झील में कुछ मोतियाँ बिखरी पड़ी हैं
जिन्हें चुरा लाउंगा तुम्हारे लिए
सुबह उठते ही तुम्हें इनका कलेवा खिलाउँगा सनम
ताकि खिलती तुम रहो सदा के लिए ।
चोरियाँ तो न की हमने कभी आज तक
बस लुटे, और सदा लुटते ही गए
ग़फ़लत थी वो, चोरियाँ तो होश में होती हैं
आज चोर बनुँगा तुम्हारे लिए ।
बहुत खूब भाई
ReplyDeleteजय हो...मित्रवर
ReplyDeleteNayab Mohtaram
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