Monday, 28 November 2016

आख़िर परिवर्तन का पाञ्यजन्य कौन फूंकेगा


वास्तव में किन्नर देश के निर्माण में योगदान दे सकते हैं और एक उत्पादक शक्ति बन सकते हैं। उनकी अपनी क्षमता को एक किन्नर से बेहतर भला कोई और कैसे समझ सकता है। इसलिए उन्हें सशक्त बनाने के लिए स्वयं उनको ही नेतृत्व भी संभालना होगा।
• अमित राजपूत
किन्नरों के साथ दुनिया भर में भेदभाव होता रहा है, लेकिन जहां अन्य देशों में इन्हें समाज के अंदर कहीं न कहीं जगह मिल जाती है, वहीं दक्षिण एशिया के हालात बिल्कुल अलग हैं। 300 से 400 ईसा पूर्व में संस्कृत में लिखे गए कामसूत्र में भी स्त्री और पुरुष के अलावा एक और लिंग की बात कही गयी है। हालांकि भारत में मुगलों के राज में किन्नरों की काफी इज्जत हुआ करती थी। उन्हें राजा का क़रीबी माना जाता था। कई इतिहासकारों का यहां तक दावा है कि कई लोग अपने बच्चों को किन्नर बना दिया करते थे ताकि उन्हें राजा के पास नौकरी मिल सके।

जबकि आज के हालात ये हैं कि अभी भी किन्नरों ने वसूली को अपना कारोबार बना रखा है। आए दिन किन्नरों का अलग-अलग गुट फैक्ट्रियों से वसूली कर रहा है। किन्नरों की वसूली से उद्यमी परेशान रहते हैं। रोजमर्रा की ज़िन्दगी में किसी बस स्टॉप और ट्रेनों में इनकी यह हरकत अभी भी नहीं रुक रही है। इससे उनको निकलने की ज़रूरत है।

फिलहाल दक्षिण एशिया में किन्नरों की बात करें तो बांग्लादेश में किन्नरों की स्थिति भारत से बहुत ही बेहतर है। यहां पर उन्हें वीडियोग्राफी, सिलाई, ब्यूटी पार्लर आदि से जुड़े प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं। दो किन्नरों को तो यहां एटीएन बांग्ला मीडिया में वीडियो एडिटर के तौर पर काम मिला है। जबकि कई मेकअप आर्टस्टि हैं। अब यहां के सभी निजी क्षेत्र के लोग किन्नरो को काम पर रखना चाहते हैं। इनमें गारमेंट फ्रैक्ट्री सबसे आगे है। सरकार ने बूढ़े किन्नरों के लिए मासिक वजीफे की सुविधा दी है और उनके लिए एक खास प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया। बांग्लादेश में करीब डेढ़ लाख किन्नर हैं।

ऐसे ही थाईलैंड की एक एयरलाइन में किन्नरों को यात्रियों की सेवा करने का अवसर दिया जा रहा है। किन्नरों को एयर होस्टेस के रूप में नौकरी पर रखा गया है। इसके लिए 100 किन्नरों ने आवेदन किया था जिसमें 4 को फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी मिली है।

भारत के मामले मे 1871 से पहले तक किन्नरों को ट्रांसजेंडर का अधिकार मिला हुआ था। मगर 1871 में अंग्रेज़ों ने किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स यानी जरायमपेशा जनजाति की श्रेणी में डाल दिया था। बाद में आज़ाद हिंदुस्तान का जब नया संविधान बना तो 1951 में किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स से निकाल दिया गया। फिर भी आज के परिदृश्य में यदि हम देखें तो किन्नरों की स्थिति अभी भी आमूल-चूल परिवर्तनों को छोड़कर बेहतर नहीं कही जा सकती है। हालांकि अप्रैल, 2014 में भारत की शीर्ष न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान दी थी। नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी (एनएएलएसएकी अर्जी पर यह फैसला सुनाया गया था। इस फैसले की ही बदौलत हर किन्नर को जन्म प्रमाण पत्रराशन कार्डपासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिला। इसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें एक-दूसरे से शादी करने और तलाक देने का अधिकार भी मिल गया। वे बच्चों को गोद ले सकते हैं और उन्हें उत्तराधिकार कानून के तहत वारिस होने एवं अन्य अधिकार भी मिल गए। इसमें भ्रम दूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर यह भी कहा था कि एनएएलएसए का फैसला लेस्बियनबाईसेक्सुअल्स और गे पर लागू नहीं होगा क्योंकि उन्हें तीसरे लिंग के समुदाय में शामिल नहीं किया जा सकता।

