Friday, 23 January 2015

आतंकवाद बनाम अमेरिका

•अमित राजपूत


पाक की हरकत-ए-नापाक यह है, कि जहां एक तरफ़ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी नई दिल्ली में दुनिया के सबसे पहले लोकतंत्र अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के आने की तैयारियों को लेकर भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर लगातार आसमान में कुलांचे भरने  में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर उसी दिन बिहार के आरा ज़िलें में बम ब्लास्ट होता है। जानकारों का कहना है कि इसके पीछे पूरी तरह से पाकिस्तानी साज़िश का ही हाथ है, जिनके नुमाइंदे भारत में रहकर स्थिति को संवेदनशील बना रहे हैं।
अब चुनौती ये है कि मोदी और ओबामा दोनो को इस संकट से प्रभावित होना पड़ रहा है। ऐसे में क्या दोनों महान व्यक्तित्व आतंकवाद के विरुद्ध कोई ठोस रवैया आख़्तियार कर पाते हैं या नहीं...?
उधर बराक ओबामा ने पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देते हुए कह दिया है कि देश में मौजूद आतंकवाद के ‘पनाहगार’ स्वीकार्य नहीं हैं। उन्होने भारत को एक ‘सच्चा वैश्विक साथी’ भी बता दिया है। सिर्फ़ इतना ही नहीं, ओबामा ने मुम्बई आतंकी हमले के गुनहगारों को सज़ा दिलाने का भी आह्वान किया है। इससे पहले भी अमेरिका ने अपने भारत-यात्रा पर ही आने के संबंध में पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि भारत में किसी भी तरह का आतंकी हमला बर्दास्त नहीं किया जाएगा, जबकि हमलों का सिलसिला बदस्तूर ज़ारी है। हाल ही में बिहार के आरा का ब्लास्ट और पिछले दिनों कश्मीर घाटी के पुलवामा आदि की घटनाएं ये दर्शाती हैं कि आतंकवादी ताक़तों में अमेरिका का ख़ौफ किसी भी मायने में रंज-मात्र का भी नहीं प्रतीत हो रहा है। ऐसी स्थिति में अमेरिका और आतंकवाद बतौर वादी अलग-अलग कटघरों में खड़े से दीख पड़ते हैं, जिसमें अमेरिका के हर बात का पलटवार वो अपनी प्रकृति से दे भी रहा है, जो अमेरिका केलिए सबसे बड़ी चुनौता के रूप में प्रस्तुत है।
एक बात और, अमेरिका का आतंकवाद के विरुद्ध जो बिगुल बजा है इसकी धुन भारत के अलावा अन्य अशान्ति और आतंक से जूझ रहे देशों में भी सुनाई पड़ रही है। इसके बाबत वो पीड़ित देश भी अमेरिका की ओर निहार रहे हैं। इन सभी चुनौतियों के बीच आशा है कि अमेरिका आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक रूप से अपने को उससे निबटने केलिए तैयार कर ले। अमेरिका की इस तैयारी के बरक्स भारत में हो रहे आतंकी हमलों से निबटना उसकी महती ज़िम्मेदारी होनी चाहिए। इस मामले मे बराक ओबामा ने कहा भी है कि ‘राष्ट्रपति होने के नाते मैने यह सुनिश्चित किया है कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग के मामले में अमेरिका निष्ठुर रहे। यह एक ऐसी लड़ाई है, जिसमें भारतीय और अमेरिकी एकजुट हैं।’
लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगियों की इस पूरी ज़िम्मेदारी को धता बताकर अतंकवाद अपने हर मंसूबे पर कामयाब हो जा रहा है, वहीं जाने किस साधन और इच्छा-शक्ति के बिना आतंकवाद के वादी उसका बाल भी बांका नहीं कर पा रहे हैं। वहीं अमेरिका के सहयोगियों के रवैये में भी कोई ख़ासा परिवर्तन नहीं आया है सत्ता परिवर्तन के बाद। अब ये अलग बात है कि हालिया नुमाइंदे की राग का अलाप बहुत ऊंचा है।

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