हां, उनकी जड़ें
यूं न बहको सनम झल्लरी झल्लरी ।
Nice
ReplyDeleteThanking You.
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