Wednesday, 28 January 2015
Monday, 26 January 2015
संवेदनहीन तंत्र...
•अमित राजपूत
आज
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्वायत्तशासी संस्था भारतीय जन संचार संस्थान में
तिरंगा नहीं फहराया गया। प्रशासन की तरफ़ से कोई भी अधिकारी या उसका प्रतिनिधि तक
संस्थान में बारह बजे भी मौजूद नहीं था। तब ऐसे में आईआईएमसी के छात्रावास में रह
रहे कुछ जागरुक प्रशिक्षुओं ने इस मामले को संज्ञान में लिया और अपने ही खर्च में
बाज़ार से तिरंगा झण्डा और कुछ फूल ख़रीद कर संस्थान में वापस आए और तिंगा फहराया।
आईआईएमसिएन्स ने तोड़ी संवेदनहीनता |
सुबह बारह बजे तक जब आईआईएमसी में राष्ट्रीय
ध्वज नहीं फहराया गया तो वहां के छात्रावास में रह रहे प्रशिक्षुओं ने इसका संज्ञान
लिया। उन्होने संस्थान की प्रचीर में तिरंगा फहराने केलिए सर्वसम्मति से योजना
बनाई और इसके लिए संस्थान में मौजूद कुछ कर्मचारियों और गार्ड्स से प्रशिक्षुओं ने
इसकी सूचना दी कि वह संस्थान में तिरंगा फहराना चाह रहे हैं। किन्तु गार्डों का
कहना था कि हमें कोई आदेश नहीं दिया गया है और न ही ऐसी कोई सूचना ही है कि आज
झंडारोहण होना है। गार्डों की बात सुनकर प्रशिक्षु हैरत में आ गए और उन्होने
गार्डों से कहा कि क्या इसके लिए किसी आदेश और योजना की ज़रूरत पड़ती है? आज हमारा
गणतंत्र दिवस है और हम इसके लिए सुबह से इंतज़ार में हैं कि अभी राष्ट्रध्वज
फहरेगा और राष्ट्रगान के बाद मिष्ठान वितरित किया जाएगा, किन्तु ऐसा नहीं हुआ,
जबकि दोपहर के एक बज चुके हैं। अंत तक दोनो पक्षों में बात नहीं बन पाई और
प्रशिक्षु तिरंगा फहराने के अपने निर्णय और धर्म पर टिके रहे।
इसके बाद का सिलसिला ये रहा, कि प्रशिक्षु संस्था
के मुख्य द्वार से ही तिरंगा फहराने के स्थल तक चढ़ गए और क्रान्तिकारी तरीके से
आईआईएमसी के माथे पर तिरंगा बांधा। इसको लेकर इन युवाओ में काफी उत्साह देखने को
मिल रहा था। इन्होने प्रशासन पर संवेदनहीनता का आरोप लगाया है। इस मामले में सबसे
पहले झंडारोहण स्थल तक पहुंच कर झंडा फहराने वाले नीरज प्रियदर्शी का कहना है कि
आज गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर जहां देश के हर कोने में बैठा युवा जोश और देश-प्रेम
के रंग में डूबा है, वैसी स्थिति के बरक्स हम यहां पर संवेदनहीनता का पाठ सा पढ़
रहे हैं, ये सब सीखने को हमे प्रशासन मजबूर कर रहा है। लेकिन वास्तव में हम
संवेदनहीन हैं नहीं। इसीलिए हमने यह निर्णय किया है कि अपने संस्थान में हम तिरंगा
अवश्य फहराएंगे, और इसीलिए हमने ऐसा किया। वहीं इस युवा दल का नेतृत्व कर रहे सूरज
पाण्डेय ने भी प्रशासन सहित आईआईएमसी एलुमनी एसोसिएशन(इम्का) की निश्क्रियता पर भी
सवाल उठाएं हैं और कहा है कि इम्का भी जब हर कदम पर हमारे साथ रहता है तो इस तरह
के गम्भीर मामलों में भी उसे संस्था की ख़बर लेनी चाहिए। उन्होने कह कि हम जानना
चाहते हैं कि प्रशासन ने क्यूं तिरंगा नहीं फहराया और यदि कोई भी अपिहार्य कारण
रहा भी तो हम छात्रों को इसकी कोई सूचना क्यों नहीं दी गई।
प्राचीर में तिरंगा फहराते नीरज प्रियदर्शी |
तिरंगा फहराकर चॉकलेट खाकर मुह मीठा करते छात्र |
बहरहाल ज्ञात हो कि 66वें गणतंत्र दिवस के दिन
पत्रकारिता का मक्का कहे जाने वाले भारतीय जनसंचार संस्थान में राष्ट्रीय ध्वज
नहीं फहराया गया, ऐसी स्थिति में वहां के छात्रावास में रह रहे प्रशिक्षुओं के एक
दल ने वहां स्वयं से तिरंगा फहराया और मिष्ठान स्वरूप चॉकलेट्स आपस में तथा
कर्मचारी और गार्डों के बीच बांटकर पर्व का जश्न मनाया।
Sunday, 25 January 2015
पद्म प्रयाग
इस बार के पद्म पुरस्कारों में इलाहाबादियों
ने प्रयाग का नाम एक बार फ़िर से गौरवान्वित कर दिया।
इसके लिए दो महापुरुषों का नाम चुना गया है कुम्भ की माटी से। पहला
नाम है, महान संविधानविद् सुभाष कश्यप का। और दूसरा नाम है,
महानायक अमिताभ बच्चन का। ज़ाहिर है दोनों ही व्यक्तित्व पूरी
दुनिया में अपने-अपने क्षेत्र के अद्वितीय ध्रुव हैं, फिर भी
अब तक की सरकारों ने इनको इनके ओहदे से अछूती ही रखती रही।
अब जब इनको पद्म सम्मान के लिए चयनित किया गया है, तो हर इलाहाबादी के चेहरे फड़कने लगेंगे। सनद रहे कि हर वो व्यक्तित्व
