Tuesday, 16 January 2018
रामपुर में ‘DIG चाय वाला’ ! सुनकर दंग रहा गया था मैं...
∙ अमित राजपूत
दिल्ली से मुझे कभी इश्क़ न हो पाया । ये हमेशा से मुझे बेवफ़ा मोहब्बत के सिवा कुछ न लगी । सच्चाई तो ये है कि दिल्ली ने मुझसे हमेशा वेश्या की तरह बर्ताव किया । यही कारण है कि मैं भी अब उसे वेश्या स्वीकार कर चुका हूँ । दिल्ली को भोगकर निकल जाने की फितरत घर कर गयी है मुझमें । इसलिए अब मैं जल्दी ही इससे ऊबकर निकल जाने की फिराक में लगा रहता हूँ । इस बार कुछ ज़्यादा ही ऊबकर मन खिन्न हो गया । मैं झटपट निकलना चाहा क्योंकि इस वक़्त मुझे पैसों की भी ज़्यादा किल्लत हो गयी । इस तनाव भरे माहौल में मैंने तनाव को ही तनाव देने की ठानी और ग़रीबी में उल्टे कुछ पैसे उधार माँगकर घूमने निकल पड़ा । इसके लिए मैंने ब्रितानी हुकूमत की ग़ुलामी से मुक्त रियासत रामपुर का रुख़ किया और फिर वहाँ से नैनीताल । उधारी इतनी ज़्यादा भी न मिल पायी थी इसलिए आगे के खर्चे अधिक होने के कारण रामपुर कोर्ट में तैनात मेरे वाइट कॉलर दोस्त उमेश पटेल ने मेरे खर्चों को वहन कर डाला । ‘जहाँ चाह-वहाँ राह’ की नजीर मेरे लिए सच हो गयी थी ।
ख़ैर, इस वक़्त छह जनवरी की धुंधली सर्द भरी
शाम ढले मैं दिल्ली से निकला रामपुर बस स्टॉप पर खड़ा था । यहाँ से मैंने अपने
दोस्त उमेश को फोन लगाया और उसके कमरे आने का निर्देशन माँगा। उसने मुझे कचेहरी के
दूसरे नम्बर वाले गेट के सामने DIG चाय वाले के यहाँ तक
रिक्शे से आने को कहा ।
‘DIG चाय वाला’ ! हू-ब-हू ऐसे ही, जैसे आपकी भौंहें तन गयी हैं इस नाम को सुनकर ठीक वैसे ही मैंने भी अपनी भौंहों पर बल दे डाला था उस वक़्त । ये नाम और इसमें छिपे दो बिम्ब DIG और चाय वाला रह-रहकर मेरे दिमाग़ में कुँधने लगे । बस-अड्डे से कचेहरी मैं एक गहरी सोच में ही आ धमका । रिक्शे वाले के ‘साहेब DIG चाय खिन लिआये गइन..’ कहते ही मेरी सोच शिथिल हुयी और मैंने अपनी नज़रें ऊपर कीं तो देखा कँसा हुआ मोटा-काला कोट-पैण्ट और हाथों में ऊनी दस्ताने पहने स्मार्ट सा लड़का मेरे सामने हाज़िर था जिसने झट से मेरे बैग का कंधा बदल दिया था । घण्टों से मेरे कंधे से चिपका बैग अब उमेश के कंधे पर और भी जच रहा था ।

अगली रात नौ बजे मैं उमेश के साथ DIG चाय वाले की दुकान पर उसकी चाय का गिलास थामे बिल्कुल DIG चाय वाले के छह फिटे बदन के सामने ही खड़ा था । आँखों में सुर्ख़ रंग और
चेहरे पर आज भी शोखियाँ बटोरे 52 वर्षीय DIG चाय वाले का असल
नाम ओम प्रकाश सैनी है । ओम प्रकाश की कचेहरी में अच्छी जान-पहचान है और कचेहरी
में भी वकील, जज, पेशकार और बाबुओं सहित सभी लोग ओम प्रकाश को पसन्द करते हैं । 26
जनवरी, 15 अगस्त और 02 अक्टूबर जैसे विशेष अवसरों पर इनकी ही चाय की चुस्कियाँ
जजों के होठों का सबब बनती हैं। स्वभाव से नरम और फ़ैसलों से सख़्त ओम प्रकाश
मददगार इन्सान के तौर पर जाने-जाते हैं । रामपुर कोर्ट में तैनात कई बाबुओं ने
