Saturday, 30 December 2017

मेरे सपनों का उत्तर प्रदेश

अमित राजपूत


                           मैं उत्तर प्रदेश को अपने जन्म से कई बरस पहले या फिर आप ये भी कह सकते हैं कि स्वयं उत्तर प्रदेश के ही जन्म से कई बरस पहले, बरसों बरस पहले से इसे जानता हूँ। वास्तव में उत्तर प्रदेश को लेकर मेरा अनुभव संसार ऐसा ही है और मैं इसी मीठे अनुभव संसार में ही बना रहना चाहता हूँ। यही कारण है कि जब-जब भी मुझे मेरे सपनों के उत्तर प्रदेश के बारे में कुछ कहने या लिखने को कहा जाता है तो क्रमशः मेरे बोल या कलम स्थिर हो जाती है और वह एक बार फिर झट से उसी मीठे अनुभव संसार में जाकर विचरण करने लगते हैं या लगती है। हाँ, कुछ ज़ोर देकर इस ओर प्रयास करने पर इसके तनिक बिम्बों को ही छुआ जा सकता है और मैं इतना ही कर पाता हूँ।

मेरे सपनों के उत्तर प्रदेश में सबसे पहले शान्ति है। यात्रा, लेन-देन, व्यापार, निर्माण, प्रगति और उत्सव इन तमाम चीज़ों में इनकी वाह्य हलचलों के भीतर एक शान्ति है। मैं एक ऐसे उत्तर प्रदेश का सपना देखता हूँ जहाँ बिसमिल्लाह ख़ाँ की शहनाई की तान से ही रोज़ बनारस के घाटों पर सुबह हो। लखनऊ की शाम में ढलते सूरज की लालिमा अपना रंग उन होठों पर लाली चढ़ा जाए, जिनसे हर रोज़ शेर-ओ-शायरियाँ झड़ती रहें। मेरे सपनों के उत्तर प्रदेश में घाघरा का विस्तार अपनी बाहें फैलाए तराई के बादलों से हर रोज़ आलिंगन करता है। ब्रज में बजती पाजेब से सुगन्ध उठती है मेरे सपनों के उत्तर प्रदेश में, जो वृन्दावन तक ख़ुशबू पैदा करती है। बुंदेली बुलाक पहने स्त्रियाँ लट्ठ को तेल पिलाकर काँछ मारे रंगभूमि में रंग बिखेरती हैं हर रोज़, मेरे सपनों के उत्तर प्रदेश में। इसके अलावा बहुत सी बातें हैं मेरे सपनों के उत्तर प्रदेश में जिन्हें मैं अधिक अनुभूतियोंवश कविता में कहता हूँ-

भारत के सौष्ठव कंधे सा
अविचल
अडिग
अनुबंधित हो
परे हो जग से
शोधित
मुखरित
हर पल
हर घट
पुलकित ऐसे
जैसे गगन के तारे
मानों जलता सा कोई पुंज
कुंज ऐसा
कि अंतस् सारे जल उठें भदेस
जीवित, ऐसा ही हो
मेरे सपनों का उत्तर प्रदेश ।

अँगना गोधन से सना
खेतों में बाजरे का घुनघुना
पोखर पंक से हो धना
गलियाँ गंध लिए पलास की
महके घना-घना
चिंघार यार बाघ सी
चिमनियाँ उदात्त सी
सार सड़क का लिए
धान्य का हो बन्ना
मुस्कुराहटें बिखेरता
रूप धरे वो भगेश
जीवित, ऐसा ही हो
मेरे सपनों का उत्तर प्रदेश ।

पलायन से मुक्त
देशी गायों का
स्वप्न लिए
घर वापसी की
परिणति के उत्सव में
मुग्ध
ताकि श्रम के
गुरू बनें
कौशल के
आनन्द में डूबे रहें
सदा के लिए
चित्तालय स्वच्छ हो
सक्रिय हों
स्वयं ही
सुख के कारक बनें
सत्य में
पुकारता है जनादेश
जीवित, ऐसा ही हो
मेरे सपनों का उत्तर प्रदेश ।

सुडौल काया युक्त हों
दो-आब की दूबर दोनों बहनें
दर्पण में निहारें
एक बार पुनः
महाजनपद
स्वरूप के गौरव से युक्त हों
यव, शाक, साँवा
बुलावा भेजा जाये
देवों को
सहदेशों को
संदेशों को
पहुँचाया जाये
चहुँदिश
चर्चाएँ हों
चक्रवर्ती हों
लगने लगें
हम अब धरा पर परेश
जीवित, ऐसा ही हो
मेरे सपनों का उत्तर प्रदेश ।

No comments:

Post a Comment