जिसने इलाहाबाद को आत्मसात किया है, इलाहाबादी है, फिर वो चाहे नेहरू हों, एएन झा हों या कोई बच्चन।
साहब सुभाष कश्यप जी के जश्न के लिए उम्मीद है कि पीसी बनर्जी
छात्रावास अपनी कसर नहीं उठा रखेगा। और उसकी खुशी को व्यक्त करने के लिए तमाम
छात्रावासीय आतिशबाज़ी भी आपेक्षित है। इसमें उसका साथ सभी छात्रावासों के देने की
उम्मीद भी है कि वो आतिशी का सामान अपने यहां से उठा कर पीसीबी में पहुंचा दें।
आख़िर पूरी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जुड़ी खुशी है। ये मात्र पीसीबी के सीनियर
होने का प्रसंग नहीं है।
दूसरे, दुकान जी जब अमित जी का जन्मदिवस मनाते
हैं तो भला किससे छिपा है। वो पूरा संगम तट अपने स्कूटर से ही तय करते हैं। पर
सुना है कि आजकल उनके स्कूटर का विवाह वहीं दारागंज में ही किसी के स्कूटर से कर
दिया गया है। परन्तु, आनायास चिंता की कोई आवश्यकता नहीं है,
दुकान जी जुगाड़ से अपना काम बनाने में खूब माहिर हैं, ऐसे थोड़ी न राखी सावंत उनकी मुरीद हुई थीं।
खैर ख़ुशी मनाने वाले सिर्फ़ इतने ही नहीं हैं भाई, आमिताभ बच्चन के नाम पर मुट्ठीगंज मा जउन बवाल कटता है रजा.... अब का
बताई। विनय श्रीवास्तव जी तो अकेले ही पूरे थिएटर जगत के लिए काफी हैं वहां। इसके
अलावा साहित्यकारों का जमावड़ा भी इस बार अमिताभ बच्चन जी की इस ख़ुशी में शामिल
हो सकता है और होना भी चाहिए।
चलो अमित जी को पद्मभूषण और सुभाष जी को पद्म भूषण के लिए ढेरों
शुभकामनाएं।।।।।
Saturday, 24 January 2015
संयम...
भारत के ऋषियों-मनीषियों के अनुसार मानव के
जन्म का प्रमुख उद्देश्य परम-तत्व की प्राप्ति है, जो संयम के तमाम सोपानों से
प्राप्त होती है। सच तो ये है कि जिसके पास संयम नहीं हैं, उसके पास कुछ भी नहीं
है। संयम से ही रुप, रस, गंध, स्पर्श आदि में रची-बसी इन्द्रयों पर काबू पाया जा
सकता है। इन्दियों के जाल से निकले बग़ैर परम-तत्व के पथ की यात्रा नहीं हो सकती,
कारण ये है कि इन्द्रियों का काम ही मानव-मन को विषयों वासनाओं में भटकाए रखना है।
विषयों में भटका मन कभी शान्त नहीं हो सकता और अशान्त मन से परम-तत्व के पथ पर
यात्रा नहीं हो सकती।
पर, क्या वास्तव में इंद्रियां मानव-मन को
विषयों में उलझाए रखती हैं.. ? या फिर मन विषयों में भटकता हुआ इंद्रियों का उपयोग
साधन के रूप में करता है? क्या संयम का
अर्थ इंद्रियों पर काबू पाने केलिए इंद्रियों को दबाना है...?
नहीं! असफ़ल साधकों के बारे में इतिहास गवाह
है, कि दमन से हम कहीं नहीं पहुंचते है, बल्कि ऐसे मकड़जाल में उलझ जाते हैं,
जिससे हम आजीवन निकल नहीं पाते। विषय-वासना, उच्चाकांक्षा को दबाने का परिणाम कई
गुने वेग से सामने आता है, जिसकी प्रतिछवि हमें दूषित सपनों के रूप में स्पष्ट
दिखाई देती है। इसीलिए जो संसार से भागते हैं, उनके सपनें तक संसार से भर जाते हैं।
वास्तव में संयम का अर्थ दमन नहीं है, बल्कि दो
अतियों के बीच तराजू के कांटे की तरह ठहर जाना है। मन सतत् यात्रारत रहते हुए दो
अतियों में डोलता रहता है, किन्तु मध्य में ठहर जाना उसका स्वभाव नहीं। मध्य में
ठहरते ही मन की मृत्यु हो जाती है और हमें वो संतुलन उपलब्ध हो जाता है, जिसे हम
संयम कह सकते हैं। इस शान्त मनःस्थिति में मन के सारे विचार रुक जाते हैं और हम
परम शान्ति को पा लेते हैं।
Friday, 23 January 2015
आतंकवाद बनाम अमेरिका
•अमित राजपूत
पाक की हरकत-ए-नापाक यह है, कि जहां एक तरफ़ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी नई दिल्ली में
दुनिया के सबसे पहले लोकतंत्र अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के आने की
तैयारियों को लेकर भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर लगातार आसमान में कुलांचे भरने में लगे हैं, वहीं दूसरी
ओर उसी दिन बिहार के आरा ज़िलें में बम ब्लास्ट होता है। जानकारों का कहना है कि
इसके पीछे पूरी तरह से पाकिस्तानी साज़िश का ही हाथ है, जिनके
नुमाइंदे भारत में रहकर स्थिति को संवेदनशील बना रहे हैं।
अब चुनौती ये है कि मोदी और ओबामा दोनो को इस संकट से प्रभावित होना पड़ रहा है। ऐसे में क्या दोनों महान व्यक्तित्व आतंकवाद के विरुद्ध कोई ठोस रवैया आख़्तियार कर पाते हैं या नहीं...?