ज्ञात हो कि भारत में किन्नरों को भी सामाजिक जीवनशिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में आज़ादी से जीने के अधिकार मिल सके इस मंशा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने 19 जुलाई, 2016 को ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्सबिल-2016” को मंजूरी दे दी है जो सामाजिक न्याय का द्योतक है। इसके ज़रिए किन्नरों को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि इसके लिए स्वयं किन्नर समुदाय कितना प्रयत्नशील हैं। क्या वह ऐसा सोचना शुरू कर पाया हैं कि वे जिस समाज में रहते हैं उसके लिए उन्हें कुछ बड़ा योगदान देना चाहिए। इसके बरक्स क्या समाज भी उत्साह से किन्नरों की पीड़ा को समझने का आदी हो चुका है या नहीं? जबकि सोचा यह गया था कि इससे किन्नरों को समाज और देश की मुख्यधारा से जोड़ने का काम होगा जो राज्यहित और राष्ट्रहित में होगा।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देने को कहा था। अब तक कितनों को नौकरी मिल पाई है। इनके आवेदनों में ही कितनी बढ़ोत्तरी हो सकी है। इतना ही नहीं अब सरकारी दस्तावेजों में पुरुष और महिला के अलावा किन्नरों के लिये भी अलग से कॉलम दिया जा चुका है। लेकिन प्रश्न यह है कि कितनी प्रविष्टियों से अब तक ये कॉलम सुशोभित हो सके हैं। हालांकि बहुत आपेक्षित है कि अगले दशक में सरकारी व निजी संस्थानों में किन्नरकर्मी भी बड़ी मात्रा में नजर आयें।

इससे भी पहले सवाल यह है कि किन्नर शिक्षा हासिल नहीं कर पाते। बेरोजगार ही रहते हैं। मांगने के सिवाय उनके पास कोई विकल्प नहीं रहता। सामान्य लोगों के लिए उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं का लाभ तक नहीं उठा पाते हैं। किन्नरों में एचआईवी, मादक पदार्थों के सेवन और तनाव जैसी समस्याओं से निपटने में उनकों मदद चाहिए।  हालांकि सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर उन्हें इसमें कुछ मदद पहुंचा भी रहा है। यद्यपि कोर्ट ने इस मामले में सरकार को निर्देश भी जारी किए थे कि सरकार इनकी चिकित्सा समस्याओं के लिए अलग से एचआइवी सीरो सर्विलांस केंद्र स्थापित करें। इन्हें अस्पतालों में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराए और अलग से पब्लिक टॉयलेट व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराए।

ऐसे में सवाल यह है कि क्या किन्नरों को सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने के लिए अब तक कोई प्रणाली विकसित हो पायी है। वास्तव में यह तभी सम्भव होगा जब वह कार्यपालिका और विधायिका में हिस्सेदारी निभाएंगे। हालांकि संविधान के जरिये यह सुनिश्चित किया जा चुका है कि प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या लिंग का हो, अपनी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ सकता है। संविधान में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है और लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही की गयी है। लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव बराबरी के मौलिक अधिकार का हनन है। साफ है कि संविधान में बराबरी का हक देने वाले अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का लिंग से कोई संबंध नहीं हैं। इसलिए ये सिर्फ स्त्री, पुरुष तक सीमित नहीं है। इनमें किन्नर भी शामिल हैं।

