Friday, 11 November 2016

महिलाओं के पास गालियों का अपना संसार है

• अमित राजपूत


पूरा भारतवर्ष समतामूलक हो गया है। देश की अधिकतम आबादी की जेब में 2000 रुपये से अधिक नकद मुद्रा नहीं है, क्योंकि हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने कालाधान, भ्रष्टाचार, जालीनोट, हवाला और आतंकवाद पर एक साथ नकेल कसने के लिए तत्कालीन 1000 व 500 रुपये की नोटों को रद्द कर दिया है। दो दिन एटीएम व बैंक भी बंद थे। आज खुले हैं तो नियम यह है कि 2000 रुपये से अधिक आप कैश नहीं प्राप्त कर सकते हैं। भीड़ इतनी है कि किसी को मिले तो किसी को नहीं। अधिकतम जगहों पर एटीम ख़राब हैं या तो वहां पैसे ख़त्म हो गए हैं। ऐसे में किसी के पास यात्रा हेतु किराया नहीं है तो किसी के पास रात के भोजन के लिए पैसे नहीं हैं। मैं भी उनमें से एक हूं। दिन में लंच भी नहीं किया और रात के भोजन का भी जुगाड़ नहीं है। फिर भी देश की अधिकतम जनसंख्या मोदी जी फैसले से ख़ुश है और वह कुछ दिक्क़ते बर्दास्त भी कर रही है।
बावजूद इसके हम किसी आम-ख़ास को बाधित भी नहीं कर सकते हैं कि वह अपनी दिक्कतों के बाद होने वाली भड़ास को घूट कर पी जाए। हर व्यक्ति का अपनी प्रज्ञा और अनुपालन  के अनुरूप अभिव्यक्ति का तरीक़ा है। लोगों को अपनी व्यथा अभिव्यक्त कर ही देनी चाहिए। स्वयं प्रधानमंत्री इस बात को स्वीकार चुके हैं कि इस फैसले से लोगों को तमाम दिक्क़तें होंगी, जनता हमारा साथ दे।

आज सुबह बस से दफ़्तर आ रहा है। एक व्यक्ति जो कल से भूख के मारे मोदी को मानव जाति का सबसे बड़ा शत्रु समझ रहा था, उन्हें धारा-प्रवाह गालियां दिए जा रहा है। बार-बार वह कुछ रुआसा सा अपनी भड़ास में रुंधे गले से प्रधानमंत्री की आका-माका किए पड़ा था। भूख के मारे वह लुंज-पुंज साफ़ नज़र आ रहा था। उसकी आवाज़ भी डगमगा रही थी। बस में कुछ चौधरी टाईप के लड़के भी बैठे थे। उनमें से दो मुख्य थे। कुछ नवयुवतियां भी थीं जो शायद उन लड़कों को आकर्षित कर रही थी और उनमे नज़रे मिल रही थी। मौका बेहतर लगा उनको तमाम लड़कियों के सामने ख़ुद को भद्र दिखाने का। उन्होने उस गाली देने वाले को धक्केमार कर यह कहकर बस से उतार फेंका कि बस में लेडीज़ बैठी हैं और ये स्याला गाली दे रहा है। बस आगे बढ़ गई और उसके भीतर ठहाकों की गूंज भर गई। मैं वहीं उस भूखे आदमी के पास वहीं रुक सा गया जहां बस से उसे उतार फेंका गया था। बस कंडक्टर ने यह साफ़ किया है कि उसने टिकिट पूरा लिया था।

समझ नहीं आ रहा है कि जब उसने अपनी यात्रा का पूरा टिकट ले रखा था तो उसको इस तरह से बीच सड़क पर उतार फेंकना कितना सही है। वह भी तब जब आजकल लोग 10-10 रुपये के लिए परेशान हैं। लोगों के पास कैश नहीं है। कोई किसी को उधार नहीं दे रहा है। क्यां उन चौधरियों को इस बात का तनिक भी ख्याल न रहा कि वह अब आगे की यात्रा कैसे करेगा। उसके पास रुपये हैं भी या नहीं। रही बात इस तर्क की कि बस में लेडीज़ थीं और वह गालियां दे रहा था। भाई ऐसे में बस में किसी महिला ने उसे एक बार भी ऐसा नहीं कहा है कि भइया गाली मत दो। उल्टे सब मन मुस्की मार रही थीं।


ख़ैर मुझे नहीं लगता है कि महिलाओं के सामने गाली नहीं दी जा सकती है और मर्दों के सामने भर मुंह गालियां उड़ेल सकते हैं। इसमें भी ये चौधरी टाईप के मर्द यह क्यूं तय करते हैं कि महिलाओं के सामने कोई गाली नहीं दे सकता है। जबकि महिलाओं के लिए गालियां कोई अस्पृश्य सी चीज़ नहीं है। यद्यपि पुरुषों के लिए गालियां राहे-चौराहे की बात होगी। लेकिन महिलाओं के पास तो गालियों का अपनी पूरा संसार हैं। लोकगीतों और परम्पराओं में गालियां महिलाओं के साथ जुड़ी हुई हैं। इन मामलों में वह तो पुरुषों से अधिक खुली हुई हैं। अभी लीना यादव नें पार्च्ड में इसे बाखूबी दर्शाया है। फिर क्यूं कोई चौधरी महिलाओं का नेतृत्व करने लग जाता है और वह महिलाओं के लिए गालियों की परहेजता बताने लगता है। भूखे, असहाय को बस से उतार फेकता है। वो एक बार भी नहीं सोचते हैं कि वह भूखा पीड़ित अब किस हाल में होगा।   

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