अब चुनौती ये है कि मोदी और ओबामा दोनो को इस संकट से प्रभावित होना पड़ रहा है। ऐसे में क्या दोनों महान व्यक्तित्व आतंकवाद के विरुद्ध कोई ठोस रवैया आख़्तियार कर पाते हैं या नहीं...?
उधर बराक ओबामा ने पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश
देते हुए कह दिया है कि देश में मौजूद आतंकवाद के ‘पनाहगार’ स्वीकार्य नहीं हैं।
उन्होने भारत को एक ‘सच्चा वैश्विक साथी’ भी बता दिया है। सिर्फ़ इतना ही नहीं,
ओबामा ने मुम्बई आतंकी हमले के गुनहगारों को सज़ा दिलाने का भी आह्वान किया है।
इससे पहले भी अमेरिका ने अपने भारत-यात्रा पर ही आने के संबंध में पाकिस्तान को
चेतावनी दी थी कि भारत में किसी भी तरह का आतंकी हमला बर्दास्त नहीं किया जाएगा,
जबकि हमलों का सिलसिला बदस्तूर ज़ारी है। हाल ही में बिहार के आरा का ब्लास्ट और
पिछले दिनों कश्मीर घाटी के पुलवामा आदि की घटनाएं ये दर्शाती हैं कि आतंकवादी
ताक़तों में अमेरिका का ख़ौफ किसी भी मायने में रंज-मात्र का भी नहीं प्रतीत हो
रहा है। ऐसी स्थिति में अमेरिका और आतंकवाद बतौर वादी अलग-अलग कटघरों में खड़े से
दीख पड़ते हैं, जिसमें अमेरिका के हर बात का पलटवार वो अपनी प्रकृति से दे भी रहा
है, जो अमेरिका केलिए सबसे बड़ी चुनौता के रूप में प्रस्तुत है।
एक बात और, अमेरिका का आतंकवाद के विरुद्ध जो
बिगुल बजा है इसकी धुन भारत के अलावा अन्य अशान्ति और आतंक से जूझ रहे देशों में
भी सुनाई पड़ रही है। इसके बाबत वो पीड़ित देश भी अमेरिका की ओर निहार रहे हैं। इन
सभी चुनौतियों के बीच आशा है कि अमेरिका आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक रूप से अपने
को उससे निबटने केलिए तैयार कर ले। अमेरिका की इस तैयारी के बरक्स भारत में हो रहे
आतंकी हमलों से निबटना उसकी महती ज़िम्मेदारी होनी चाहिए। इस मामले मे बराक ओबामा
ने कहा भी है कि ‘राष्ट्रपति होने के नाते मैने यह सुनिश्चित किया है कि आतंकवाद
के ख़िलाफ़ जंग के मामले में अमेरिका निष्ठुर रहे। यह एक ऐसी लड़ाई है, जिसमें
भारतीय और अमेरिकी एकजुट हैं।’
लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगियों की इस पूरी ज़िम्मेदारी
को धता बताकर अतंकवाद अपने हर मंसूबे पर कामयाब हो जा रहा है, वहीं जाने किस साधन
और इच्छा-शक्ति के बिना आतंकवाद के वादी उसका बाल भी बांका नहीं कर पा रहे हैं।
वहीं अमेरिका के सहयोगियों के रवैये में भी कोई ख़ासा परिवर्तन नहीं आया है सत्ता
परिवर्तन के बाद। अब ये अलग बात है कि हालिया नुमाइंदे की राग का अलाप बहुत ऊंचा
है।
Tuesday, 20 January 2015
आप की दुंदुभी
•अमित राजपूत
आण्णा आन्दोलन के
भृष्टाचार विरोधी ऐतिहासिक आंदोलन की नीव पर खड़ी आम आदमी पार्टी नें अपने
आरम्भ में एक राजनैतिक दुंदुभी बजाई थी।
इस दुंदुभी में फूंक मारने वालों में संस्थापक अरविन्द केजरीवाल के साथ तमाम अन्य प्रमुख चेहरे थे, जिन्होने
बीते दिल्ली विधानसभा के चुनाव में जीत हासिल की और मंत्री भी रहे। आज जब आम चुनाव
के बाद भारतीय जनता पार्टी एक सशक्त और प्रभावी पार्टी के रूप में आम आदमी पार्टी
के सामने खड़ी है तो ज़ाहिर है कि 'आप' को अपनी उस दुंदुभी में मिलकर तेज़ फूंक
मारने की ज़रूरत है, किन्तु हो इससे बिल्कुल उलट रहा है। आम आदमी पार्टी का बड़ा
चेहरा रहीं शाज़िया इल्मी अब बीजेपी का दामन थाम चुकी हैं, विनोद कुमार बिन्नी
पहले ही पार्टी के बागी रहे हैं और आज न सिर्फ़ वो बागी हैं, अपितु भारतीय जनता
पार्टी से 'आप' के ख़िलाफ़ चुनाव भी लड़ेंगे। सबसे माकूल बात ये कि अण्णा के साथ
केजरीवाल और किरण बेदी साथ-साथ आन्दोलन में रहे और दोनो की छवि जनता के सामने एक