वास्तव में क्रियान्वयन के मामलों में केंद्र के साथ राज्य सरकारों सहित केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासनिक निकायों को यह बात समझना जरूरी है कि उन्हें किन्नरों के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए इस ओर गम्भीरता ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि उपेक्षा के शिकार किन्नर आम तौर पर काफी जुझारू होते हैं और अपनी जीविका के लिये कठिन मेहनत करते हैं। वे देश के निर्माण में योगदान दे सकते हैं और एक उत्पादक शक्ति बन सकते हैं। उन्हें लिंग के आधार पर हिजड़ा कहा जाता है। लेकिन साहस के मामले में वे पुरुषों से कम नहीं होते हैं। जाहिर है उनकी अपनी क्षमता को एक किन्नर से बेहतर कोई और कैसे समझ सकता है इसलिए उन्हें सशक्त बनाने के लिए उनमें से ही किसी को नेतृत्व भी संभालना होगा।

बीते सिंहस्थ महाकुंभ में देश का पहला किन्नर अखाड़ा तैयार हुआ, यह परिवर्तन के एक स्तम्भ जैसा है। ऐसे ही किन्नरों की कारगर बेहतरी के लिए आवश्यक है कि उन्हें फिलहाल कार्यपालिका में स्थान दिया जाये। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 6 लाख किन्नर हैं। हालांकि इसकी वास्तविक स्थिति वर्तमान में 6-10 लाख है। इसके अलावा देश में हर साल किन्नरों की संख्या में 40-50 हज़ार की वृद्धि भी होती है। ऐसे में इस बड़े समुदाय के नेतृत्व और उनके ज़मीनी परिवर्तन के लिए ज़रूर है कि इन्ही के बीच से ही योग्य को इनका नेतृत्व करना चाहिए। इसके लिए किन्नर समुदाय को मतदान में बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी लेने की ज़रूरत है।

वैसे तो चुनाव आयोग ने वर्ष 2012 में ही किन्नरों और ट्रांससेक्सुअल लोगों के लिए एक अलग वर्ग तैयार कर दिया था। ऐसे लोगों के लिए चुनाव प्रक्रिया के दस्तावेजों में अब मेल, फीमेल के अलावा 'अन्य' का विकल्प है। चुनाव आयोग के मुताबिक 'अन्य' यानी '' वाला विकल्प किन्नरों और ट्रांससेक्सुअल लोगों के लिए बनाया गया है। इसमें पहले कुछ बदलाव देखे भी जा चुके हैं। किन्नरों की दुनिया से लोग आगे निकल रहे हैं और कुछ राज्यों में तो उन्होंने सक्रिय राजनीति में कामयाबी भी पायी है। शबनम मौसी मध्य प्रदेश में विधायक भी चुनी जा चुकी हैं।


आने वाले साल में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। देश किन्नरों की ऊर्जा और एकजुटता से परिचित है। इंतज़ार इस बात का है कि इन पांच राज्यों में वह किस रूप में देश के समक्ष होंगे, ख़ासकर यूपी में। देखना दिलचस्प होगा कि बदलाव और बेहतरी के इस धर्मयुद्ध में आख़िर परिवर्तन का पाञ्यजन्य पहले कौन फूंकेगा।

