•अमित राजपूत
सभी कश्मीर घाटी में हैं, वो घाटी जो पिछले
सितम्बर में आये सैलाब के दर्द से आज भी कराह रही है। घाटी को आज अपने हमदर्दों की
ज़रूरत है। वो उन मुखों को निहार रही है जो घाटी के सौन्दर्य के गीत गाते नहीं
थकते हैं। घाटी अपने उन मातहतों से मदद की गुंजाईश में आशान्वित है जो कहते हैं
कि-
“केशर
की क्यारियों से आती है सुगन्ध जब
होता
मदमस्त यहां हर नर-नारी है,
घाटियों
की रम्य सुषमा है अद्वितीय
जिसे
देख कभी नहीं भारती थकाते हैं।”
सुबह के 10 बजे हैं। श्रीनगर के होटल सिल्वर
स्टार के कमरा नं.-302 में हलचल तेज़ हो गयी है। अभी कुछ देर पहले तक यहां सन्नाटा
ही था। बीच-बीच में आवाज़े आतीं कि ‘भाई जल्दी-जल्दी कर लो, 10 बजे तक हमें रेडी
रहना था।’
दूसरी तरफ़ से इस बार प्रतिक्रया आयी कि ‘वो सब ठीक है, आप गरम
कपड़े तो पहन लो..।’
‘यहां भला ठण्ड ही कहां...?’ कहकर महोदय ज्यों
ही कमरे से बाहर निकले उन्हे वापस पैर अन्दर ले जाना पड़ा, और जाकर सीधे मोटी-गरम
जैकेट पहन आए। फ़िर बोले- ‘रब्बा कैसे होगा कम्बल वितरण, ठण्ड तो ज़ोरों की है!
क्या लोग इसके लिए घर से निकलेंगे?’
वास्तव में होटल के कमरे के बाहर का तापमान
शून्य से चार डिग्री कम था। ये भारतीय जनसंचार संस्थान के पुराछात्र संगठन यानी
इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन एलुमनी एसोसिएशन(आईआईएमसीएए) का पांच
सदस्सीय दल है, जो इन दिनों कश्मीर में है। घाटी में पिछले दिनों आई बाढ़ से
पीड़ित परिवारों केलिए उनको क्या-क्या राहत पहुंच रही है, उन्हें और कैसी मदद की
ज़रूरतें महसूस हो रही हैं और वहां की स्थिति कैसी है, जैसी तमाम चीज़ों का जायजा
लेने केलिए ये दल घाटी में मौजूद है। इस दल के सदस्य अंकित धनञ्जय चौधरी होटल से
बाहर आते ही बर्फ़भरी हवाओं को महसूस कर ठिठुरने लगे, और कल्पना करने लगे कि ऐसी
हालत में भला सैलाब का मंज़र कैसा रहा होगा और क्या आज इतनी ठण्ड में लोग बाहर काम
पर निकले होंगे यहां। ऐसी तमाम उधेड़बुनों के बीच पूरा दल बड़गाम ज़िले के गांव
रक्षालिना टैंगन में इफ़को के द्वारा गांव वालों को कम्बल बांटे जाने हैं।
एक एजेन्सी में डंप पड़ीं बाढं की चपेट में आई गाड़ियां |
गाड़ी होटल से निकलते ही दीहिने की तरफ़
मुड़ी। थोड़ी दूर जाते ही दल ने देखा कि एक चारपहिया गाड़ी की एजेन्सी के बाहर
मैदान में सैकड़ों गाड़ियां ऐसे बिखरी पड़ी हैं, जैसे शरदीय नवरात्र के समय
हरश्रृंगार के फूल ज़मीन पर बिखरे पड़े होते हैं। इसे देखकर ये अंदाज़ा लगाया जा
सकता है कि बाढ़ के कारण घाटी में कितना आर्थिक नुकसान हुआ होगा और कितना माल-सामान
नुकसान की चपेट में आया होगा।
इनकी गाड़ी रक्षालिना टैंगन गांव पहुंचती है।
यहां कि मस्ज़िद कमेटी जामिया मस्ज़िद गौसिया महला के वाईस प्रेसीडेण्ट ग़ुलाम
क़ादिर बट बतातें हैं कि ये गांव बड़गाम ज़िले का बेहद पिछड़ा गांव हैं। तथा सैलाब