जैसी है, दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के एकदम बरक्स खड़ी हैं। ऐसी स्थिति
में हम 'आप' की दुंदुभी की हालिया तीव्रता की स्थिति का जायजा लगा सकते हैं।
बीते नवम्बर-दिसम्बर
तक बीजेपी अपनी स्थिति को दिल्ली में ठीक-ठाक आंक रही थी, जोकि उसका बड़ा भ्रम था।
क्योंकि उसी दरमियां आम आदमी पार्टी ने घर-घर अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी और
उसकी स्थिति में भी इजाफा हो रहा था। 'आप' की उपरोक्त स्थिति तो हालिया है, इससे
पहले उस पर प्रहार स्वरूप कुछ न था बीजेपी के पास और बाजेपी आम आपमी पार्टी से
कमज़ोर पार्टी थी दिल्ली में, वो अलग बात है कि उसने मनमानी ढंग से अपनी पार्टी की
सीटों का आंकड़ा 50-60 का आंक लिया था। रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री मोदी के
भाषण के बाद बीजेपी की कलई खुल गई। वहां अपनी एक लाख की अनुमानित भीड़ की बजाय
उन्हे मात्र लगभग तीस हज़ार की भीड़ के दर्शन हो सके, इससे बीजेपी संगठन में खलभली
मंच गई और पार्टी ने तुरन्त एक आन्तरिक सर्वे कराया गया। सर्वे में पाया गया कि
बीजेपी की स्थिति एकदम से खस्ता है। मध्य-वर्ग का पूरा वोट 'आप' की तरफ जाएगा,
युवाओं में तो आज भी केजरीवाल को लेकर भरोया बना हुआ है तथा महिलाओं की सुरक्षा के
मामले में पार्टी हमेशा अपना मत सामने रखती आयी है। ऐसी स्थिति में केजरीवाल की
छवि के बरक्स कोई व्यक्तित्व सामने लाना बीजेपी की महान मज़बूरी बन गई, अब तक वो
समझ चुकी थी कि दिल्ली में सिर्फ़ मोदी-फैक्टर नहीं चलने वाला है। ऐसी स्थिति में बीजेपी ने एक बड़ा दांव खेला,
देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को बीजेपी की तरफ़ से प्रधानमंत्री का
उम्मीदवार घोषित कर दिया।
बेदी के बाद शाज़िया
इल्मी और विनोद बिन्नी जैसे घर-भेदियों के बीजेपी में शामिल होने से आप की स्थिति
पर सेंध लगना हर हाल में स्वाभाविक है। साथ ही कांग्रेस की पूर्व केन्द्रीय मंत्री
कृष्णा तीरथ और यूपी के पूर्व डीजीपी बृजलाल के बीजेपी में शामिल हो जाने से वो दिल्ली में और मज़बूत हुई है, फिर से चमक बढ़ा रही है। बीजेपी
का मज़बूत होना 'आप' केलिए ही ख़तरा है, क्योंकि सीधे टक्कर इनमे ही है। अब दिल्ली
की जनता के मानने दो ईमानदार नौकरशाह आमने सामने खड़े हैं और उन्हें दमदार निर्णय
से गुजरना है। दिल्ली की होशियार जनता को निश्चय करना होगा कि आगामी विधानसभा
चुनाव के कुरूक्षेत्र में वो किस पाले में खड़ी होगी, पाण्डवों की सेना में या
फ़िर कौरवों की सेना के में। किन्तु कौन पाण्डव है और कौन कौरव है इसका निर्णय
महान है। सांकेतिक तौर पर सेना के रण-बिगुल या दुंदुभी की आवाज़ पहचान कर निर्णय
लिया जा सकता है कि कौन क्या है, हलांकि 'आप' की दुंदुभी ने अपनी स्निग्धावस्था में
भारतीय राजनीति के अन्दर हलचलें पैदा कर दी थी।
Friday, 16 January 2015
बेटियां
•अमित राजपूत
भूख लगी जग को जब भी ऐंठन उदर में भयी,
क्षुधा और ऐठन को शान्त करें रोटियां।
मां-बहन औ चाची-ताई रोटियां खिलाती हमें,
पर इनकी तब्दीली को कहां बची हैं
बेटियां।।
मुंडेरे बैठी बूढ़ी दादी भीतर को ताक रही,
आकर
के झट से अब कौन गुथे चोटियां।
जाने
कितनी सिसकियों में छाती को वो पीट रही
ढूंढ़
लाओ फिर से, जो ग़ुम गई हैं बेटियां।।
अम्ल का प्रहार सोच, सोच अपनी कुंठा तू
गर्भपात के नहर में बह गई जो लोथियां।
तूने उनको मारा है, तूने ही सताया उन्हें
दामिनी क्या याद तुझे, याद हैं वो
बेटियां।।
अम्मा तेरे आंगन में जाने
कैसा शोर है ये,
कौन
किसको दाबे-मारे, कैसी लूटा-घसोटियां?