Friday, 18 November 2016

सदाबहारः बराक़ और मिशेल ओबामा के प्यार की बयार के 34 सबसे ख़ूबसूरत पल

• अमित राजपूत



आत्मीय रिश्ते हमारी अभी और सदा की ज़रूरत है। यह बात दुनिया का सबसे ताक़तवर इंसान भी जानता है। जी हां, राष्ट्रपति ओबामा और मिशेल ओबामा अपने प्यार और आत्मीय रिश्तों के लिए भी जाने जाते हैं। और इस बात का गवाह रहा है व्हाइट हाउस। हालांकि अमेरिका को अब नया राष्ट्रपति मिल गया है लेकिन अभी भी दो महीने व्हाइट हाउस इस प्रेमी जोड़े के लिए अपनी बाहें बिछाए तैयार है। वास्तव में ये तो इनके अंतर्मन की ख़ुशबुओं को सदा महसूस करता रहेगा।
अभी पिछले महीने ही इस दंपति ने अपनी शादी की 24वीं सालगिरह मनाई थी जिसमें इनके हाव-भाव देख लोगों को यही लग रहा था कि इस जोड़ी ने अभी-अभी प्यार करना शुरू किया है। लेकिन ऐसा नहीं हैं, इनकी मोहब्बत की कहानी तो 1989 में शिकागो की एक लॉ फ़र्म में शुरू हुई। ओबामा इस बारे में कहते हैं कि मुझे ऐसा लगता है कि हमारे प्यार की पहली तारीख़ और वह अदद पहला चुंबन अभी भी बाक़ी है जोकि अब इतिहास है।
बराक़ ओबामा मेरे बेहद पसन्दीदा विभूतियों में से एक हैं। उनकी धीरता, गम्भीरता, ज़िम्मेदारानापन, निर्णय लेने की क्षमता, सादगी और प्यार की अभिव्यक्ति के तरीक़े मुझे रोमांचिंत करते हैं। यहां मेरा दृष्टिकोण उनके और उनकी पत्नी के भावपूर्ण पलों की ओर है।  
आइए देखते हैं ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल के साथ-साथ बिताए कुछ यादगार हसीन और ख़ूबसूरत पलों को...

·       28 अगस्त, 2008 को डेनवर में डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन के अपने भाषण के बाद बराक ओबामा अपनी पत्नी मिशेल ओबामा को चूमते हुए।
(1)