अपनी आपबीती मुझे सुनाई और हर किसी के अनुभव संसार में मैंने ओम प्रकाश और उनके
मददगार स्वभाव को सदृश पाया ।
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अपनी दुकान में मौजूद DIG चाय वाले के बेटे राजकुमार सैनी |
8वीं तक पढ़े ओम प्रकाश से जब मैं बातचीत करने
लगा तो आधे घण्टे से ऊपर गुजरे वो मुझे कुछ भी बताने से इन्कार करते रहे । फिर
मेरी ये राज़ जानने की तलब और बढ़ी । मेरी तलब भाँपकर ओम प्रकाश अब कुछ-कुछ
फुसफुसाने लग गये थे । उन्होंने मुझसे कहा कि उनसे ये बात हर कोई पूछता है लेकिन
वो टाल देते हैं । वो आगे कहते हैं कि “कभी-कभी एसपी
साहेब भी हमसे पूछते रहते हैं कि भई DIG तू तो बड़ा है हमसे,
भई हम तो एसपी रह गए और तुम तो DIG हो गए ! आख़िर बता तो राज़ क्या है ?”
मेरे और ओम प्रकाश के बीच घण्टों बात चली,
लेकिन स्वाभिमान के धनी DIG ने अब तक एक बक्कुर भी न
डाला । मेरे पुनश्च अनुरोध पर वो एक गहरी सोच में डूबते चले जाते और जब उससे बाहर
निकलकर आते तो बस यही कह पाते कि “पत्रकार साहेब छोड़िए । वो
पुरानी बातें हैं, उनको जानकर आप क्या करेंगे ? मैं वो सब
आपको बता नहीं सकता क्योंकि उससे किसी एक समुदाय की इज्जत पर आँच आ जाएगी ।” मैंने फिर भी अपनी जिज्ञासा से कोई समझौता नहीं किया, उल्टे वो और बलवती
होती गयी । मैंने अपना प्रयास जारी रखा और फिर अंततः उन्होंने मुझे लगभग 35-40 साल
पहले की एक लम्बी घटना बतायी जिसकी वजह से रामपुर कोर्ट में हफ़्तों हड़ताल रही थी
। दो पक्षों के वकील आमने-सामने थे और ओम प्रकाश को लगातार शाबाशियाँ मिल रही थीं
। उन्हीं शाबाशियों में एक शाबाशी थी सिविल लाइन्स कोतवाली (तब थाना) में तैनात
तत्कालीन कोई वर्मा जी (प्रथम नाम DIG की स्मृति में नहीं
है) नाम के दरोगा की । उन्होंने ही पहली बार ओम प्रकाश को DIG कहा था और तभी से ओम प्रकाश बदलकर ओम प्रकाश सैनी से डीआईजी हो गए । आज
लोग इन्हें ओम प्रकाश के नाम से न के बराबर जानते हैं बल्कि ये DIG के नाम से ही मशहूर हैं।
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खुद्दार DIG चाय वाले उर्फ़ ओम प्रकाश सैनी अपनी दुकान पर |
DIG की बातें सुनकर हम दोनों ने ज़ोर के ठहाके लगाए । मैं सन्तुष्ट और स्वयं DIG इन ठहाकों के साथ अपने अतीत से निकलकर अभी तक के सफ़र को तय कर फिर से वापस मेरे सामने अविचल भाव में आ बैठे थे । जनवरी की रात के साढ़े दस हो चुके थे । DIG अपने कम्बल और रजाई को दुरुस्त करने लग गये.. चाय की झोपड़ी के बाहर झड़ती ओस की बूँदे भी दबे मन मुझे शुभ रात्रि बोल रही थीं... उमेश मेरे पास से जाकर वापस पन्द्रह मिनट से आकर मुझे डिनर के लिए बुलाने को खड़ा था । DIG उर्फ़ ओम प्रकाश सैनी को राम-राम कहकर मैं मन में पूर्णता समेटे उमेश के कमरे में परोसी अपनी डिनर की थाली के लिए तेज़ी से क़दम बढ़ाए चला जा रहा था...।
नैनीताल घूमने जा रहे हैं ! पहुँचकर रखें इन बातों का ध्यान...