आड़ में जो लाज के लाश कर दिया जिन्हें,
कौन
थीं वो पूज्यनीय फिर बुलाओ बेटियां।।
आज जहां देखो हाहाकार, हाहाकार-हाहाकार
है,
हाहाकार के ही मातहत बघार रहे सेखियां।
मर्दानामय समाज नीच नोच रहा बोटियां
क्योंकि जाना नहीं इसने क्या होती हैं ये
बेटियां।।
Sunday, 11 January 2015
घाटी के हमदर्द
•अमित राजपूत
सभी कश्मीर घाटी में हैं, वो घाटी जो पिछले
सितम्बर में आये सैलाब के दर्द से आज भी कराह रही है। घाटी को आज अपने हमदर्दों की
ज़रूरत है। वो उन मुखों को निहार रही है जो घाटी के सौन्दर्य के गीत गाते नहीं
थकते हैं। घाटी अपने उन मातहतों से मदद की गुंजाईश में आशान्वित है जो कहते हैं
कि-
“केशर
की क्यारियों से आती है सुगन्ध जब
होता
मदमस्त यहां हर नर-नारी है,
घाटियों
की रम्य सुषमा है अद्वितीय
जिसे
देख कभी नहीं भारती थकाते हैं।”
सुबह के 10 बजे हैं। श्रीनगर के होटल सिल्वर
स्टार के कमरा नं.-302 में हलचल तेज़ हो गयी है। अभी कुछ देर पहले तक यहां सन्नाटा
ही था। बीच-बीच में आवाज़े आतीं कि ‘भाई जल्दी-जल्दी कर लो, 10 बजे तक हमें रेडी
रहना था।’
दूसरी तरफ़ से इस बार प्रतिक्रया आयी कि ‘वो सब ठीक है, आप गरम
कपड़े तो पहन लो..।’
‘यहां भला ठण्ड ही कहां...?’ कहकर महोदय ज्यों
ही कमरे से बाहर निकले उन्हे वापस पैर अन्दर ले जाना पड़ा, और जाकर सीधे मोटी-गरम
जैकेट पहन आए। फ़िर बोले- ‘रब्बा कैसे होगा कम्बल वितरण, ठण्ड तो ज़ोरों की है!
क्या लोग इसके लिए घर से निकलेंगे?’
वास्तव में होटल के कमरे के बाहर का तापमान
शून्य से चार डिग्री कम था। ये भारतीय जनसंचार संस्थान के पुराछात्र संगठन यानी
इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन एलुमनी एसोसिएशन(आईआईएमसीएए) का पांच
सदस्सीय दल है, जो इन दिनों कश्मीर में है। घाटी में पिछले दिनों आई बाढ़ से
पीड़ित परिवारों केलिए उनको क्या-क्या राहत पहुंच रही है, उन्हें और कैसी मदद की
ज़रूरतें महसूस हो रही हैं और वहां की स्थिति कैसी है, जैसी तमाम चीज़ों का जायजा
लेने केलिए ये दल घाटी में मौजूद है। इस दल के सदस्य अंकित धनञ्जय चौधरी होटल से
बाहर आते ही बर्फ़भरी हवाओं को महसूस कर ठिठुरने लगे, और कल्पना करने लगे कि ऐसी
हालत में भला सैलाब का मंज़र कैसा रहा होगा और क्या आज इतनी ठण्ड में लोग बाहर काम
पर निकले होंगे यहां। ऐसी तमाम उधेड़बुनों के बीच पूरा दल बड़गाम ज़िले के गांव
रक्षालिना टैंगन में इफ़को के द्वारा गांव वालों को कम्बल बांटे जाने हैं।
एक एजेन्सी में डंप पड़ीं बाढं की चपेट में आई गाड़ियां |
गाड़ी होटल से निकलते ही दीहिने की तरफ़
मुड़ी। थोड़ी दूर जाते ही दल ने देखा कि एक चारपहिया गाड़ी की एजेन्सी के बाहर
मैदान में सैकड़ों गाड़ियां ऐसे बिखरी पड़ी हैं, जैसे शरदीय नवरात्र के समय
हरश्रृंगार के फूल ज़मीन पर बिखरे पड़े होते हैं। इसे देखकर ये अंदाज़ा लगाया जा
सकता है कि बाढ़ के कारण घाटी में कितना आर्थिक नुकसान हुआ होगा और कितना माल-सामान
नुकसान की चपेट में आया होगा।
इनकी गाड़ी रक्षालिना टैंगन गांव पहुंचती है।
यहां कि मस्ज़िद कमेटी जामिया मस्ज़िद गौसिया महला के वाईस प्रेसीडेण्ट ग़ुलाम
क़ादिर बट बतातें हैं कि ये गांव बड़गाम ज़िले का बेहद पिछड़ा गांव हैं। तथा सैलाब
के पाश में पहले फंसने गांवों में से एक है। यहां घरों और पेड़ों पर बाढ़ के निशान
देखकर साफ समझ में आता है कि तकरीबन 10-15 फिट ऊंचाई तक सैलाब का पानी चढ़ आया था।
स्वाभाविक है कि सैलाब के काल रूप को इस गांव ने नज़दीक से महसूस किया होगा।
उजड़ गए गांव के गांव |
यहां आईआईएमसीएए के दल को सबसे पहले उनका
दोस्त मिला मोमिन तारिक़। मोमिन दूसरी कक्षा के छात्र हैं और फर्राटेदार हिन्दी