के पाश में पहले फंसने गांवों में से एक है। यहां घरों और पेड़ों पर बाढ़ के निशान
देखकर साफ समझ में आता है कि तकरीबन 10-15 फिट ऊंचाई तक सैलाब का पानी चढ़ आया था।
स्वाभाविक है कि सैलाब के काल रूप को इस गांव ने नज़दीक से महसूस किया होगा।
उजड़ गए गांव के गांव |
यहां आईआईएमसीएए के दल को सबसे पहले उनका
दोस्त मिला मोमिन तारिक़। मोमिन दूसरी कक्षा के छात्र हैं और फर्राटेदार हिन्दी
बोलना जानते हैं। गांव के ज़्यादातर पीड़ित कश्मीरी भाषी ही हैं, लेकिन ये दल उन
पीड़ितों से बात करना चाहता था। दल के सदस्यों की मंशा को भांपकर मोमिन उनके पास
आया और बोला- “मै आपसे हिन्दी में बात कर सकता हूं।”
मोमिन की आवाज़ सुनकर पूरे दल में आशा की
लहरें कुलांचे भरने लगीं, जैसे उन्हे अभी-अभी ही कंठ प्राप्त हो गया हो और वो अब
से बात कर सकेंगे।
“आप बहुत अच्छे हो। इफ़को ने हमारी बहुत मदद
की।” मोमिन तारिक़ के पहले शब्द थे, जो किसी सम्बोधन और प्रश्नोत्तरी से अलग थे।
दरअसल इफ़को जम्मू और कश्मीर में बाढ़ आने के
तुरन्त बाद से यहां के किसानों और बाढ़-पीड़ितों की मदद के लिए लगातार सक्रिय है।
इससे पहले इफ़को ने जम्मू-कश्मीर में बाढ़ पीड़ितों के लिए तीन लाख रूपये की तमाम
खाद्य सामाग्री मुहैया करायी थी, और अब इफ़को आईटीजीआई और इफ़को किसान सेवा ट्रस्ट
के साथ मिलकर 45000 कम्बल बाढ़ पीड़ितों को वितरित कर रहा है। श्रीनगर ज़िले के
पांथाचौक, अथवाईजन गांव की मस्ज़िद कमेटी जामिया मस्ज़िद औरंगज़ेब के प्रेसीडेण्ट
हाजी ग़ुलाम मोहम्मद शेख अपनी रुंधी हुयी आंखों के साथ भरे गले से कहते हैं कि
इफ़को से पहले यहां जाने कितने समाज सेवी संगठन और न जाने मदद के लिए वादा करने
वाले कितने लोग आये, लेकिन आज सभी घाटी से नदारद हैं। इफ़को ने हमसे कोई वादा नहीं
किया था और न ही बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों का कोई औपचारिक दौरा ही किया था। इफ़को
सीधे राहत लेकर हमारे द्वारे खड़ा है, इससे हम बहुत ख़ुश हैं। वास्तव में इफ़को ही
घाटी का सच्चा हमदर्द है।
डॉ. उदय शंकर अवस्थी |
इफ़को एक पूर्णतः सहकारी स्वामित्व की
संस्था है, जो किसानों के हितों को समर्पित है। हमारी प्राथमिकता रहती है कि हम
सदैव किसानों के हित के साथ खड़े रहें। हम किसानों के पास जातें हैं और उनकी
मिट्टी की उर्वरा-शक्ति के हिसाब से उनको बताते हैं कि कैसी खाद किस हिसाब से कैसे
उपयोग में लाई जाए। किसान के हितों को ध्यान में रखकर इफ़को तमाम कैम्प्स के
ज़रिये अपने किसानों के साथ जुड़ाव रखता
है। उनके उपयोग में आ रहे पशुओं की गुणवत्ता से सम्बन्धित बातचीत भी हम अपने
किसानों के साथ ज़ारी रखते हैं। किसानों की ख़ुशहाली केलिए इफ़को प्रयासरत है और
जहां किसानों को दिक्कतें हैं वहां हम
उनके साथ खड़े हैं। इसी क्रम में इफ़को ने जम्मू और कश्मीर में आए सैलाब की बदौलत