∙ अमित राजपूत
अगर आप नैनीताल घूमने का प्लान कर रहे हैं तो कुछ ख़ास
बातों का ध्यान देकर आप वहाँ तनाव-मुक्त सैर का मज़ा ले सकते हैं। अक्सर जब हम
किसी पर्यटन पर होते हैं तो हम उस जगह को जीने की फिराक़ में होते हैं। हम वहाँ उन
तमाम बिम्बों को खोजने का प्रयास करते हैं जो उक्त पर्यटन का प्रतिनिधि हो, फिर
चाहे वो वहाँ की सभ्यता हो, खान-पान हो, शिल्प हो या फिर वहाँ का भूगोल हो। लेकिन
कभी-कभी घूमने जाने वाली जगह के प्रति हमारी असहजता वहाँ की मौज को फीका बना देता
है। यहाँ मैं आपको नैनीताल के प्रति सहज बनाने की कोशिश करुँगा जिससे जब आप वहाँ
जायें तो मस्त चित्त से सैर का लुत्फ़ उठा सकें। आइए जानें किन बातों का रखना है
हमें ख़ास ख़्याल...
लोकल फूड : आपने ये कहावत तो ज़रूर ही सुनी होगी कि ‘ईट
लोकल-थिंक ग्लोबल’ । जी हाँ, हमें आँख मूँदकर इसका अमल भी
करना चाहिए। जहाँ भी घूमने जाएँ वहाँ का लोकल फूड खाने से बिल्कुल न चूकें।

नैनीताल में लोकल फूड के नाम पर यहाँ की दानेदार
वाली बर्फ़ी मात्र आपको मिल सकती है। आप मिठाई की दुकान में बस यही ‘दाने वाली बर्फ़ी’ कहकर माँग सकते हैं। नैनीताल जब
आप जाएँ तो यहाँ की इस दाने वाली बर्फ़ी का स्वाद चखना न भूलें।
हिमालयन प्वाइंट :
नैनीताल में एक ख़ास हिमालयन प्वाइंट है। यहाँ से हिमालय पर्वत बेहद साफ़ और
ख़ूबसूरत दिखता है। अगर आप सार्वजनिक साधन से नैनीताल पहुँचे हैं तो फिर आपको गंडोला,
टैक्सी आदि से हिमालयन प्वाइंट जाना पड़ेगा। लेकिन यदि आप अपने निजी साधन से हैं
तो ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि आपकी के साथ ही आप हिमालयन प्वाइंट तक पहुँच
सकते हैं। हालांकि ऊपर पहाड़ में छोटी-छोटी चार पहिया गाड़ियों के साथ आपको कुछ
लोग मिलेंगे जो आपसे यह कहेंगे कि आपकी गाड़ी उस हिमालयन प्वाइंट तक नही जा पाएगी
ताकि आप अपनी बड़ी चार पहिया गाड़ी को उनके पास छोड़कर उनकी छोटी वाली चार पहिया
गाड़ी को किराये पर ले जाएँ। इससे आपको बचना होगा। आप कितनी भी बड़ी चार पहिया
गाड़ी साथ लेकर गए हों, वह हिमालयन प्वाइंट तक जाने में सक्षम है और गाड़ी ले जाने
की आपको पूरी छूट भी है।
बेहतर यही होगा कि आप अपनी ही गाड़ी से हिमालन
प्वाइंट तक जाएं और सैर करें, वहाँ का भरपूर मज़ा लें। इसके लिए रास्ते में पड़े
उन छोटी गाड़ियों वाले ग्रुप को नज़अंदाज़ कर आप आगे बढ़ें।

नैनीताल के पूर्णतः मौलिक शिल्पों में आज भी
यहाँ की मोमबत्तियाँ और चीड़ के फूलों से बनी कलाकृतियाँ लोगों की ख़ासा पसन्द का
हिस्सा हैं। ये दोनों ही चीज़ें आपको नैनीताल से बाहर कहीं नहीं मिलेगी। इसलिए आप
यहाँ से इन दोनों सामानों को ख़रीदकर ले जा सकता हैं। इसमें मोमबत्तियाँ सभी के