बोलना जानते हैं। गांव के ज़्यादातर पीड़ित कश्मीरी भाषी ही हैं, लेकिन ये दल उन
पीड़ितों से बात करना चाहता था। दल के सदस्यों की मंशा को भांपकर मोमिन उनके पास
आया और बोला- “मै आपसे हिन्दी में बात कर सकता हूं।”
मोमिन की आवाज़ सुनकर पूरे दल में आशा की
लहरें कुलांचे भरने लगीं, जैसे उन्हे अभी-अभी ही कंठ प्राप्त हो गया हो और वो अब
से बात कर सकेंगे।
“आप बहुत अच्छे हो। इफ़को ने हमारी बहुत मदद
की।” मोमिन तारिक़ के पहले शब्द थे, जो किसी सम्बोधन और प्रश्नोत्तरी से अलग थे।
दरअसल इफ़को जम्मू और कश्मीर में बाढ़ आने के
तुरन्त बाद से यहां के किसानों और बाढ़-पीड़ितों की मदद के लिए लगातार सक्रिय है।
इससे पहले इफ़को ने जम्मू-कश्मीर में बाढ़ पीड़ितों के लिए तीन लाख रूपये की तमाम
खाद्य सामाग्री मुहैया करायी थी, और अब इफ़को आईटीजीआई और इफ़को किसान सेवा ट्रस्ट
के साथ मिलकर 45000 कम्बल बाढ़ पीड़ितों को वितरित कर रहा है। श्रीनगर ज़िले के
पांथाचौक, अथवाईजन गांव की मस्ज़िद कमेटी जामिया मस्ज़िद औरंगज़ेब के प्रेसीडेण्ट
हाजी ग़ुलाम मोहम्मद शेख अपनी रुंधी हुयी आंखों के साथ भरे गले से कहते हैं कि
इफ़को से पहले यहां जाने कितने समाज सेवी संगठन और न जाने मदद के लिए वादा करने
वाले कितने लोग आये, लेकिन आज सभी घाटी से नदारद हैं। इफ़को ने हमसे कोई वादा नहीं
किया था और न ही बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों का कोई औपचारिक दौरा ही किया था। इफ़को
सीधे राहत लेकर हमारे द्वारे खड़ा है, इससे हम बहुत ख़ुश हैं। वास्तव में इफ़को ही
घाटी का सच्चा हमदर्द है।
डॉ. उदय शंकर अवस्थी |
इफ़को एक पूर्णतः सहकारी स्वामित्व की
संस्था है, जो किसानों के हितों को समर्पित है। हमारी प्राथमिकता रहती है कि हम
सदैव किसानों के हित के साथ खड़े रहें। हम किसानों के पास जातें हैं और उनकी
मिट्टी की उर्वरा-शक्ति के हिसाब से उनको बताते हैं कि कैसी खाद किस हिसाब से कैसे
उपयोग में लाई जाए। किसान के हितों को ध्यान में रखकर इफ़को तमाम कैम्प्स के
ज़रिये अपने किसानों के साथ जुड़ाव रखता
है। उनके उपयोग में आ रहे पशुओं की गुणवत्ता से सम्बन्धित बातचीत भी हम अपने
किसानों के साथ ज़ारी रखते हैं। किसानों की ख़ुशहाली केलिए इफ़को प्रयासरत है और
जहां किसानों को दिक्कतें हैं वहां हम
उनके साथ खड़े हैं। इसी क्रम में इफ़को ने जम्मू और कश्मीर में आए सैलाब की बदौलत
पीड़ित किसानों केलिए कुछ राहत सामग्री का बंदोबस्त किया है। फिर भी सब कुछ हम कर
पाएं ज़रूरी नही है। डॉ. उदय शंकर अवस्थी
(प्रबंध निदेशक, इफ़को)
अथवाईजन के ही जाहिद अबरार के पास दल के एक
सदस्य जाते हैं तो जाहिद उन्हे बताने लगते हैं, कि आज कश्मीर के किसी भी गांव में
शायद ही आपको कोई जानवर दिखाई पड़ जाए। दल का वो सदस्य सकते में आ गया। वो अपना
सिर खुजलाते हुए पेचीदगी भरी भौंहों को सिकोड़ते हुए बोला- “वाकई ये तो हैरतअंगेज़
है
जाहिद अबरार ने बड़े राहत के साथ कहना शुरू
किया कि भाईजान, यहां भौंकते थे..., इससे पहले यहां कुत्ते भी भौंकते थे। एक गांव
में भैंस, कुत्ते,भेड़, मुर्गी व तमाम पालतू सभी होते थे यहां। लेकिन सैलाब सबको
निगल गया। यकीनन नब्बे फीसदी जानवर अब घाटी से नदारद हैं। कहते-कहते अबरार पड़ोस
की एक छत पर पड़े टीले को देखने लगे और थोड़ी देर निगाहों के साथ वहीं ठहर गए। कुछ
क्षण बाद घूट निगल कर बोले- “छः दिनों तक सेना के जवान बिना भोजन और पानी के लोगों
की मदद करते रहे। वो हमारे लिए भगवान हैं। हम तो धरती पर उमको ही भगवान मानते हैं।”
जाहिद अबरार ने अपनी वजनी पलकों को उठाया और एक नज़र गांव में कम्बल लेने आई भीड़
