Friday, 4 November 2016

कौन सी तितली हो तुम!


कौन सी तितली हो तुम
हे!
आयी भंवर में इतनी सरलता से
उंगलियों के पाश में
पास में
मंडराती, इठलाती, दिखती ख़ुशी में
चक्षुप्रिय
कौन सी तितली हो तुम
हे भद्रे!
संवाद न संप्रेषण कोई
प्रतिवाद का कोई क्षण कहां
किधर से आती हो
निकट मेरे
भटक मेरे पास से जाती हो
चुराकर एकाग्र
कर व्याग्र सा मुझको
व्यथित हूं
भला
कौन सी तितली हो तुम
हे सखी!
कुसुम संगत तुम्हारी
क्यूं नरम नशे में ज़ोर
सराबोर करती हो
पकड़कर रखूं तुमको सदा
इस चाह की लत में
खोजता हूं
मर्म
पूछता हूं
कौन सी तितली हो तुम
हे प्रिये!
स्पर्श तुम्हारा गालों पे
मचाया झंकार
बसाया संसार जाये धीरे से
चाहता हूं संग तुम्हारे
डर मुझे कि छू लूं तुम्हें
या रहने दूं पता नहीं
खिल उठोगी या पिघल जाओगी
बताओ
कौन सी तितली हो तुम!
हे देवी!






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