लिए सबसे किफ़ायती है सुलभ हैं। विशिष्टता में तो इनका कोई सानी भी नहीं है। आप
किसी अपने ख़ास नैनीताल की कोई निशानी ले जाना चाहते हैं तो इसमें यहाँ की इन
मोमबत्तियों को पहले तरजीह दें। ये मोमबत्तियाँ 10 रुपये से लेकर आपकी इच्छा तक के
दामों में आपको मिल जाएंगी जोकि काफ़ी ख़ुशबूदार और भिन्न-भिन्न डिज़ाइनों और आकृतियों
वाली होती हैं।
चिड़ियाघर : समुद्रतल से 2100 मीटर की ऊँचाई पर 4.693 हेक्टेयर में फैला नैनीताल
चिड़ियाघर बेहतर प्रबंधन की मिसाल है। ये बेहद छोटा सा चिड़ियाघर है, लेकिन अपने
विशेष प्रबंधन के कारण यह बिल्कुल उपयुक्त है। जिस पहाड़ पर चिड़ियाघर है वहाँ से
तल्लीताल और मल्लीताल के नज़ारे और सामने बसे शहरों की छवि के दर्शन का अलग ही
आनन्द है।
जब आप मॉल रोड पर चलते-चलते चिड़ियाघर के लिए
जाने वाले चढ़ाईनुमा रास्ते में मुड़ रहे होंगे तो उसके मुँहाने पर ही आपको 4-5
लोग यह टोकते हुए मिलेंगे कि ऊपर 2 किलोमीटर की चढ़ाई है इसलिए यहाँ से किराये की
चारपहिया गाड़ी की सुविधा ले लीजिए। दिलचस्प बात यह है कि जब आप चिड़ियाघर जा रहे
होंगे उससे पहले घूमकर आपको थोड़ा-थोड़ा थकी का एहसास हो चुका होगा। लिहाजा बहुत
मुमकिन है कि 2 किलोमीटर की इस चढ़ाई को भांपकर आप उनकी सुविधा ले लें। एक बात और
कि यदि आप उस मुँहाने पर अपनी निजी गाड़ी से प्रवेश ले रहे होंगे तो आपको यह कहकर
भी उन लोगों द्वारा डराया जाएगा कि ऊपर रास्ता अत्यधिक सँकरा है और आपकी गाड़ी पर
गहरी खँरोचें आ जाएंगी।

इस तरह से उक्त इन तमाम बातों का ख़्याल करके
आप नैनीताल में होशियार रहेंगे और बिना ठगा हुआ महसूस किये प्रकृति के आनन्द का रस
बटोर पाएंगे।
Wednesday, 3 January 2018
MO JO के सहारे न्यू-मीडिया का रूप बदलेगा ईनाडू-ग्रुप
• अमित राजपूत
दुनिया में सूचना क्रान्ति की रफ़्तार दिन-ब-दिन बढ़ती चली जा रही है। उसकी इस रफ़्तार
में अलग-अलग
पड़ाव मिलते हैं जहाँ हमें माध्यम बदलते हुए नज़र आते हैं। इसका आशय यह हुआ कि जब सूचना
क्रान्ति में हमें नया माध्यम देखने को मिले तो यह संकेत होता है कि सूचना
क्रान्ति अपने एक और पड़ाव तक का सफ़र तय कर चुकी है। चूंकि हम यह भी देख रहे हैं कि दुनियाभर में रिपोर्टिंग के तरीक़े कैसे
बदलते जा रहे हैं। इससे परे यूरोप सहित दुनिया के हर कोने में पत्रकारिता और इसके
माध्यमों पर नये-नये शोध व प्रयोग भी
हमें देखने-सुनने
को लगातार मिलते हैं। ऐसे में आज बेहद सुखद है यह
जानना कि सूचना के क्षेत्र में हमने MO JO के
रूप में एक स्निग्ध माध्यम पा लिया है। इसी के साथ हम यह भी कह सकते हैं कि
वस्तुतः न्यू मीडिया कहा जाने वाला माध्यम भी अब पुराना हो चला है। न्यू मीडिया के
नए अवतार के रूप में अब हमारे सामने हैं MO JO...