पीड़ित किसानों केलिए कुछ राहत सामग्री का बंदोबस्त किया है। फिर भी सब कुछ हम कर
पाएं ज़रूरी नही है। डॉ. उदय शंकर अवस्थी
(प्रबंध निदेशक, इफ़को)
अथवाईजन के ही जाहिद अबरार के पास दल के एक
सदस्य जाते हैं तो जाहिद उन्हे बताने लगते हैं, कि आज कश्मीर के किसी भी गांव में
शायद ही आपको कोई जानवर दिखाई पड़ जाए। दल का वो सदस्य सकते में आ गया। वो अपना
सिर खुजलाते हुए पेचीदगी भरी भौंहों को सिकोड़ते हुए बोला- “वाकई ये तो हैरतअंगेज़
है
जाहिद अबरार ने बड़े राहत के साथ कहना शुरू
किया कि भाईजान, यहां भौंकते थे..., इससे पहले यहां कुत्ते भी भौंकते थे। एक गांव
में भैंस, कुत्ते,भेड़, मुर्गी व तमाम पालतू सभी होते थे यहां। लेकिन सैलाब सबको
निगल गया। यकीनन नब्बे फीसदी जानवर अब घाटी से नदारद हैं। कहते-कहते अबरार पड़ोस
की एक छत पर पड़े टीले को देखने लगे और थोड़ी देर निगाहों के साथ वहीं ठहर गए। कुछ
क्षण बाद घूट निगल कर बोले- “छः दिनों तक सेना के जवान बिना भोजन और पानी के लोगों
की मदद करते रहे। वो हमारे लिए भगवान हैं। हम तो धरती पर उमको ही भगवान मानते हैं।”
जाहिद अबरार ने अपनी वजनी पलकों को उठाया और एक नज़र गांव में कम्बल लेने आई भीड़
पर दौड़ाकर बोले- “सेना के बाद इफ़को ही हमारा हमदर्द है, वो इसलिए कि सेना ने
हमारा जीवन सुरक्षित किया और उस जीवन को गति इफ़को दे रहा है।”
घाटी में राहत के लिए उमड़े गांव वाले |
आईआईएमसीएए के दल ने पूरे गांव की हालत को
देखा और पाया कि यहां घाटी की हालत बद से बदतर है। आज पूरे देश को घाटी के साथ तब
तक खड़े रहना चाहिए, जब तक कि इसकी तबीयत पहले जैसी न हो जाए। ..और घाटी का ये
स्वास्थ्य उसकी मदहोश कर देने वाली हवाओं से महसूस किया जा सकता है।
ऐसे करते हैं पात्रों का चुनावः- इफ़को के अधिकारी सबसे पहले एक ज़िले के सभी
गांवों की मस्ज़िद कमेटी के अध्यक्षों या फ़िर किसी-किसी गांव में वहां के सरपंचों
से सम्पर्क करते हैं। वो उन सरपंचों या अध्यक्षों से उस गांव के बाढ़-पीड़ित
परिवारों की सूची लेते हैं। सूची में प्रायः एक परिवार से एक ही सदस्य को नामांकित
किया जाता है। प्राप्त सूची के आधार पर ही इफ़को अधिकारी उस गांव के लिए उतने
कम्बलों के वितरण का प्रावधान निश्चित कर लेते हैं और उस गांव के लिए ‘इफ़को
रिलीफ़ फण्ड’ के उतने ही टोकन वहां के सरपंच या मस्ज़िद कमेटी के अध्यक्ष को सौंप
देते हैं। ये सारी प्रक्रियाएं कुछ दिन पहले ही पूरी कर ली जाती हैं, फ़िर एक तय
दिन में इफ़को डेलीगेट्स उस गांव में कम्बल और अपने कुछ वालेण्टियर्स के साथ पहुंच
कर चुने हुए गांव के कुछ प्रतिष्ठित जन और सरपंच या मस्ज़िद कमेटी के साथ मिलकर
कम्बलों का सहजता से वितरण करते हैं, जिसमे हर व्यक्ति अपना इफ़को का टोकन दिखाकर
कम्बल प्राप्त कर लेता है।
अगली
सुबह ज़्यादा स्फूर्तिमय है। आज समय से पहले ही पांचो लोग होटल के बाहर फाल-इन थे।