·       17 अगस्त, 2010 को ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के परिसर में एक रैली को सम्बोधित करने से पहले ओबामा मिशेल को अपनी बांहों में भरते हुए।
(2)
·       व्हाइट हाउस के राजनयिक स्वागत कक्ष में वर्ल्ड एक्सपो-2015’ के लिए वीडियो टैपिंग के दौरान मिशेल का ओबामा के साथ शगल।
(3)
·       21 जनवरी, 2013 को वाशिंगटन डीसी में राष्ट्रपति बराक़ ओबामा और प्रथम महिला मिशेल ओबामा की शाही सवारी।
(4)
·       15 अगस्त, 2012 को आयोवा के एक एम्फी थियेटर में रैली के दौरान बोलती मिशेल और हौसला बढ़ाने के लिए उनका हाथ थामे ओबामा।
(5)
·       06 अप्रैल, 2015 को व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम में वार्षिक ईस्टर एग रोल के दौरान इंस्टाग्राम के लिए फोटोशूट के दौरान शरारती मुद्रा में मिशेल और ओबामा।
(6)
·       04 नवम्बर, 2008 को शिकागो में अपने भाषण के बाद इलेक्शन नाइट पार्टी की रात ग्रांट पार्क में पत्नी को गले लगाते ओबामा।
(7)
·       16 जुलाई, 2012 को वाशिंगटन में ओलिंपिक बास्केटबॉल प्रदर्शनी में खेल के मध्यांतर के दौरान चुंबन वाले कैमरा स्क्रीन पर मिशेल और ओबामा ने अपना चुंबन प्रदर्शित कर दुनिया के सामने एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार को उजागर किया।
(8)
·       20 जनवरी, 2013 को वाशिंगटन डीसी में नेशनल बिल्डिंग संग्रहालय के उद्घाटन रिसेप्शन के दौरान राष्ट्रपति ओबामा को किस करतीं मिशेल।
(9)
·       13 दिसम्बर, 2009 को वाशिंगटन डीसी के नेशनल बिल्डिंग संग्रहालय में 'क्रिसमस इन वॉशिंगटन' में शिरकत करते हुए ओबामा दंपति।
(10)
·       19 जून, 2013 को बर्लिन के एक पैलेस में डिनर के दौरान मिशेल राष्ट्रपति ओबामा के माथे पर कुछ पोछते हुए।
(11)
·       सन् 1992 में केन्या में युवा ओबामा जोड़ी।
(12)
·       28 मार्च, 2016 को व्हाइट हाउस के साउथ लॉन में व्हाइट हाउस ईस्टर एग रोल के दौरान एक पुस्तक पढ़ने के बाद राक्षस की नकल करते ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल।
(13)
·       04 जुलाई, 2010 को व्हाइट हाउस की छत से नेशनल मॉल के ऊपर आतिशबाजी को निहारती ओबामा जोड़ी।
(14)
·       20 मार्च, 2009 को व्हाइट हाउस के रेड रूम में मिशेल के साथ शरारत करते ओबामा। यह देखकर उनकी वरिष्ठ सलाहकार वैलेरी जैरेट मुस्कुरा पड़ीं।
(15)
·       21 जनवरी, 2013 को वाशिंगटन में एक कार्यक्रम के उद्घाटन के दौरान अपनी पत्नी मिशेल को अदब से झुककर अपने साथ बुलाते राष्ट्रपति ओबामा।
(16)
·       न्यू हैम्पशायर में 08 जनवरी, 2008 को नाशुआ साउथ हाईस्कूल के जिमखाने के बैक-स्टेज़ में अपने समर्थकों के सामने जाने से पहले पत्नी मिशेल को साथ भावुक ओबामा।
(17)
·       08 जनवरी, 2008 की रात न्यू हैम्पशायर के नाशुआ साउथ हाईस्कूल में एक रैली के बाद अपने समर्थकों के साथ चियर्स मानते हुए बराक़ ओबामा। इस दौरान ओबामा को पीछे से गले लगाकर मिशेल ने उनके सुकून को और बढ़ा दिया।
(18)
·       14 अगस्त, 2010 को फ्लोरिडा की पनामा सिटी बीच पर मिनी गोल्फ के एक राउण्ड में मिशेल के पुट्स को देखते ओबामा।
(19)
·       15 अगस्त, 2010 को फ्लोरिडा की पनामा सिटी बीच पर सेंट एंड्रयूज़ खाड़ी के अपने दौरे के समय एक नाव की रेलिंग पर सहारे के लिए रखा ओबामा जोड़ी का हाथ परस्पर विश्वास को दर्शाता है।
(20)
·       09 दिसम्बर, 2008 को कोलंबिया के विलियम्स ब्रीक स्टेडियम में एक रैली के दौरान ओबामा जोड़ी का मधुर प्रेमालिंगन। उनके साथ में मज़ाक करतीं ओप्रा विन्फ़्रे।
(21)
·       20 जनवरी, 2009 को वाशिंगटन डीसी में वेस्टर्न इनॉग्रल बाल के दौरान पत्नी मिशेल के साथ रोमांटिक डान्स करते ओबामा।
(22)
·       16 अगस्त, 2007 को आयोवा के डेस मोइनेस में आयोवा राज्य मेले के दौरे में अपनी पत्नी मिशेल को एक चंचल चुंबन देते ओबामा।
(23)
·       20 जनवरी, 2009 को एक इनॉग्रल बाल के दौरान गोल्फ़-कार्ट पर सवार ओबामा दम्पति।
(24)
·       आयोवा के डेस मोइनेस में एक कैम्पेन रैली के दौरान ओबामा को भावुक होकर गले लगातीं मिशेल ओबामा।
(25)
·       वाशिंगटन में 20 जनवरी, 2009 को एक इनॉग्रल बाल के दौरान ओबामा और मिशेल साथ में मस्ती से झूमते हुए।
(26)
·       ख़ूनी रविवार की वर्षगांठ और मोंटगोमरी के नागरिक अधिकारों के जुलूस के दौरान ओबामा के भावों को नियंत्रित करतीं मिशेल।
(27)
·       व्हाइट हाउस के साउथ लॉन में मैरीन की ओर एकांत तलासती ओबामा जोड़ी।
(28)
·       अक्टूबर, 1992 में ओबामा दंपति अपनी शादी के दिन।
(29)
·       16 अगस्त, 2007 को अटलांटिक के फ़ायरग्राउंड में एक कैंपेन इवेण्ट में मौका मिलते ही एक-दूसरे में शामिल हो गयी ओबामा जोड़ी।
(30)