MO JO का अभिप्राय मोबाइल
पत्रकारिता से है। यहाँ MO शब्द का गढ़न मोबाइल
और जर्नलिज़्म शब्द से JO को गढ़ा गया है। इस
तरह से मोबाइल पत्रकारिता को ही हम MO JO कहते
हैं। वास्तव में न्यू मीडिया की कहानी का एक उभरता हुआ रूप है MO JO. पत्रकारिता के इस माध्यम में पत्रकार अपने स्रोतों और विविध समुदाय से समाचार एकत्रित करने, संपादित करने और उन्हें वितरित करने के लिए नेटवर्क अथवा कनेक्टिविटी
के साथ पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया करते हैं। इसमें वे डिजिटल कैमरे और कैमकॉर्डर, लैपटॉप पीसी, स्मार्टफोन या टैबलेट
डिवाइस आदि का भी उपयोग कर सकते हैं। अपनी स्टोरी और फ़ीचर आदि का प्रकाशन करने के
लिए अंततः पत्रकार एक ब्रॉडबैण्ड वायरलेस कनेक्शन या सेलुलर फोन नेटवर्क का
इस्तेमाल करते हैं। ऐसे पत्रकारों को आजकल मोज (मोबाइल पत्रकार) के नाम से जाना
जाता है।
प्रायः आधुनिक समय में MO
JO पर काम करने वाले पत्रकारों को लोग वीडियो जर्नलिस्ट समझ
बैठते हैं, हालांकि
उनको ये साफ़ मालूम होना चाहिए कि यह मात्र तकनीकी कौशल नहीं है, अपितु यह तो पत्रकारिता का आधार है। बल्कि
इसे न सिर्फ़ आधार ही कहा जा सकता है क्योंकि वास्तविकता तो यह है कि MO
JO मल्टी-मीडिया
रिपोर्टिंग के तीन स्तरों का वर्णन करता है। इसलिए इसमें तो इन सभी स्तरों पर
अत्यन्त परिपक्व पत्रकार ही काम कर सकते हैं।
MO JO एक बहुप्रतीक्षित माध्यम है। यह एक उचित
मानसिकता या सोचने के तरीके को अपनाने का माध्यम है, जिसकी अच्छाई है घटनाओं के साथ-साथ चलने की प्रक्रिया में इसकी सुलभता। इसके कारण कोई भी विचार MO
JO से अछूता नहीं रह सका है। MO JO में परिष्कृत
एप्लिकेशन के माध्यम से यूज़र-जनरेटेड कंटेण्ट (यूजीसी) को यूजर-जनरेटेड स्टोरीज़ (यूजीएस) में फौरन-फौरन बदला जा सकता है। यही कारण है कि
संवेदनशीलता के स्तर पर एक अच्छे ऑब्ज़र्वेटिव के साथ-साथ औसतन अधिक संवेदनशील
पत्रकार ही एक मोबाइल पत्रकार या मोजो हो सकता है, क्योंकि
कोई मोजो मात्र अपने सोने के अलावा हर दौरान वह अपने काम पर होता है। इतना सक्रिय
होता है एक मोजो क्योंकि बेहद प्रखर
है यह माध्यम- MO
JO.