इफ़को की कैब उन्हें लेने होटल आई। धुंध कोहरे को चीरते हुए दल बड़गाम ज़िले के
केनिहामा गांव पहुंचा। यहां इन्होने 300 कम्बल बांटे। दल के सदस्य आकाश देवांगन ने
इफ़को डेलीगेट हाजी अली मोहम्मद वानी से यहां के खेतों की हालत जानने की इच्छा
जताई और हैरत किया कि जहां इन दिनों सभी इलाकों में खेती अपनी हरियाली छटा बिखेर
रही है, वहीं घाटी के खेत दूर-दूर तक अभी मरुस्थल की रेत में पानी ढूढ़ने जैसे
खोजने पड़ रहे हैं। तभी हाजी साहब ने आकाश सहित दल के सभी सदस्यों को दिखाया कि
यहां आप जो पानी भरे और कोढ़ सरीखे रोग के बाद शरीर की दशा जैसे भू-भाग को देख रहे
हैं, ये सारे खेत ही हैं। इनकी हालत अब भगवान भरोसे ही है।
कम्बल वितरित करती आईआईएमसीएए की टीम |
दल केनिहामा से पुलवामा ज़िले पहुंचा। यहां
काकपोरा गांव के आठ छोटे-छोटे मोहल्लों में कुल 751 कम्बल बांटे जाने हैं। ठिठुरती
ठण्ड में सुलगती कांगड़ी को अपने फरन के अन्दर रखे हुए लोग उत्साह के साथ कम्बल ले
जा रहे हैं। यद्यपि काकपोरा में कम्बल बांटे जाने से यहां की पीड़ित जनता काफी
राहत महसूस कर रही है, तथापि गाव के सरपंच फ़याज़ अहमद कुछ किसानों और काश्तकारों के
साथ आईआईएमसीएए के दल से मुख़ातिब होते हैं। वे बताते हैं कि घाटी में खेतों की
हालत बेहद नाज़ुक है। उनमें फसल उगाने की बात अभी दूर है, सबसे पहले चुनौती उनकी हालत
पहले जैसी करने की है। वे बताते हैं कि यहां हमें खेतो में उपयोग के लिए जो दवाएं
दी जाती हैं, वो या तो एक्सपायर डेटेड होती हैं, या फिर वो यूज़ की हुयी होती हैं।
आज घाटी के खेतों को उत्तम ट्रीटमेंट की ज़रूरत है, जिसके लिए किसानों को खाद
वगैरह मिलनी चाहिए। फ़याज़ कहते हैं कि ‘हम चाहते हैं कि इफ़को की तरफ से एक टीम
आए, वो देखे की हमारे खेतों का स्वास्थ्य कैसा है। टीम सर्वे करे और शोध करे कि
खेतों में क्या कसर है, ताकि हमारे खेत पहले जैसे हो सकें।’ सरपंच चिंता जताते हैं
कि अगर किसी ने घाटी के दर्द के साथ नासमझी दिखाई तो ये निश्चित है कि घाटी में
भुखमरी आयेगी। ऐसी स्थिति में देखना ये है कि घाटी के हमदर्द कौन हैं। वे कहते हैं
कि हमें ये भी सोचना होगा कि घाटी में ऐसी दिक्कतें अब से न आने पाएं, और यदि कोई
ऐसी दिक्कत आए भी तो उससे निबटने के लिए हमारे पास साधन होने चाहिए।
करनी होगी मुकम्मल तैयारी- काकपोरा
के रहने वाले एडवोकेट बशीर अहमद जानकारी देते हैं कि घाटी में ऐसा सैलाब पहले कभी
नहीं आया। बारिश होती थी..., लेकिन कितनी भी तेज़ हो उसके लिए हमारे पास इंतज़ाम
हुआ करता था। पर इस बार के सैलाब ने हमें तबाह कर दिया है। श्री अहमद बताते हैं कि
सेना अगर घाटी के साथ हमेशा इतनी नज़दीक न होती तो शायद वो भी हमारी मदद करने में थोड़ा मुश्किल महसूस करती। इफ़को
हमारे किसानों और पीड़ितों का हमदर्द बना, हमें खुशी हुयी। लेकिन अब से घाटी के