·       01 मई, 2014 को व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम में एक कार्यक्रम के रिसेप्शन के दौरान मिशेल को चूमते ओबामा।
(31)
·       28 अप्रैल, 2015 को व्हाइट हाउस में अपने अधिकारियों के साथ जश्न मनाते ओबामा दंपति।
(32)
·       19 मई, 2010 को मैक्सिको के तत्कालीन राष्ट्रपति फेलिप के स्वागत के इंतज़ार से पहले व्हाइट हाउस के मैप रूम में रोमांटिक मिशेल और ओबामा।
(33)
·       27 जुलाई, 2014 को बोस्टन में डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन में अपने मुख्य भाषण के बाद समर्थकों का अभिवादन स्वीकारते ओबामा दंपति।
(34)
@साभारः हफ़िंटन पोस्ट

Friday, 11 November 2016

महिलाओं के पास गालियों का अपना संसार है

• अमित राजपूत


पूरा भारतवर्ष समतामूलक हो गया है। देश की अधिकतम आबादी की जेब में 2000 रुपये से अधिक नकद मुद्रा नहीं है, क्योंकि हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने कालाधान, भ्रष्टाचार, जालीनोट, हवाला और आतंकवाद पर एक साथ नकेल कसने के लिए तत्कालीन 1000 व 500 रुपये की नोटों को रद्द कर दिया है। दो दिन एटीएम व बैंक भी बंद थे। आज खुले हैं तो नियम यह है कि 2000 रुपये से अधिक आप कैश नहीं प्राप्त कर सकते हैं। भीड़ इतनी है कि किसी को मिले तो किसी को नहीं। अधिकतम जगहों पर एटीम ख़राब हैं या तो वहां पैसे ख़त्म हो गए हैं। ऐसे में किसी के पास यात्रा हेतु किराया नहीं है तो किसी के पास रात के भोजन के लिए पैसे नहीं हैं। मैं भी उनमें से एक हूं। दिन में लंच भी नहीं किया और रात के भोजन का भी जुगाड़ नहीं है। फिर भी देश की अधिकतम जनसंख्या मोदी जी फैसले से ख़ुश है और वह कुछ दिक्क़ते बर्दास्त भी कर रही है।
बावजूद इसके हम किसी आम-ख़ास को बाधित भी नहीं कर सकते हैं कि वह अपनी दिक्कतों के बाद होने वाली भड़ास को घूट कर पी जाए। हर व्यक्ति का अपनी प्रज्ञा और अनुपालन  के अनुरूप अभिव्यक्ति का तरीक़ा है। लोगों को अपनी व्यथा अभिव्यक्त कर ही देनी चाहिए। स्वयं प्रधानमंत्री इस बात को स्वीकार चुके हैं कि इस फैसले से लोगों को तमाम दिक्क़तें होंगी, जनता हमारा साथ दे।

आज सुबह बस से दफ़्तर आ रहा है। एक व्यक्ति जो कल से भूख के मारे मोदी को मानव जाति का सबसे बड़ा शत्रु समझ रहा था, उन्हें धारा-प्रवाह गालियां दिए जा रहा है। बार-बार वह कुछ रुआसा सा अपनी भड़ास में रुंधे गले से प्रधानमंत्री की आका-माका किए पड़ा था। भूख के मारे वह लुंज-पुंज साफ़ नज़र आ रहा था। उसकी आवाज़ भी डगमगा रही थी। बस में कुछ चौधरी टाईप के लड़के भी बैठे थे। उनमें से दो मुख्य थे। कुछ नवयुवतियां भी थीं जो शायद उन लड़कों को आकर्षित कर रही थी और उनमे नज़रे मिल रही थी। मौका बेहतर लगा उनको तमाम लड़कियों के सामने ख़ुद को भद्र दिखाने का। उन्होने उस गाली देने वाले को धक्केमार कर यह कहकर बस से उतार फेंका कि बस में लेडीज़ बैठी हैं और ये स्याला गाली दे रहा है। बस आगे बढ़ गई और उसके भीतर ठहाकों की गूंज भर गई। मैं वहीं उस भूखे आदमी के पास वहीं रुक सा गया जहां बस से उसे उतार फेंका गया था। बस कंडक्टर ने यह साफ़ किया है कि उसने टिकिट पूरा लिया था।