पर दौड़ाकर बोले- “सेना के बाद इफ़को ही हमारा हमदर्द है, वो इसलिए कि सेना ने
हमारा जीवन सुरक्षित किया और उस जीवन को गति इफ़को दे रहा है।”
घाटी में राहत के लिए उमड़े गांव वाले |
आईआईएमसीएए के दल ने पूरे गांव की हालत को
देखा और पाया कि यहां घाटी की हालत बद से बदतर है। आज पूरे देश को घाटी के साथ तब
तक खड़े रहना चाहिए, जब तक कि इसकी तबीयत पहले जैसी न हो जाए। ..और घाटी का ये
स्वास्थ्य उसकी मदहोश कर देने वाली हवाओं से महसूस किया जा सकता है।
ऐसे करते हैं पात्रों का चुनावः- इफ़को के अधिकारी सबसे पहले एक ज़िले के सभी
गांवों की मस्ज़िद कमेटी के अध्यक्षों या फ़िर किसी-किसी गांव में वहां के सरपंचों
से सम्पर्क करते हैं। वो उन सरपंचों या अध्यक्षों से उस गांव के बाढ़-पीड़ित
परिवारों की सूची लेते हैं। सूची में प्रायः एक परिवार से एक ही सदस्य को नामांकित
किया जाता है। प्राप्त सूची के आधार पर ही इफ़को अधिकारी उस गांव के लिए उतने
कम्बलों के वितरण का प्रावधान निश्चित कर लेते हैं और उस गांव के लिए ‘इफ़को
रिलीफ़ फण्ड’ के उतने ही टोकन वहां के सरपंच या मस्ज़िद कमेटी के अध्यक्ष को सौंप
देते हैं। ये सारी प्रक्रियाएं कुछ दिन पहले ही पूरी कर ली जाती हैं, फ़िर एक तय
दिन में इफ़को डेलीगेट्स उस गांव में कम्बल और अपने कुछ वालेण्टियर्स के साथ पहुंच
कर चुने हुए गांव के कुछ प्रतिष्ठित जन और सरपंच या मस्ज़िद कमेटी के साथ मिलकर
कम्बलों का सहजता से वितरण करते हैं, जिसमे हर व्यक्ति अपना इफ़को का टोकन दिखाकर
कम्बल प्राप्त कर लेता है।
अगली
सुबह ज़्यादा स्फूर्तिमय है। आज समय से पहले ही पांचो लोग होटल के बाहर फाल-इन थे।
इफ़को की कैब उन्हें लेने होटल आई। धुंध कोहरे को चीरते हुए दल बड़गाम ज़िले के
केनिहामा गांव पहुंचा। यहां इन्होने 300 कम्बल बांटे। दल के सदस्य आकाश देवांगन ने
इफ़को डेलीगेट हाजी अली मोहम्मद वानी से यहां के खेतों की हालत जानने की इच्छा
जताई और हैरत किया कि जहां इन दिनों सभी इलाकों में खेती अपनी हरियाली छटा बिखेर
रही है, वहीं घाटी के खेत दूर-दूर तक अभी मरुस्थल की रेत में पानी ढूढ़ने जैसे
खोजने पड़ रहे हैं। तभी हाजी साहब ने आकाश सहित दल के सभी सदस्यों को दिखाया कि
यहां आप जो पानी भरे और कोढ़ सरीखे रोग के बाद शरीर की दशा जैसे भू-भाग को देख रहे
हैं, ये सारे खेत ही हैं। इनकी हालत अब भगवान भरोसे ही है।
कम्बल वितरित करती आईआईएमसीएए की टीम |
दल केनिहामा से पुलवामा ज़िले पहुंचा। यहां
काकपोरा गांव के आठ छोटे-छोटे मोहल्लों में कुल 751 कम्बल बांटे जाने हैं। ठिठुरती
ठण्ड में सुलगती कांगड़ी को अपने फरन के अन्दर रखे हुए लोग उत्साह के साथ कम्बल ले
जा रहे हैं। यद्यपि काकपोरा में कम्बल बांटे जाने से यहां की पीड़ित जनता काफी
राहत महसूस कर रही है, तथापि गाव के सरपंच फ़याज़ अहमद कुछ किसानों और काश्तकारों के
साथ आईआईएमसीएए के दल से मुख़ातिब होते हैं। वे बताते हैं कि घाटी में खेतों की
हालत बेहद नाज़ुक है। उनमें फसल उगाने की बात अभी दूर है, सबसे पहले चुनौती उनकी हालत
पहले जैसी करने की है। वे बताते हैं कि यहां हमें खेतो में उपयोग के लिए जो दवाएं
दी जाती हैं, वो या तो एक्सपायर डेटेड होती हैं, या फिर वो यूज़ की हुयी होती हैं।
आज घाटी के खेतों को उत्तम ट्रीटमेंट की ज़रूरत है, जिसके लिए किसानों को खाद
वगैरह मिलनी चाहिए। फ़याज़ कहते हैं कि ‘हम चाहते हैं कि इफ़को की तरफ से एक टीम
आए, वो देखे की हमारे खेतों का स्वास्थ्य कैसा है। टीम सर्वे करे और शोध करे कि
खेतों में क्या कसर है, ताकि हमारे खेत पहले जैसे हो सकें।’ सरपंच चिंता जताते हैं
कि अगर किसी ने घाटी के दर्द के साथ नासमझी दिखाई तो ये निश्चित है कि घाटी में