टीवी चैनल हों या अख़बार या बेवसाइट सभी ने
मोबाइल पत्रकारिता की गंभीरता को देखते हुए सिटीजन जर्नलिज्म के अपने कॉलम शुरू कर
दिए हैं। बड़ी से बड़ी रिपोर्ट और इण्टरव्यू अब मोबाइल पर ही हो रहे हैं। एक बेहद
चर्चित उदाहरण भी हमारे सामने है जब अभी हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व चर्चित
राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने एक भारतीय पत्रकार को मोबाइल पर ही लाइव
इण्टरव्यू रिकॉर्ड करवाया। हर हाथ मोबाइल की पहुँच हो जाने से अब हर नेता, अधिकारी प्रत्येक क्षण सचेत रहते हैं, क्योंकि
वो जानते हैं कि आज हर हाथ में मोबाइल है, कुछ ऊँच-नीच
होने पर सेकण्डों में वो दुनिया के सामने होंगे। मोबाइल पर रिकॉर्ड की गयी किसी
नागरिक द्वारा हर छोड़ी-बड़ी स्टिंग आज नेशनल ख़बर का हिस्सा हो जाती है। ऐसे में
मीडिया को इस मोबाइल के माध्यम तक अपनी पहुँच को बनाना बेहद ज़रूरी हो गया है। इसी
माध्यम पर गम्भीरता से विचार किया है ईनाडू टेलीविज़न नेटवर्क ने।
ईनाडू टेलीविज़न नेटवर्क भारत का सबसे बड़ा सैटलाइट उपग्रह टेलिविज़न नेटवर्क है। इस मीडिया नेटवर्क पर बैरॉन रामोजी
राव का एकाधिकार है जिसे हम अब ईटीवी-भारत भी कहते हैं। ईटीवी-भारत शायद एकाधिकार वाला देश का पहला मीडिया नेटवर्क है। इसका मुख्यालय हैदराबाद के विश्वप्रसिद्ध रामोजी फिल्मसिटी में स्थित है। जब नब्बे के दशक में भारत में सैटेलाइट टीवी क्रान्ति का जन्म हुआ, उसी समय आंध्रप्रदेश में ईनाडू ने तेलुगु भाषा में एक चैनल की शुरुआत की, मगर जल्द ही ईटीवी नेटवर्क ने देश के विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में कई
चैनलों की शुरुआत की। बंगाली, ऊर्दू, कन्नड, गुजराती, मराठी सहित हिंदी में चार चैनल खोले गए। धीरे-धीरे ईटीवी का भारत में सबसे बड़ा न्यूज
रिपोर्टिंग नेटवर्क बन गया, जो जिला और प्रखंड स्तर
तक फैल गए।
अब एक बार फिर बैरॉन रामोजी
राव दुनिया भर को चौकाने जा रहे हैं। वे कुल तेरह
अलग-अलग भाषाओं
में MO
JO को शुरू करने जा रहे । मालूम हो कि इसी ईनाडू टेलीविज़न
नेटवर्क के अंतर्गत तेरह भाषाओं
में MO JO के चैनल
संचालित हो रहे हैं, जो चौबीसों घंटे समाचार, शिक्षा, मनोरंजन और ज्ञान-विज्ञान से संबंधित रिपोर्ट और तरह-तरह के कार्यक्रम
प्रसारित कर रहे हैं। इसी के साथ MO JO को इतने
व्यापक पैमाने पर शुरू करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बनने जा रहा है और ईटीवी-भारत ऐसे एकाधिकार
वाला दुनिया
का पहला टेलीविज़न नेटवर्क।
मिली जानकारियों के अनुसार ईटीवी-भारत ने
दुनियाभर की मीडिया रिसर्च के बाद यह तय किया है कि वह भारत के भीतर एक साथ पूरे
देश में सूचना क्रान्ति के लिए मोबाइल पत्रकारिता की नयी शुरूआत करने जा रहा है। इसके ट्रायल पूरे किये जा चुके हैं। इस दफ़ा
ईटीवी-भारत देश के सँकरे इलाक़ों और रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जूझ रहे लोगों की
दबी हुई आवाज़ों को MO JO के माध्यम से फिर से
मुखर बनाने के लिए तत्पर है जो आज स्टूडियो वाली और संसद व नेताओं की गलियों में
खोयी पत्रकारिता की बौखलाहट में कहीं ग़ुम सी हो गयी है।
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