समझ नहीं आ रहा है कि जब उसने अपनी यात्रा का पूरा टिकट ले रखा था तो उसको इस तरह से बीच सड़क पर उतार फेंकना कितना सही है। वह भी तब जब आजकल लोग 10-10 रुपये के लिए परेशान हैं। लोगों के पास कैश नहीं है। कोई किसी को उधार नहीं दे रहा है। क्यां उन चौधरियों को इस बात का तनिक भी ख्याल न रहा कि वह अब आगे की यात्रा कैसे करेगा। उसके पास रुपये हैं भी या नहीं। रही बात इस तर्क की कि बस में लेडीज़ थीं और वह गालियां दे रहा था। भाई ऐसे में बस में किसी महिला ने उसे एक बार भी ऐसा नहीं कहा है कि भइया गाली मत दो। उल्टे सब मन मुस्की मार रही थीं।


ख़ैर मुझे नहीं लगता है कि महिलाओं के सामने गाली नहीं दी जा सकती है और मर्दों के सामने भर मुंह गालियां उड़ेल सकते हैं। इसमें भी ये चौधरी टाईप के मर्द यह क्यूं तय करते हैं कि महिलाओं के सामने कोई गाली नहीं दे सकता है। जबकि महिलाओं के लिए गालियां कोई अस्पृश्य सी चीज़ नहीं है। यद्यपि पुरुषों के लिए गालियां राहे-चौराहे की बात होगी। लेकिन महिलाओं के पास तो गालियों का अपनी पूरा संसार हैं। लोकगीतों और परम्पराओं में गालियां महिलाओं के साथ जुड़ी हुई हैं। इन मामलों में वह तो पुरुषों से अधिक खुली हुई हैं। अभी लीना यादव नें पार्च्ड में इसे बाखूबी दर्शाया है। फिर क्यूं कोई चौधरी महिलाओं का नेतृत्व करने लग जाता है और वह महिलाओं के लिए गालियों की परहेजता बताने लगता है। भूखे, असहाय को बस से उतार फेकता है। वो एक बार भी नहीं सोचते हैं कि वह भूखा पीड़ित अब किस हाल में होगा।   

Wednesday, 9 November 2016

अमेरिका के राष्ट्रपतियों की सूची


1.     जॉर्ज वाशिंगटन
2.     जॉन एडम्स
3.     थॉमस जेफ़र्सन
4.     जेम्स मेडिसन
5.     जेम्स मुनरो
6.     जॉन क्विंसी एडम्स
7.     एंड्रयू जैक्सन
8.     मार्टिन वान ब्यूरेन
9.     विलियम हेनरी हैरिसन
10. जॉन टायलर
11. जेम्स के पोक
12. ज़ाकारी टेलर
13. मिलार्ड फिलमोर
14. फ्रेंकलिन पियर्स
15. जेम्स बुकानन
16. अब्राहम लिंकन
17. एंड्रयू जॉनसन
18. यूलिसिस एस ग्रांट
19. रदरफोर्ड बी हेस
20. जेम्स ए गारफील्ड
21. चेस्टर ए आर्थर
22. ग्रोवर क्लीवलैंड
23. बेंजामिन हैरिसन
24. ग्रोवर क्लीवलैंड
25. विलियम मैककिनले
26. थियोडोर रूजवेल्ट
27. विलियम हावर्ड टाफ़
28. वुडरो विल्सन
29. वॉरेन जी हार्डिंग
30. कैल्विन कूलिज
31. हर्बर्ट हूवर
32. फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट
33. हैरी एस ट्रूमैन
34. ड्वाइट डी आइजनहावर
35. जॉन एफ़ कैनेडी
36. लिंडन बी जॉनसन
37. रिचर्ड निक्सन
38. जेराल्ड फोर्ड
39. जिमी कार्टर
40. रोनाल्ड रीगन
41. जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश
42. बिल क्लिंटन
43. जॉर्ज डब्ल्यू बुश
44. बराक़ ओबामा

45. डोनाल्ड ट्रंप