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अमित राजपूत
थिर पग पावक उन्हें बनाकर
वात रूप धर जाइए
चलिए चलिए अब है चलना
पंख लगा उड़ जाइए ।
उठ बेताबी तोड़ो ख़ुद की
चैन के ढिग को जाइए
रहिए रहिए उधर ही रहना
हेतु न जब पा जाइए ।
चलिए चलिए अब है चलना
पंख लगा उड़ जाइए ।
शीत लगे शोणित को ग़र फिर
दहक क़दर इस जाइए
कुतर कुतर तुम सारा क़तरा
रक्त नाम कर जाइए ।
चलिए चलिए अब है चलना
पंख लगा उड़ जाइए ।
आवाज़ भी देंगे लोग पुराने
भय मय फेर न जाइए
सजिए सजिए अब है सजना
छोड़ सकल जग जाइए ।
चलिए चलिए अब है चलना
पंख लगा उड़ जाइए ।
नज़र न आना दिव्यदृष्टि बिनु
तारक ध्रुव हो जाइए
चमक चमक कर यूँ तो चमकना
भुवन तलक छा जाइए ।
चलिए चलिए अब है चलना
पंख लगा उड़ जाइए ।
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