भुखमरी आयेगी। ऐसी स्थिति में देखना ये है कि घाटी के हमदर्द कौन हैं। वे कहते हैं
कि हमें ये भी सोचना होगा कि घाटी में ऐसी दिक्कतें अब से न आने पाएं, और यदि कोई
ऐसी दिक्कत आए भी तो उससे निबटने के लिए हमारे पास साधन होने चाहिए।
करनी होगी मुकम्मल तैयारी- काकपोरा
के रहने वाले एडवोकेट बशीर अहमद जानकारी देते हैं कि घाटी में ऐसा सैलाब पहले कभी
नहीं आया। बारिश होती थी..., लेकिन कितनी भी तेज़ हो उसके लिए हमारे पास इंतज़ाम
हुआ करता था। पर इस बार के सैलाब ने हमें तबाह कर दिया है। श्री अहमद बताते हैं कि
सेना अगर घाटी के साथ हमेशा इतनी नज़दीक न होती तो शायद वो भी हमारी मदद करने में थोड़ा मुश्किल महसूस करती। इफ़को
हमारे किसानों और पीड़ितों का हमदर्द बना, हमें खुशी हुयी। लेकिन अब से घाटी के
लोगों और सरकार को इस बारे में भी सोचना होगा कि आगे ऐसी आपदा आए तो उसके लिए
हमारे पास मुकम्मल तैयारियां रहें।
ज़मीन और ख़ेतों की हालत का जायजा देते हाजी अली मो. वानी |
अब तो आईआईएमसीएए की टीम को इंतज़ार रहता कि
कब सुबह हो और वो घाटी के किसी गांव में खड़े रहें। आज टीम श्रीनगर के डारमहला पादशाईबाग़ में है। ठिठुरते दिन के
साथ जामिया मस्ज़िद शरीफ पादशाईबाग़ और मस्ज़िद तवहीत डारमहला पादशाईबाग़ के
प्रेसीडेण्ट मंजूर अहमद डार इफ़को अधिकारी शौकत बट के साथ पूरी टीम के बीच मौजूद
हैं। हाजी अली मोहम्मद वानी भी अपनी साठा उमर को चित्त करके भरी ऊर्जा के साथ पीड़ितों
को कम्बल बांटने में सहयोग कर रहे हैं। इफ़को अधिकारी शौकत बट ने बताया कि आज
पादशाईबाग़ में 421, ज़ैनाकोट में 60, पान्द्रेठन में 35, लालचौक में 30 और बेमिना
में 97 कम्बल बांटना है। सभी ने मिलकर देर शाम तक में सभी जगह कम्बल बांट लिए। फिर
तकरीबन रात नौ बजे क्रॉस-कन्ट्री की दौड़ के बाद थके पांव सरीखे दिमाग़ व बदन के
साथ पूरा दल वापस होटल सिल्वर स्टार पहुंचा। आज अन्तिम रात में दल के साथ इफ़को
अधिकारी शौकत बट भी उनके साथ होटल पर रुके। यहां श्री बट ने उनको जानकारी दी कि
सितम्बर में जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ राज्य के पिछले साठ वर्षों की सबसे भयंकर
आपदा साबित हुई है। इसमे 270 से ज़्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठे, तो लगभग छः लाख
लोग बुरी तरह प्रभावित हुए। इस बाढ़ से जहां हज़ारों गांवों को नुकसान हुआ, वहीं
390 गांव बुरी तरह डूब गए। सैकड़ों सड़के, पुल, तमाम प्रतिष्ठान और मकान पूरी तरह
ध्वस्त हो गए। राजधानी श्रीनगर का लगभग 30 फीसदी हिस्सा बाढ़ में डूबा हुआ था।
पहले पहल आंकलन के हिसाब से 5000-6000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सेना ने राहत
अभियान से यहां के लोगों का निश्चित रूप से दिल जीत लिया। इफ़को से भी जो बन पड़
रहा था हमने वो सब किया। पहले हम तीन लाख रुपये की खाद्य-सामग्री लेकर पीड़ितों के
बीच थे, और अब इन 45000 कम्बलों के साथ हम इनकी मदद का प्रयास कर रहे हैं।
अगले दिन सुबह तकरीबन 12 बजे कश्मीर की ढेरों
यादें और तमाम रंग-ढंग अपने दिलोदिमाग़ में समेटे आईआईएमसीएए के पूरे दल ने होटल
से चेक-आउट कर दिया। अगले घण्टे में सभी श्रीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर
दिल्ली वापस पहुंचने के लिए अपनी यात्रा का इंतज़ार कर रहे हैं। अभी श्रीनगर के
होटल सिल्वर स्टार के कमरा नम्बर 302 में सन्नाटा है, जहां कुछ घण्टे पहले हलचलें
तेज़ थीं। इस हलचल ने ये साफ़ कर दिया है कि प्रकृति की अंगड़ाईयों के बाद फूटे
सैलाब से क्षत-विक्षत घाटी को मरहम लगाने में असल में घाटी के हमदर्द कौन हैं।
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