लोगों और सरकार को इस बारे में भी सोचना होगा कि आगे ऐसी आपदा आए तो उसके लिए
हमारे पास मुकम्मल तैयारियां रहें।
ज़मीन और ख़ेतों की हालत का जायजा देते हाजी अली मो. वानी |
अब तो आईआईएमसीएए की टीम को इंतज़ार रहता कि
कब सुबह हो और वो घाटी के किसी गांव में खड़े रहें। आज टीम श्रीनगर के डारमहला पादशाईबाग़ में है। ठिठुरते दिन के
साथ जामिया मस्ज़िद शरीफ पादशाईबाग़ और मस्ज़िद तवहीत डारमहला पादशाईबाग़ के
प्रेसीडेण्ट मंजूर अहमद डार इफ़को अधिकारी शौकत बट के साथ पूरी टीम के बीच मौजूद
हैं। हाजी अली मोहम्मद वानी भी अपनी साठा उमर को चित्त करके भरी ऊर्जा के साथ पीड़ितों
को कम्बल बांटने में सहयोग कर रहे हैं। इफ़को अधिकारी शौकत बट ने बताया कि आज
पादशाईबाग़ में 421, ज़ैनाकोट में 60, पान्द्रेठन में 35, लालचौक में 30 और बेमिना
में 97 कम्बल बांटना है। सभी ने मिलकर देर शाम तक में सभी जगह कम्बल बांट लिए। फिर
तकरीबन रात नौ बजे क्रॉस-कन्ट्री की दौड़ के बाद थके पांव सरीखे दिमाग़ व बदन के
साथ पूरा दल वापस होटल सिल्वर स्टार पहुंचा। आज अन्तिम रात में दल के साथ इफ़को
अधिकारी शौकत बट भी उनके साथ होटल पर रुके। यहां श्री बट ने उनको जानकारी दी कि
सितम्बर में जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ राज्य के पिछले साठ वर्षों की सबसे भयंकर
आपदा साबित हुई है। इसमे 270 से ज़्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठे, तो लगभग छः लाख
लोग बुरी तरह प्रभावित हुए। इस बाढ़ से जहां हज़ारों गांवों को नुकसान हुआ, वहीं
390 गांव बुरी तरह डूब गए। सैकड़ों सड़के, पुल, तमाम प्रतिष्ठान और मकान पूरी तरह
ध्वस्त हो गए। राजधानी श्रीनगर का लगभग 30 फीसदी हिस्सा बाढ़ में डूबा हुआ था।
पहले पहल आंकलन के हिसाब से 5000-6000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सेना ने राहत
अभियान से यहां के लोगों का निश्चित रूप से दिल जीत लिया। इफ़को से भी जो बन पड़
रहा था हमने वो सब किया। पहले हम तीन लाख रुपये की खाद्य-सामग्री लेकर पीड़ितों के
बीच थे, और अब इन 45000 कम्बलों के साथ हम इनकी मदद का प्रयास कर रहे हैं।
अगले दिन सुबह तकरीबन 12 बजे कश्मीर की ढेरों
यादें और तमाम रंग-ढंग अपने दिलोदिमाग़ में समेटे आईआईएमसीएए के पूरे दल ने होटल
से चेक-आउट कर दिया। अगले घण्टे में सभी श्रीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर
दिल्ली वापस पहुंचने के लिए अपनी यात्रा का इंतज़ार कर रहे हैं। अभी श्रीनगर के
होटल सिल्वर स्टार के कमरा नम्बर 302 में सन्नाटा है, जहां कुछ घण्टे पहले हलचलें
तेज़ थीं। इस हलचल ने ये साफ़ कर दिया है कि प्रकृति की अंगड़ाईयों के बाद फूटे
सैलाब से क्षत-विक्षत घाटी को मरहम लगाने में असल में घाटी के हमदर्द कौन हैं।
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